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खालसा सृजन दिवस: गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा स्थापित आत्मबल और मानवता की अद्वितीय मिसाल

1699 के वैशाखी दिवस पर श्री आनंदपुर साहिब की घटना अत्याचार, दमन, अन्याय, भेदभाव, झूठ, पाखंड और क्रूरता के खिलाफ एक बिगुल बनकर गूंजी।

खालसा सृजन दिवस / Wikipedia

1699 की वैशाखी का दिन श्री आनंदपुर साहिब में विश्व धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गया। इसी पावन दिन दसवें सिख गुरु, सर्वंसदानी श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की, जिसने मानवता के आध्यात्मिक और सामाजिक इतिहास में क्रांतिकारी बदलाव लाया।

खालसा की रचना, सिख कौम के लिए गौरवगाथा है। यह प्रत्येक सिख के भीतर एक अद्वितीय और संप्रभु पहचान का भाव जाग्रत करता है। खालसा वह आदर्श मानव है, जो समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत है और अन्याय व झूठ के खिलाफ एक मजबूत आवाज़। इस दिव्य स्वरूप में दसों गुरुओं की शिक्षाओं का सार समाहित है।

गुरु नानक देव जी ने कहा था:

"यदि तू प्रेम खेळण का चाओ रखदा है,
ते सिर धर तली गल मेरी आवे।" (SGGS 1410)

गुरु नानक देव की यह वाणी आत्मबलिदान की प्रेरणा देती है। समय के साथ आने वाले गुरुओं ने इसी संदेश को सिख संगत में गहराई से उतारा। और अंततः वैशाखी 1699 को, गुरु गोबिंद सिंह जी ने अमृत पान की परंपरा द्वारा खालसा की विधिवत स्थापना की।

इस दिन पांच प्यारे, जिनका चयन स्वयं गुरु ने किया, अमृत के द्वारा दीक्षित हुए। फिर वही गुरु गोबिंद सिंह जी—जिन्होंने उन्हें अमृत दिया था—उन्हीं पांचों से अमृत लेकर यह दर्शाया कि गुरु और शिष्य में कोई भेद नहीं है। भाई गुरदास जी ने लिखा: "वाह-वाह गोबिंद सिंह, आपे गुरु चेला।"

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इस दिन खालसा ने अत्याचार, भेदभाव, अन्याय और असत्य के विरुद्ध आवाज़ उठाने की शपथ ली। खालसा केवल एक धार्मिक संस्था नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है—जो केवल एक अकाल पुरख को मानता है, झूठ-धोखे से दूर रहता है और पाँच ककारों—केश, कृपाण, कड़ा, कंघा, और कछैरा—की मर्यादा में जीता है।

खालसा का जीवन एक सच्चे संत-सिपाही का जीवन है। सेवा, साहस, सत्य और शहादत उसके जीवन मूल्य हैं। खालसा वह शक्ति है जो अत्याचार के विरुद्ध खड़ी होती है और पीड़ितों के साथ रहती है।

आज के युग में, जब तकनीक और सूचना की प्रगति से नैतिक मूल्य छूटते जा रहे हैं, ऐसे समय में खालसा की विचारधारा और भी प्रासंगिक हो गई है। सिख युवाओं को अपने इतिहास, विरासत और मर्यादा से जोड़ना आज की महती आवश्यकता है। गुरबाणी और गुरमत का पालन ही सच्ची खालसाई जीवनशैली है।

आज खालसा सृजन दिवस के अवसर पर हम सब संकल्प लें— कि हम अमृतधारी बनें, गुरुओं की राह पर चलें, और "एक पिता एकस के हम बालक" के संदेश को अपनाते हुए संपूर्ण मानवता की सेवा करें।

गुरु नानक साहिब के पंथ को मानने वाले सभी श्रद्धालुओं को खालसा स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई।

-लेखक: अध्यक्ष, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, श्री अमृतसर

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं, और जरूरी नहीं कि New India Abroad की आधिकारिक नीति या मत को दर्शाते हों।)

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