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रोजाना 3000 कदम अल्जाइमर को कर सकता है धीमा, नई रिसर्च में दावा

4 नवंबर को Nature Medicine में प्रकाशित इस स्टडी में 50 से 90 वर्ष की उम्र के 296 लोगों के डेटा का विश्लेषण किया गया।

पैदल चलना अल्ज़ाइमर को कर सकता है धीमा / image provided

रोजाना 3,000 से 5,000 कदम चलना उन बुज़ुर्गों में अल्ज़ाइमर की प्रगति को धीमा कर सकता है, जो इस बीमारी के जोखिम में हैं। यह खुलासा मैस जनरल ब्रिघम के न्यूरोलॉजिस्ट जसमीर छठवाल की अगुवाई में हुए नए शोध में किया गया है।

कहां हुई रिसर्च?
4 नवंबर को Nature Medicine में प्रकाशित इस स्टडी में 50 से 90 वर्ष की उम्र के 296 लोगों के डेटा का विश्लेषण किया गया। इन सभी प्रतिभागियों को शुरुआत में कोई संज्ञानात्मक (कॉग्निटिव) समस्या नहीं थी और इन्हें 14 साल तक फॉलो किया गया। ब्रेन स्कैन से अमाइलॉयड-बेटा और टाउ प्रोटीन की मात्रा मापी गई—ये दोनों अल्ज़ाइमर से जुड़े होते हैं। साथ ही प्रतिभागियों के रोज़ाना के कदमों की गिनती पैडोमीटर से की गई।

क्या मिला नतीजा?
3,000 से 5,000 कदम चलने वाले लोगों में अन्य की तुलना में औसतन 3 साल तक अल्ज़ाइमर के लक्षण धीमे दिखे। 5,000 से 7,500 कदम चलने वालों में यह देरी बढ़कर 7 साल तक देखी गई। जो लोग बहुत कम चलते थे, उनमें टाउ प्रोटीन तेजी से बढ़ा और याददाश्त व रोज़मर्रा की गतिविधियों में गिरावट तेज़ हुई।

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छठवाल ने Harvard Gazette से कहा, “यह समझने में मदद मिलती है कि कुछ लोग, जिनमें अल्ज़ाइमर के शुरुआती संकेत दिखते हैं, वे दूसरों की तुलना में जल्दी क्यों नहीं बिगड़ते। जीवनशैली का असर बहुत शुरुआती चरण में ही दिखने लगता है।”

उच्च जोखिम वाले लोगों को सबसे ज्यादा फायदा
स्टडी में पाया गया कि जिन प्रतिभागियों में अमाइलॉयड-बेटा स्तर पहले से ज्यादा था, उनमें चलने का असर सबसे अधिक दिखा। ज्यादा कदम चलने से उनके दिमाग में टाउ प्रोटीन का जमाव धीमा हुआ और यही प्रक्रिया बीमारी की प्रगति को रोकने में अहम साबित हुई।
जिन लोगों में अमाइलॉयड-बेटा का स्तर सामान्य था, उनमें शारीरिक गतिविधि का बहुत फर्क नहीं दिखा क्योंकि उनमें स्वाभाविक रूप से गिरावट कम थी।

स्टडी की सह-प्रमुख शोधकर्ता और न्यूरोलॉजिस्ट रीसा स्परलिंग ने कहा कि यह शोध दिखाता है कि “अल्ज़ाइमर के शुरुआती या प्री-क्लिनिकल चरण में भी हम दिमाग को अधिक मजबूत और सक्षम बना सकते हैं।”

आगे क्या?
छठवाल की टीम अब यह समझने की कोशिश करेगी कि एक्सरसाइज़ की तीव्रता और लंबे समय तक की आदतें दिमाग पर कैसा असर डालती हैं। यह शोध—जिसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने भी समर्थन दिया—भविष्य में उन क्लिनिकल ट्रायल्स के लिए रास्ता खोल सकता है, जिनका लक्ष्य अल्ज़ाइमर की रफ्तार को धीमा करना है।

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