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भारत जल और ऊर्जा सुरक्षा को मानवाधिकारों से जोड़ने की राह पर...

इंडिया वाटर फाउंडेशन ने निष्कर्ष निकाला कि दोहरा-न्यायसंगत परिवर्तन एक अनुकरणीय मॉडल प्रस्तुत करता है जहां जलवायु लक्ष्य, सामाजिक समानता और पारिस्थितिक संरक्षण एक-दूसरे को सुदृढ़ करते हैं।

इंडिया वाटर फाउंडेशन ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को एक बयान के माध्यम से यह जानकारी दी है। / Wikipedia

इंडिया वाटर फाउंडेशन ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को बताया है कि भारत एक 'दोहरे न्यायोचित परिवर्तन' का प्रयास कर रहा है जो जल और ऊर्जा सुरक्षा को मानवाधिकारों से जोड़ता है। फाउंडेशन ने साथ ही यह भी कहा कि यह दृष्टिकोण संवैधानिक गारंटी, सहभागी शासन और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर आधारित है।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को दिए एक लिखित बयान में इंडिया वाटर फाउंडेशन ने कहा कि समूह ने सर्वोच्च न्यायालय के 2024 के उस फैसले पर प्रकाश डाला है जिसमें मौलिक अधिकारों का विस्तार करते हुए स्वच्छ जल, स्थिर जलवायु और प्राकृतिक संसाधनों तक समान पहुंच को भी शामिल किया गया है। बयान में कहा गया है कि यह न्यायशास्त्र बिना किसी भेदभाव के आवश्यक सेवाएं सुनिश्चित करने की सरकार और कॉर्पोरेट जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।

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