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राजनीति : क्या पंजाब में 'आयातित' उम्मीदवार उतारने का भाजपा का प्रयोग विफल हो गया!

अगर हाल ही में पंजाब में संपन्न चार उपचुनावों के नतीजे कोई संकेत हैं तो भाजपा की पंजाब इकाई इस साल कोई भी चुनावी सफलता दर्ज करने में विफल रही है।

भारत के प्रधानमंत्री और सत्तादारी भारतीय जनता पार्टी के मुखिया नरेन्द्र मोदी। / X@ BJP4India

भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा पंजाब के हालिया चुनाव में अपने कैडर के बजाय 'आयातित' उम्मीदवारों को प्राथमिकता देने का प्रयोग क्या वांछित परिणाम देने में विफल रहा है? सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP) ने चार सीटों में से तीन (डेरा बाबा नानक, चब्बेवाल और गिद्दड़बाहा) पर जीत हासिल की जबकि चौथी सीट (बरनाला) कांग्रेस के खाते में गई। 

डेरा बाबा नानक और गिद्दड़बाहा दोनों ही सीटें पहले कांग्रेस के पास थीं जबकि आप उम्मीदवार और अब सांसद गुरमीत सिंह मीत हायर बरनाला का प्रतिनिधित्व करते थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर छब्बेवाल से जीतने वाले डॉ. राज कुमार छब्बेवाल भी AAP के प्रति अपनी वफादारी बदलने के बाद लोकसभा के लिए चुने गए। अब उनके बेटे इशांत ने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर उपचुनाव जीत लिया है।

अगर हाल ही में पंजाब में संपन्न चार उपचुनावों के नतीजे कोई संकेत हैं तो भाजपा की पंजाब इकाई इस साल कोई भी चुनावी सफलता दर्ज करने में विफल रही है। अपने पारंपरिक साझेदार शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन टूटने के बाद उसे इस सीमावर्ती राज्य में हाल की चुनावी लड़ाई में कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है।

कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल सहित अन्य दलों के सिख नेताओं को लुभाने की इसकी रणनीति सफलतापूर्वक काम करती रही लेकिन 'आयातित' यानी दूसरी पार्टियों से भाजपा में शामिल हुए सिख चेहरों का उपयोग करके राज्य की चुनावी लड़ाई में अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति का दूसरा और अंतिम भाग 'बुरी तरह' विफल रहा है।

2024 के आम चुनावों में भाजपा ने अमृतसर से हाल ही में सेवानिवृत्त राजनयिक तरणजीत सिंह संधू, बठिंडा से नौकरशाह से राजनेता बनी परमजीत कौर सिद्धू, खडूर साहिब से मंजीत सिंह मन्ना, कांग्रेस से आये फिरोजपुर के राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी, लुधियाना से रवनीत सिंह बिट्टू और पटियाला से परनीत कौर को उतारा। यही नहीं सूफी गायक हंस राज हंस समेत बीजेपी के बाकी सभी उम्मीदवार 2024 के लोकसभा चुनाव में हार गए।

भाजपा नेतृत्व ने रवनीत सिंह बिट्टू की हाल ही में प्रदर्शित वफादारी का पुरस्कार दिया जो कभी कांग्रेस में अपने सहयोगी रहे राजा अमरिंदर सिंह वारिंग से लुधियाना लोकसभा सीट हार गए थे। बिट्टू को केंद्रीय मंत्रिपरिषद में नामांकित किया गया और बाद में उन्हें राजस्थान से राज्यसभा में भेजा गया। पंजाब में लोकसभा चुनाव में हार के बाद भी भाजपा की मुश्किलें खत्म नहीं हुईं। इसके बाद हुए उपचुनावों में भी बीजेपी उम्मीदवार धूल चाटते रहे। पंजाब में हाल ही में संपन्न हुए चार उप-चुनावों में भाजपा ने सभी 'आयातित' सिख उम्मीदवारों को मैदान में उतारा लेकिन त्रिकोणीय मुकाबलों में वह तीसरे स्थान पर रही। 

कुल मिलाकर सभी 'आयातित' भाजपा उम्मीदवार न केवल हार गए बल्कि अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में तीसरे स्थान पर रहे। उप-चुनावों ने पंजाब की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ ला दिया है क्योंकि एक समय सत्ता में रहे भाजपा-शिअद गठबंधन के दोनों साझेदार हाशिए पर चले गए हैं।
 

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