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भारत में वोटर लिस्ट सुधार की बड़ी शुरुआत! अब होगी पारदर्शिता?

तीन महीने तक चलने वाला यह मतदाता पंजीकरण अभियान 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू हुआ है जिनमें से कई में अगले वर्ष स्थानीय चुनाव होने हैं। इसे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) कहा जा रहा है।

Representative Image / PIB

भारत ने 4 नवंबर को अपनी मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। हालांकि इसका विरोध भी किया जा रहा है। कुछ एक्टिविस्ट ने चेतावनी दी है कि यह कदम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मताधिकार छीनने की स्थिति पैदा कर सकता है।

तीन महीने तक चलने वाला यह मतदाता पंजीकरण अभियान 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू हुआ है जिनमें से कई में अगले वर्ष स्थानीय चुनाव होने हैं। इसे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) कहा जा रहा है। लाखों चुनाव अधिकारियों और लगभग पांच लाख स्वयंसेवकों को घर-घर जाकर मतदाता पंजीकरण फॉर्म भरने में लोगों की मदद करने का कार्य सौंपा गया है।

चुनाव आयोग के प्रमुख ज्ञानेश कुमार ने घोषणा करते हुए कहा कि अधिकारी मतदाता को फॉर्म भरने में मदद करेंगे, उसे एकत्र करेंगे और जमा करेंगे।

इससे पहले इसी साल चुनाव आयोग ने बिहार में इसी तरह का पुनरीक्षण अभियान चलाया था जहां 13 करोड़ से अधिक की आबादी है। बिहार विधानसभा चुनाव 6 नवंबर से शुरू हो रहे हैं। इस प्रक्रिया में लगभग 65 लाख नाम हटाए गए जिसके बारे में आयोग ने कहा कि यह विदेशी अवैध प्रवासियों को सूची में शामिल होने से रोकने के लिए आवश्यक था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सदस्यों का लंबे समय से दावा है कि पड़ोसी बांग्लादेश से आए अवैध मुस्लिम प्रवासी धोखाधड़ी से मतदाता के रूप में पंजीकरण करा चुके हैं। हालांकि आलोचकों का कहना है कि कठोर दस्तावेजी नियमों के कारण बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों के नाम भी गलत तरीके से सूची से हट सकते हैं।

एक्टिविस्ट्स ने कई ऐसे मामले दर्ज किए हैं जिनमें जीवित मतदाताओं को मृत घोषित कर दिया गया और पूरे परिवारों के नाम ड्राफ्ट सूची से हटा दिए गए। अगस्त में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कुछ चिंताओं को दूर करते हुए यह निर्णय दिया कि व्यापक रूप से उपयोग होने वाला आधार कार्ड इस प्रक्रिया में वैध पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

इस नए SIR अभियान में प्रमुख राज्य जैसे उत्तर प्रदेश (19.9 करोड़ आबादी), पश्चिम बंगाल (9.1 करोड़), तमिलनाडु (7.2 करोड़) और केरल (3.3 करोड़) शामिल हैं। ये आंकड़े 2011 की जनगणना के अनुसार हैं। कई मानवाधिकार संगठनों और विपक्षी दलों ने इस अभियान के खिलाफ कानूनी सहारा लिया है।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन की पार्टी ने 3 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है जिसमें इस अभियान को वास्तविक मतदाताओं के नाम हटाने की एक चाल बताया है। उन्होंने 2 नवंबर को विपक्षी दलों से कहा है कि  मतदान लोकतंत्र का शरीर और आत्मा है और यह अधिकार खतरे में है। अंतिम मतदाता सूची 7 फरवरी 2026 को जारी की जाएगी।

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