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हिमालयी राज्य के लिए हुए संघर्ष का काला दिन, जिसने भारतीयों के दिल पर छोड़े गहरे जख्म

2 अक्टूबर गांधी जयंती के दिन हिमालयी राज्य उत्तराखंडवासी रामपुर तिराहा कांड के उस काले दिन को भी याद करते हैं, जिसने उनके दिलों में गहरे जख्म छोड़ दिए।

उत्तराखंड आंदोलन की एक तस्वीर। /

2 अक्टूबर का दिन दुनियाभर में गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। अंहिसा की मूर्ति महात्मा गांधी के जन्मदिन के अलावा यह दिन हिमालयी राज्य उत्तराखंड के लिए किसी जख्म की तरह आज भी सीने में दर्ज है। इसी दिन उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर चल रहे शांतिपूर्ण आंदोलन पर पुलिस ने लाठियां बरसाईं, गोलियां चलाईं और महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया। इसे इतिहास में रामपुर तिराहा कांड के नाम से जाना जाता है।

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आंदोलन
1990 के दशक की शुरुआत में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) में अलग राज्य की मांग तेज हो चुकी थी। पर्वतीय इलाकों की भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक चुनौतियां बाकी उत्तर प्रदेश से बिल्कुल अलग थीं। जनता महसूस कर रही थी कि इन समस्याओं को हल करने के लिए अलग प्रशासनिक इकाई जरूरी है। 2 अक्टूबर 1994 को हजारों आंदोलनकारी दिल्ली जाकर शांतिपूर्ण तरीके से अपनी आवाज संसद तक पहुंचाना चाहते थे।

2 अक्टूबर 1994 की सुबह
रामपुर (मुरादाबाद के पास) के तिराहे पर जब दिल्ली की ओर बढ़ रहे आंदोलनकारियों का जत्था पहुंचा, तो पुलिस ने उन्हें रोक लिया। इसके बाद जो हुआ, वह लोकतंत्र के माथे पर कलंक की तरह दर्ज है। पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गए। महिलाओं से अभद्रता की गई, उनके कपड़े फाड़े गए और रेप किया गया। ये घटनाएं आज भी हिमालयी राज्यवासियों के सीने में चुभती हैं। कई घायल आंदोलनकारी अस्पताल तक नहीं पहुंच पाए।

इस घटना ने पूरे उत्तराखंड को झकझोर दिया। 2000 में उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा तो मिल गया, लेकिन रामपुर तिराहा कांड के पीड़ितों को आज तक पूरा न्याय नहीं मिल पाया।

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