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भारतीय-अमेरिकी 5 नवंबर को होने वाले चुनाव से पहले सतर्क, झुकाव हैरिस की ओर

समुदाय के सदस्य कमला हैरिस और ट्रम्प पर विभाजित हैं। उनका मानना ​​है कि चुनाव नतीजों का भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा, जो एक द्विदलीय प्राथमिकता है।

अमेरिका की उप राष्ट्रपति और राष्ट्रपति पद की डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस और रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प। / Reuters/File photo


संयुक्त राज्य अमेरिका 5 नवंबर को होने जा रहे महत्वपूर्ण चुनावों के लिए मतदान की दहलीज पर है। ऐसे में भारतीय-अमेरिकी समुदाय उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच होने वाली कांटे की टक्कर पर बारीकी से नजरें जमाये हुए है। 

40 लाख से अधिक भारतीय-अमेरिकियों के साथ यह समुदाय इस चुनाव चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेष रूप से कड़ी टक्कर वाले चुनाव मैदानों में जहां उनके वोट परिणाम निर्धारित कर सकते हैं।

इंडियास्पोरा के कार्यकारी निदेशक संजीव जोशीपुरा ने भारतीय अमेरिकी मतदाताओं के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि कोई भी पार्टी या राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार भारतीय अमेरिकी समुदाय की उपेक्षा नहीं कर सकता। चाहे वह नीतिगत इनपुट, सरकार में सेवा, धन उगाहने या अभियान स्टाफिंग और स्वयंसेवा के संदर्भ में हो भारतीय अमेरिकियों की आवाज सरकार के उच्चतम स्तर तक है। 

जोशीपुरा के अनुसार चुनाव को प्रभावित करने वाले मुद्दे आर्थिक चिंताओं और मतदाताओं के सामने आने वाली रोजमर्रा की चुनौतियों पर केंद्रित होंगे। लोग अर्थव्यवस्था और उनकी प्रगति की संभावनाओं के बारे में भी उम्मीदवार से उम्मीद रखते हैं। मुझे लगता है कि आप्रवासन और गर्भपात जैसे मुद्दे भी बड़ी भूमिका निभाएंगे।

राष्ट्रीय सर्वेक्षण ट्रम्प और हैरिस के बीच कांटे की टक्कर बता रहे हैं। इस परिदृश्य में भारतीय अमेरिकी व्यवसाय और राजनीतिक धन जुटाने वाले दिनेश शास्त्री का मानना ​​है कि हैरिस को फायदा दिखता है। खासकर ट्रम्प की विवादास्पद मैडिसन स्क्वायर गार्डन रैली के बाद जहां उन्होंने प्यूर्टो रिको का मजाक उड़ाया था।

शास्त्री ने न्यू इंडिया अब्रॉड को बताया कि पेंसिल्वेनिया में 500,000 प्यूर्टो रिकन्स और फ्लोरिडा में 12 लाख तथा उत्तरी कैरोलिना में 100,000 लोग हैं। वे सभी अमेरिकी नागरिक हैं क्योंकि प्यूर्टो रिको एक अमेरिकी क्षेत्र है। इसलिए ट्रम्प इससे उबर नहीं पाएंगे। ट्रम्प के उलट हैरिस ने वॉशिंगटन डी.सी. में एलिप्से में अपने भाषण के दौरान देश को एकजुट करने के लिए एक आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि जो लोग उनसे असहमत होंगे उन्हें भी अपनी बात रखने का अवसर मिलेगा। यह एक विजयी संदेश है। आप अंतिम सप्ताह में देखेंगे कि मतदान और अनिर्णित मतदाता हैरिस-वाल्ज के पक्ष में टूट जाएंगे। 

बकौल शास्त्री हैरिस-वाल्ज अप्रत्याशित राज्यों में जीतेंगे और डेमोक्रेट आश्चर्यजनक रूप से सीनेट सीटें और सदन में स्थिति मजबूत करेंगे। वैसे मुकाबला  उतना भी कांटे का नहीं है जितना लोग कह रहे हैं। आप देखना 5-6 नवंबर को नीली सुनामी आएगी। दक्षिण एशियाई मतदाता, विशेष रूप से भारतीय मतदाता हैरिस-वाल्ज को उत्तरी कैरोलिना और जॉर्जिया जीतने में मदद करेंगे।

चुनाव सर्वेक्षणों की अशुद्धियों पर सहमति व्यक्त करते हुए राजनीतिक रणनीतिकार और कपस्टोन स्ट्रैटेजीज के संस्थापक कपिल शर्मा ने तर्क दिया कि सर्वेक्षणकर्ता अक्सर ट्रम्प के समर्थन को कुछ प्रतिशत अंकों से कम बताते हैं। राष्ट्रपति पद की दौड़ में कोई स्पष्ट विजेता नहीं है। एक करीबी मुकाबला ट्रम्प के पक्ष में है। परिणाम की परवाह किए बिना दोनों पक्ष संभवतः किसी प्रकार की चुनावी धोखाधड़ी का दावा करेंगे। 

शर्मा कहते हैं कि किसी भी विजेता के लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि वह शालीन बने और देश को एकजुट करने का प्रयास करे। इस मामले में दोनों पार्टियां एक-दूसरे पर तोहमत लगाती हैं। 

जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है भारतीय अमेरिकी समुदाय पर नजर रखने के लिए एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बना हुआ है, जिसमें प्रमुख राज्यों में नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता है। एक हालिया सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि इस जनसांख्यिकीय का अधिकांश हिस्सा हैरिस की ओर झुकाव रखता है, जिसमें आप्रवासन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा पर उनकी नीतियों को महत्वपूर्ण कारक बताया गया है। हालांकि, समुदाय के भीतर एक बड़ा गुट अब भी ट्रम्प के संदेश से सहमत है। खासकर आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में।

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