ADVERTISEMENT

ADVERTISEMENT

समोसे से लेकर केसर कॉकटेल तक: अमेरिका के स्वाद पर छा गया भारतीय खाना

सैन फ्रांसिस्को में रहने वाली पहली पीढ़ी की प्रवासी शेफ पद्मा बीते 20 वर्षों से अपने परिवार और ग्राहकों के लिए इडली-दोसा से लेकर परुप्पु पायसम जैसे पारंपरिक दक्षिण भारतीय व्यंजन तैयार कर रही हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर / image provided

भारतीय व्यंजन अब सिर्फ घर-परिवार की याद नहीं, बल्कि अमेरिकी खानपान संस्कृति का अहम हिस्सा बन चुके हैं। चाहे न्यूयॉर्क की सड़कों पर महकते समोसे हों, सैन फ्रांसिस्को के कैफ़े में 'चाय लाटे' हो या नेशविल के रेस्टोरेंट में 'केसर कॉकटेल' — भारतीय स्वाद अब हर जगह अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है।

सैन फ्रांसिस्को में रहने वाली पहली पीढ़ी की प्रवासी शेफ पद्मा बीते 20 वर्षों से अपने परिवार और ग्राहकों के लिए इडली-दोसा से लेकर परुप्पु पायसम जैसे पारंपरिक दक्षिण भारतीय व्यंजन तैयार कर रही हैं। उनके लिए खाना सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि पहचान, परंपरा और जड़ों से जुड़ाव का प्रतीक है — ऐसा एहसास जो उन्हें अपने देश की याद दिलाता है।

आज भारतीय व्यंजन अमेरिका के बड़े शहरों के मुख्यधारा मेन्यू में शामिल हो चुके हैं। मशहूर भारतीय शेफ्स जैसे विकास खन्ना (Bungalow, न्यूयॉर्क), मनीत चौहान (Chauhan Ale & Masala House, नेशविल) और सुवीर सारन न्यूयॉर्क — पहला भारतीय रेस्तरां जिसे मिला मिशेलिन स्टार) ने भारतीय खानपान को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।

यह भी पढ़ें- भारतवंशी क्रिएटर्स ने बदली डिजिटल कहानी की परिभाषा, Netflix से टिकटॉक तक गूंज रही पहचान की आवाज

खानपान के इस 'एवोल्यूशन' का भारतीय-अमेरिकियों के लिए गहरा भावनात्मक महत्व है। 'मां के हाथ का खाना' जैसी यादें ही वो भाव हैं जो प्रवासी भारतीयों को अपनी मिट्टी से जोड़े रखते हैं। यही वजह है कि अब अमेरिका में दीवाली पार्टीज़, होली ब्रंच और ईद डेज़र्ट मार्केट्स आम हो चुके हैं — जहां खाने के ज़रिए संस्कृतियां एक-दूसरे से मिलती हैं।

समय के साथ भारतीय व्यंजन ने परंपरा और आधुनिकता का शानदार संगम रचा है — गुलाब जामुन चीज़केक, तंदूरी टैको और केसर-इंफ्यूज्ड कॉकटेल्स इसका ताज़ा उदाहरण हैं। ये न सिर्फ स्वाद में नवाचार हैं बल्कि यह भी दिखाते हैं कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय ने अपनी जड़ों को सम्मान देते हुए अमेरिकी रचनात्मकता को अपनाया है।

आज भारतीय भोजन ने अमेरिकी समाज में अपनी एक नई पहचान बनाई है। पहले जहां ‘करी’ शब्द किसी भी भारतीय व्यंजन का प्रतीक माना जाता था, वहीं अब अमेरिकी उपभोक्ता पाव भाजी, दाल-चावल या रोगन जोश के वास्तविक स्वाद और पहचान को समझने लगे हैं।

प्यू रिसर्च सेंटर की 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में एशियाई रेस्टोरेंट्स में भारतीय भोजनालयों की हिस्सेदारी भले ही 7% हो, लेकिन भारतीय मसालों, घी और हल्दी ने अमेरिकी रसोई को गहराई से प्रभावित किया है।

भारतवंशी शेफ और क्रिएटर्स अब सिर्फ अपनी परंपरा को नहीं बचा रहे, बल्कि उसे नए स्वाद, नई प्रस्तुति और नए अर्थों में गढ़ रहे हैं। उनके लिए हर थाली अब सिर्फ भोजन नहीं — बल्कि पहचान, याद और नवाचार की कहानी है।

Comments

Related

ADVERTISEMENT

 

 

 

ADVERTISEMENT

 

 

E Paper

 

 

 

Video