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वैश्विक युग में हिंदी भाषा : एक नई दिशा की ओर

हिंदी न केवल एकता का प्रतीक है, यह देश की भाषाई विविधता का भी सम्मान करती है।

सांकेतिक तस्वीर / Courtesy Photo : hindi.org

हिंदी भाषा भारत के भाषाई परिप्रेक्ष्य में एक प्रमुख स्थान रखती है और इसे भारतीय संविधान से संरक्षण प्राप्त है, जिसका अर्थ है कि हिंदी का सम्मान और सुरक्षा संविधान द्वारा सुनिश्चित की गई है। इसके अलावा, हिंदी समय के साथ बदलती दुनिया और वैश्वीकरण की ज़रूरतों के अनुसार खुद को ढाल रही है और निरंतर विकसित हो रही है। भारत में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है, और यह देश में एकता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में विभिन्न भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन हिंदी एक सामान्य संपर्क भाषा के रूप में काम करती है, जिससे लोग आपस में आसानी से संवाद कर सकते हैं। इस प्रकार, हिंदी न केवल एकता का प्रतीक बनती है, बल्कि यह देश की भाषाई विविधता का भी सम्मान करती है।

अब बात करते हैं वैश्वीकरण की। जैसे-जैसे दुनिया छोटी होती जा रही है और देशों के बीच संपर्क बढ़ रहा है, हिंदी का महत्व भी लगातार बढ़ रहा है। हिंदी अब केवल भारत तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बोली जाने लगी है, विशेष रूप से वहां जहां भारतीय मूल के लोग बसे हुए हैं। जब हम हिंदी के प्रभाव की चर्चा करते हैं, तो यह सिर्फ एक भाषा नहीं है, बल्कि यह भाषा, संस्कृति और राजनीति के आपसी प्रभावों को भी प्रदर्शित करती है। इसी कारण हिंदी का वैश्विक प्रभाव निरंतर बढ़ता जा रहा है।

यह लेख हिंदी की संवैधानिक सुरक्षा, यानी इसे मिलने वाली कानूनी सुरक्षा, और इसके उपयोग को बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर विस्तार से चर्चा करता है। इसके अलावा, यह लेख भारत और दुनिया भर में हिंदी की स्थिति का विश्लेषण भी करता है और बताता है कि हिंदी को समझने और उसके उपयोग को बढ़ाने के लिए किस प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं। लेख में यह भी बताया गया है कि भारतीय संविधान में हिंदी के लिए क्या प्रावधान हैं और यह कैसे अमेरिका के संविधान से अलग है। उदाहरण के तौर पर, अमेरिकी दृष्टिकोण से भारतीय भाषाई अधिकारों की तुलना की जाती है, ताकि यह समझा जा सके कि भारत और अमेरिका में भाषाओं के प्रति क्या नीतियां हैं। इस लेख में हिंदी के बढ़ते महत्व और इसके विश्वभर में फैलने की प्रक्रिया को भी समझाया गया है, और यह दर्शाया गया है कि यह भाषा भारत के भीतर और बाहर अपनी पहचान कैसे बना रही है।

वैश्विक संदर्भ में हिंदी की स्थिति
हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है, और Ethnologue की रिपोर्ट के अनुसार, विश्वभर में लगभग 60 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। भारत में 53 करोड़ से अधिक लोग इसे अपनी पहली भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं, जबकि 77% भारतीय इसे समझते हैं और 66% लोग इसे अपनी दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं, जो यह दर्शाता है कि हिंदी भारत में गहरी जड़ें जमा चुकी है। हिंदी केवल भारत तक सीमित नहीं है; यह दुनिया के 132 से अधिक देशों में बोली जाती है, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी शामिल हैं।

हालिया आंकड़े यह बताते हैं कि हिंदी की वैश्विक उपस्थिति लगातार बढ़ रही है। केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में ही 1.6 मिलियन से ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं। वैश्विक स्तर पर हिंदी बोलने वालों की संख्या में वृद्धि यह दर्शाती है कि हिंदी अब एक प्रभावशाली भाषा बन रही है, जिसका उपयोग संवाद, संस्कृति और वाणिज्य के लिए बढ़ता जा रहा है, और इससे हिंदी अपनी वैश्विक स्थिति को और मजबूत कर रही है।

हिंदी की संवैधानिक सुरक्षा, विकास और वैश्विक विस्तार
भाषा को सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक उन्नति का महत्वपूर्ण आधार मानते हुए, भारतीय संविधान हिंदी को अनुच्छेद 343 से 351 के तहत विशेष सुरक्षा प्रदान करता है। ये संवैधानिक प्रावधान हिंदी के प्रचार-प्रसार को सुनिश्चित करते हैं, साथ ही भारत की भाषाई विविधता का सम्मान भी करते हैं। अनुच्छेद 343 के तहत देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है।

भारत में और वैश्विक स्तर पर हिंदी की स्थिति को मजबूत करने के लिए कई पहलें की गई हैं। 2008 में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना ने दुनिया भर में हिंदी के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अलावा, 2018 में भारत का हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में से एक बनाने का प्रस्ताव हिंदी की अंतरराष्ट्रीय पहचान को बढ़ाने की दिशा में एक कदम है। आज, दुनिया भर के 180 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई हो रही है, और संयुक्त राज्य अमेरिका में 60 से अधिक संस्थानों में उच्च स्तर पर हिंदी शिक्षण की प्रक्रिया जारी है, जिसके परिणामस्वरूप भाषा का वैश्विक परिचय और प्रवीणता बढ़ रही है, और यह शिक्षा, कूटनीति और व्यापार के क्षेत्र में एक आवश्यक माध्यम बनता जा रहा है।

भारत में हिंदी की संवैधानिक सुरक्षा
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 का उद्देश्य न केवल हिंदी के विकास को सुनिश्चित करना है, बल्कि भारत में बोली जाने वाली अन्य भाषाओं के महत्व को भी बनाए रखना और भाषाई समावेशन एवं राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में भाषाई अधिकारों की संवैधानिक सुरक्षा
भारत के विपरीत, संयुक्त राज्य अमेरिका में फरवरी 2025 तक कोई आधिकारिक भाषा नहीं थी। हालांकि, नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ने 1 मार्च 2025 को एक कार्यकारी आदेश (14224) जारी किया, जिसके तहत अंग्रेजी को अमेरिका की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया। इसके बावजूद, अमेरिका अपनी संविधान और विभिन्न कानूनी फैसलों के जरिए भाषाई अधिकारों की रक्षा करता है। पहले और चौदहवें संशोधन (1st और 14th Amendments) के तहत किसी भी भाषा में बोलने की स्वतंत्रता दी गई है, बिना सरकारी हस्तक्षेप के। 'लाउ बनाम निकोल्स' (1974) जैसे अहम मामलों ने सीमित अंग्रेजी दक्षता वाले छात्रों के लिए सार्थक शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित किया, जो शिक्षा में भाषा के महत्व को समझाता है।

इसके अलावा, कार्यकारी आदेश 13166 (2000) के तहत संघीय एजेंसियों को गैर-अंग्रेजी बोलने वालों को भाषा सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया गया था, जो अमेरिका की भाषाई समावेशिता को दर्शाता है। इस आदेश के तहत, गैर-अंग्रेजी बोलने वालों को नागरिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने का समान अवसर मिलता था। हालांकि, कार्यकारी आदेश 14224 (2025) ने 2000 के आदेश 13166 को निरस्त कर दिया, जिससे सीमित अंग्रेजी दक्षता वाले व्यक्तियों के लिए सेवाओं तक पहुंच में सुधार की प्रक्रिया समाप्त हो गई। अब यह देखना होगा कि भविष्य में इसका क्या प्रभाव पड़ता है।

जब भारत के हिंदी प्रचार को संयुक्त राज्य अमेरिका की दृष्टि से देखा जाता है, तो भारत की एकल भाषा को बढ़ावा देने की नीति, अमेरिका के भाषाई विविधता की प्राथमिकता से अलग नजर आती है। भारत को अमेरिका की तरह द्विभाषी नीतियों को अपनाने से उन लोगों के लिए समावेशिता और सुलभता बढ़ सकती है जो विभिन्न भाषाओं को बोलते हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रमुख कानूनी संदर्भ:
1.
ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट निर्णय (1923-1927): 1923 से 1927 तक, संयुक्त राज्य सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि संविधान विदेशी भाषाएँ सीखने और सिखाने के अधिकार की रक्षा करता है। शुरुआत में, अदालत ने इसे 14वें संशोधन के तहत एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया सुरक्षा के रूप में माना, यह मानते हुए कि शिक्षा का अधिकार स्वतंत्रता का एक मौलिक हिस्सा है। बाद में, अदालत ने इसे पहले संशोधन से जोड़ा, यह मानते हुए कि विदेशी भाषाएँ सीखना और सिखाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। इन निर्णयों ने व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं और शैक्षिक अधिकारों का विस्तार किया, यह सुनिश्चित करते हुए कि संविधान किसी भी भाषा को सीखने और सिखाने के अधिकार की रक्षा करता है।

2.पहला संशोधन (1791): यह संशोधन भाषाई स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है, जिससे नागरिकों को किसी भी भाषा में संवाद करने की स्वतंत्रता मिलती है।

3.चौदहवां संशोधन (1868):: यह संशोधन समान संरक्षण का सिद्धांत बनाए रखता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि भाषा के आधार पर भेदभाव निषिद्ध है।

4.ऐतिहासिक केस - लौ बनाम निकोल्स (1974): इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि यदि छात्रों को अंग्रेजी में शिक्षा दी जाती है लेकिन वे इसमें प्रवीण नहीं हैं, तो यह उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

5.द्विभाषी शिक्षा अधिनियम (1968): इस कानून ने गैर-अंग्रेजी बोलने वाले छात्रों के लिए द्विभाषी शिक्षा अनिवार्य कर दी, जिससे उन्हें अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला। इसने भारतीय मूल के लोगों के बीच हिंदी जैसी भाषाओं को बढ़ावा देने में मदद की।

6.कार्यकारी आदेश 13166 (2000): अमेरिकी सरकार ने एक नीति अपनाई, जिसके तहत सभी सरकारी सेवाओं में गैर-अंग्रेजी बोलने वाले नागरिकों के लिए भाषाई सहायता प्रदान की जाती है, जिससे हिंदी जैसी भाषाओं के विस्तार को बढ़ावा मिला।

7.कार्यकारी आदेश 14224 (2025): अमेरिकी सरकार ने अंग्रेजी को अमेरिका की आधिकारिक भाषा घोषित किया और 2000 में जारी कार्यकारी आदेश 13166, जो सीमित अंग्रेजी दक्षता वाले व्यक्तियों के लिए सेवाओं तक पहुंच में सुधार करता था, उसे रद्द कर दिया।

वैश्विक भाषाई रुझान और हिंदी का उदय
वैश्वीकरण के कारण भाषाओं का परिप्रेक्ष्य तेजी से बदल रहा है, और हिंदी इस बदलाव के साथ एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली भाषा के रूप में उभर रही है। विशेष रूप से कूटनीति और व्यापार के क्षेत्रों में हिंदी की भूमिका बढ़ रही है, जहां इसे संवाद और सहयोग के एक प्रमुख माध्यम के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिकी सरकार ने भी अपने क्रिटिकल लैंग्वेज स्कॉलरशिप प्रोग्राम के तहत हिंदी को एक महत्वपूर्ण विदेशी भाषा के रूप में मान्यता दी है, जो यह दिखाता है कि वैश्विक स्तर पर हिंदी को गंभीरता से लिया जा रहा है।

अंग्रेजी का ऐतिहासिक रूप से वैश्विक संचार और व्यापार में प्रमुख स्थान रहा है, लेकिन अब हिंदी भाषा कौशल की आवश्यकता विभिन्न क्षेत्रों, जैसे व्यापार, शिक्षा और तकनीकी विकास, में तेजी से बढ़ रही है। शोध से यह भी संकेत मिलता है कि हालांकि दुनिया भर में हिंदी बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है, अंग्रेजी बोलने वाले देशों में हिंदी की शिक्षा अब भी सीमित है। इसके कारण, इन देशों में हिंदी की शिक्षण पद्धतियों और संसाधनों में सुधार की आवश्यकता महसूस हो रही है, ताकि आने वाली पीढ़ी, विशेषकर भारतीय मूल के लोग और उनकी अगली पीढ़ी, हिंदी भाषा और साहित्य को बेहतर तरीके से समझ सकें और उसे आत्मसात कर सकें।

डिजिटल युग में हिंदी भाषा भी तेजी से नई तकनीकों और डिजिटल प्लेटफार्मों के साथ अनुकूलित हो रही है। सोशल मीडिया के प्लेटफार्म, जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, और ब्लॉगिंग साइट्स ने हिंदी बोलने वालों को अपनी आवाज़ ज़्यादा प्रभावशाली तरीके से दुनिया के सामने रखने का अवसर दिया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि डिजिटल दुनिया में हिंदी की उपस्थिति तेज़ी से बढ़ रही है, और यह भाषा न केवल व्यक्तिगत संचार के लिए, बल्कि वैश्विक स्तर पर संवाद और सूचना के आदान-प्रदान में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगी है। इस वृद्धि ने हिंदी को एक वैश्विक भाषा के रूप में और भी प्रासंगिक बना दिया है।

हिंदी भाषा के प्रचार के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
हिंदी का प्रचार विशेष रूप से वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में समाज और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण लाभ लाता है। एक मजबूत भाषा का आधार सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करता है और नए आर्थिक अवसरों के द्वार खोलता है। जब लोग हिंदी बोलने में सक्षम होते हैं, तो उन्हें न केवल अपने देश में, बल्कि दुनिया भर में भी कई नौकरी और नेटवर्किंग के अवसर मिल सकते हैं। इससे व्यापारिक संबंधों में वृद्धि होती है और सरकारी संचार बेहतर होता है। उदाहरण के लिए, भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को सुधारने में हिंदी एक महत्वपूर्ण माध्यम बन सकती है। हिंदी बोलने वाले व्यक्तियों को व्यापार, प्रशासन, शिक्षा, और कूटनीति जैसे क्षेत्रों में रोजगार मिल सकता है।

हिंदी का प्रचार सिर्फ नौकरी के अवसरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देशों के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देता है। जब और लोग हिंदी बोलने लगते हैं, तो यह देशों के बीच संपर्क और सहयोग को आसान बनाता है। उदाहरण के लिए, हिंदी फिल्में, संगीत, और साहित्य का वैश्विक प्रचार न केवल भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देता है, बल्कि देशों के बीच सांस्कृतिक समझ और मेल-जोल को भी बढ़ावा देता है। इसके अलावा, हिंदी का प्रचार उन क्षेत्रों में भी मदद करता है, जहां सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विचारों का आदान-प्रदान जरूरी है, जैसे शिक्षा और शोध। हिंदी सीखने से व्यक्ति की सोच और दृष्टिकोण में विस्तार होता है, जो वैश्विक नागरिकता के विकास में मदद करता है। इस प्रकार, हिंदी का प्रचार सिर्फ समाज और संस्कृति के दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर आर्थिक प्रगति और सहयोग को भी बढ़ावा देता है।

हिंदी के वैश्विक महत्व के प्रमुख मील के पत्थर:

  • 1977: अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में पहला भाषण दिया।2014 और 2023: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (2014) और व्हाइट हाउस (2023) में हिंदी में भाषण दिया, जिससे हिंदी की वैश्विक पहचान मजबूत हुई।गूगल ट्रांसलेट: हिंदी, गूगल ट्रांसलेट पर सबसे ज्यादा अनुवादित भाषाओं में से एक है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में हिंदी: अंग्रेजी और स्पैनिश के बाद, हिंदी चिकित्सकों में तीसरी सबसे बोली जाने वाली भाषा है।
  • कॉर्पोरेट क्षेत्र में हिंदी का बढ़ता प्रभाव: फेसबुक और गूगल जैसी तकनीकी कंपनियां हिंदी को विज्ञापन और सामग्री के लिए प्राथमिकता दे रही हैं। 80% भारतीय उपभोक्ता मोबाइल एप्लिकेशनों में हिंदी सामग्री को प्राथमिकता देते हैं। भारत के 40% स्टार्टअप्स अब हिंदी में सेवाएं प्रदान करते हैं।
  • हिंदी सिनेमा का वैश्विक प्रभाव: हिंदी सिनेमा, खासकर बॉलीवुड, ने सांस्कृतिक सीमाओं को पार किया है। फिल्में जैसे 'बाहुबली', '3 इडियट्स', और 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' ने अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को आकर्षित किया है। बॉलीवुड गाने अब दुनिया भर में लोकप्रिय हो रहे हैं, जिससे हिंदी के वैश्विक प्रभाव में और वृद्धि हो रही है।

निष्कर्ष: हिंदी - राष्ट्रीय पहचान और वैश्विक प्रभाव की भाषा
हिंदी, जो भारतीय संविधान में संरक्षित है, न केवल हमारी राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा है, बल्कि इसका वैश्विक प्रभाव भी बढ़ रहा है। वैश्वीकरण के इस दौर में, हिंदी का विस्तार सांस्कृतिक आदान-प्रदान, आर्थिक सहयोग और वैश्विक संवाद में सुधार के नए अवसर प्रदान कर रहा है। हालांकि, इस वृद्धि को बनाए रखने के लिए भारत को शिक्षा, प्रशासन और डिजिटल प्लेटफार्मों पर हिंदी की पहुंच को और बढ़ाना होगा।

संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों की भाषाई नीतियों से सीखकर भारत हिंदी की प्रमुखता और वैश्विक प्रासंगिकता को और बढ़ा सकता है। द्विभाषिता को बढ़ावा देने और तकनीकी विकास का लाभ उठाने से हिंदी को 21वीं सदी की वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित किया जा सकता है। इसके लिए, भारत को स्कूलों, विश्वविद्यालयों और सरकारी संस्थानों में हिंदी का समावेश बढ़ाना होगा, और डिजिटल प्लेटफार्मों पर हिंदी की उपस्थिति को मजबूत करना होगा।

भारत को हिंदी को द्विभाषिक या बहुभाषिक समाज के रूप में बढ़ावा देने की आवश्यकता है, ताकि यह वैश्विक मंच पर और+ प्रभावी हो सके। इस प्रकार, हिंदी का प्रचार अब केवल एक राष्ट्रीय आवश्यकता नहीं, बल्कि एक वैश्विक आवश्यकता बन चुका है, और इसके तकनीकी एवं सांस्कृतिक संदर्भों में सशक्तीकरण से हिंदी का प्रभाव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगा।

(डॉ. कुमार सह कोषाध्यक्ष, सलाहकार एवं पूर्व अध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति -इंडियाना शाखा, यूएसए)

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