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ट्रम्प के 'बर्थराइट सिटिजनशिप' रोकने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट में घमासान

यह आदेश अमेरिका के संविधान के 14वें संशोधन से टकराता है, जो कहता है कि अमेरिकी भूमि पर जन्मे हर व्यक्ति को नागरिकता मिलेगी।

जन्म के आधार पर नागरिकता को लेकर अमेरिका भर में बवाल / Reuters

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा जन्म के आधार पर नागरिकता को सीमित करने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई। अगर यह आदेश लागू होता है, तो हर साल अमेरिका में जन्म लेने वाले 1.5 लाख से ज्यादा बच्चों को नागरिकता नहीं मिलेगी। ट्रम्प ने 20 जनवरी को अपने कार्यकाल के पहले ही दिन ये आदेश जारी किया था, जिसके तहत सिर्फ उन्हीं बच्चों को नागरिकता दी जाएगी जिनके माता-पिता में से कम से कम एक अमेरिकी नागरिक या ग्रीन कार्डधारी हो।

संविधान की 14वीं संशोधन पर टकराव
यह आदेश अमेरिका के संविधान के 14वें संशोधन से टकराता है, जो कहता है कि अमेरिकी भूमि पर जन्मे हर व्यक्ति को नागरिकता मिलेगी। जस्टिस सोनिया सोतोमयोर ने चेताया कि यदि यह आदेश लागू हुआ तो कई बच्चे स्टेटलेस हो जाएंगे — यानी न अमेरिका की नागरिकता मिलेगी, न उनके माता-पिता के देश की।

सरकार ने क्या दलील दी?
सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल जॉन सॉयर ने कहा, “यह आदेश नागरिकता की वास्तविक परिभाषा को बचाने के लिए है, जो केवल पूर्व गुलामों और स्थायी निवासियों के बच्चों को देने के लिए बना था, अवैध प्रवासियों के लिए नहीं।”  सॉयर ने यह भी कहा कि न्यायाधीशों को पूरे देश में लागू होने वाले (यूनिवर्सल) रोक लगाने का अधिकार नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे सरकार की शक्ति बाधित होती है।

यह भी पढ़ें- ट्रम्प का दावा- भारत से आया जीरो टैरिफ ट्रेड डील का ऑफर

जजों ने उठाए सवाल
जस्टिस एलेना केगन ने पूछा कि अगर यह आदेश अवैध है, तो पूरे देश में इसे तुरंत कैसे रोका जाए? जस्टिस एमी कोनी बैरेट और नील गोरसच ने भी आदेश की वैधता पर त्वरित सुनवाई के रास्ते पूछे।

28 राज्यों में लागू हो सकता है ट्रम्प का आदेश?
सरकार चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट यूनिवर्सल रोक को खत्म कर दे और सिर्फ 22 राज्यों तथा व्यक्तिगत याचिकाकर्ताओं तक सीमित रखे। इससे यह आदेश बाकी 28 राज्यों में लागू हो सकता है।

सड़कों पर प्रदर्शन
सुप्रीम कोर्ट के बाहर 'जन्म से नागरिकता हमारा संवैधानिक अधिकार है' जैसे पोस्टर लिए लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। यह मामला अमेरिका के इतिहास, संविधान और मानवाधिकार के लिहाज़ से बेहद अहम माना जा रहा है।

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