कमोडोर सुजीत समद्दार (सेवानिवृत्त) / Image: Provided
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बदलते सामरिक समीकरणों के बीच भारत और अमेरिका की रक्षा साझेदारी अब स्पष्ट रूप से समुद्री आयाम ले चुकी है। जो रिश्ता कभी केवल हथियार खरीद-बिक्री तक सीमित था, वह अब साझा रणनीतिक हितों, औद्योगिक सहयोग और परिचालन पारस्परिकता पर आधारित गहरे रिश्ते में बदल चुका है।
साझा हित और रणनीतिक दृष्टिकोण
भारत के लिए अमेरिका के साथ नौसैनिक सहयोग का मतलब है – नौसेना का आधुनिकीकरण, उन्नत तकनीक तक पहुंच, और हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में निगरानी व खुफिया क्षमताओं में बढ़ोतरी। वहीं, अमेरिका के लिए भारत एक लोकतांत्रिक समुद्री शक्ति है जो इंडो-पैसिफिक में 'फ्री, ओपन और इन्क्लूसिव' व्यवस्था की आधारशिला है। साथ ही, भारत अमेरिकी नौसेना और कोस्ट गार्ड के लिए एकमात्र मरम्मत और रीफिट सेंटर भी बनता जा रहा है।
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इंटरऑपरेबिलिटी और संयुक्त अभ्यास
भारत-अमेरिका समुद्री सहयोग की रीढ़ है — इंटरऑपरेबिलिटी, यानी दोनों नौसेनाओं का एक साथ काम करने और जानकारी साझा करने की क्षमता।
इस दिशा में तीन अहम समझौते हुए हैं:
LEMOA (2016) – लॉजिस्टिक सपोर्ट की सुविधा
COMCASA (2018) – सुरक्षित संचार व्यवस्था
BECA (2020) – जियोस्पैशल डेटा शेयरिंग
इन समझौतों की बदौलत अब दोनों देश एक साझा 'ऑपरेटिंग लैंग्वेज' में काम कर रहे हैं। संयुक्त अभ्यास जैसे MALABAR, TIGER TRIUMPH, और RIMPAC ने इस तालमेल को संस्थागत रूप दे दिया है।
2025 के टाइगर ट्रायम्फ अभ्यास में दोनों देशों ने संयुक्त उभयचर लैंडिंग, क्रॉस-डेक हेलीकॉप्टर ऑपरेशन, और मानवीय सहायता ड्रिल्स कीं, जो भरोसे और तालमेल के नए स्तर को दर्शाती हैं। हाल में अरब सागर में INS इम्फाल और USS ग्रिडले के बीच हुए अभ्यास में डेटा लिंकिंग और मैरीटाइम इंटरडिक्शन ऑपरेशंस का प्रदर्शन किया गया।
साजो-सामान और क्षमता-वृद्धि
2007 में भारत ने अमेरिका से USS Trenton खरीदी थी, जिसे भारतीय नौसेना में INS जलाश्व नाम दिया गया। यह जहाज लीबिया से भारतीयों की निकासी और कोविड काल में समुद्र सेतु ऑपरेशन में अहम रहा।
इसके बाद भारत ने अमेरिकी तकनीक पर आधारित कई प्रमुख प्लेटफॉर्म अपनाए-
12 P-8I Poseidon समुद्री गश्ती विमान
MH-60R Seahawk हेलीकॉप्टर
31 MQ-9B Sea Guardian ड्रोन (जिनमें से 12 नौसेना के लिए)
अब सहयोग केवल उपकरणों की खरीद तक सीमित नहीं रहा। Maritime Domain Awareness (MDA) पहल के तहत भारत अब अमेरिकी SeaVision प्लेटफॉर्म से रियल-टाइम जहाज निगरानी डेटा प्राप्त करता है। दोनों देश सोनोबॉय और स्वायत्त नौसैनिक वाहनों (ASV) के विकास में भी मिलकर काम कर रहे हैं।
औद्योगिक सहयोग और निर्माण
भारत की समुद्री आधुनिकीकरण परियोजना अब निर्णायक मोड़ पर है। Landing Platform Dock (LPD) कार्यक्रम के तहत चार 40,000 टन के युद्धपोत बनाए जाएंगे, जिनकी कीमत लगभग ₹80,000 करोड़ आंकी गई है। ये जहाज अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप द्वीपों की सुरक्षा और मानवीय राहत मिशनों के लिए अहम होंगे।
अमेरिका के लिए यह साझेदारी इंडो-पैसिफिक में लोकतांत्रिक देशों की संयुक्त समुद्री क्षमता को मजबूत करेगी। अमेरिकी शिपबिल्डर्स भारतीय परियोजना में डिजाइन, ऑटोमेशन और मेंटेनेंस सहयोग दे सकते हैं। साथ ही, ट्विन-इंजन डेक-बेस्ड फाइटर (TEDBF) परियोजना में General Electric के साथ इंजन निर्माण पर साझेदारी की संभावना है। भारत पहले से ही Chinook, Apache और C-130 विमानों के एयरो-स्ट्रक्चर सप्लाई चेन का हिस्सा है।
चुनौतियां भी कम नहीं
हालांकि सामरिक तर्क स्पष्ट हैं, फिर भी कुछ बाधाएं बनी हुई हैं-
रणनीतिक स्वायत्तता: भारत फ्रांस, इज़राइल, जापान और रूस के साथ भी रिश्ते संतुलित रखना चाहता है।
टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की शर्तें: अमेरिकी सिस्टम्स पर सख्त एंड-यूज़ क्लॉज लागू होते हैं।
औद्योगिक तैयारी: भारतीय शिपयार्ड्स को गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता बढ़ाने की जरूरत है।
भूराजनीतिक संवेदनशीलता: चीन, अंडमान सागर और मलक्का जलडमरूमध्य में भारत-अमेरिका नौसैनिक गतिविधियों पर करीबी नजर रखता है।
समुद्री सदी की साझेदारी
भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी अब 'सहयोग से सह-निर्माण' की ओर बढ़ रही है। संयुक्त अभ्यासों से लेकर युद्धपोतों के सह-विकास तक, यह रिश्ता अब रणनीति, उद्योग और तकनीक तीनों स्तरों पर परिपक्व हो चुका है। दोनों देशों के लिए यह एक मैरिटाइम सेंचुरी की दिशा में निर्णायक कदम है, जो हिंद महासागर और इंडो-पैसिफिक में स्थिरता की नई परिभाषा गढ़ सकता है।
(लेखक कमोडोर सुजीत समद्दार (सेवानिवृत्त) भारत नौसेना में प्रधान निदेशक रह चुके हैं और वर्तमान में 'Society for Aerospace Maritime and Defence Studies (SAMDeS)' के संस्थापक-सचिव हैं।)
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