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फिल्म समीक्षा: तेरे इश्क में

फिल्म में सेकेंड हाफ थोड़ा आराम से बनता तो यह फिल्म रांझणा से कहीं कमजोर न होती।

फिल्म का पोस्टर / courtesy

फिल्में समाज का आईना होती हैं, यह हमने सुना है। फिर भी समाज को देखने, समझने का नजरिया व्यक्ति दर व्यक्ति अलग हो सकता है। मेरे हिसाब से हिंसा कभी भी प्रेम का हिस्सा नहीं हो सकती। इस मनोविज्ञान को समझते हुए क्या खूब लिखी गई फिल्म तेरे इश्क में यह लाइन- मैं इस वक्त जल रहा हूं। या तो मुझे मार डालो, या मुझे चूमो या फिर मेरे साथ छत से कूद पड़ो।

प्रेम में यह तीनों भावनाएं अलग-अलग व्यक्ति एक ही सिचुएशन पर सोच सकता है, कर सकता है।

तेरे इश्क में, मुझे कई फिल्मों की कॉकटेल लगी। खास कर, उसने कहा था, खामोशी, टॉप गन की। साथ ही साथ रांझणा से गुणा-भाग तो है ही। फिल्म में कई चीजें ऊटपटांग हैं और कई ऊटपटांग होती हुई भी जीवन का सच।

जैसे, कृति सेनन यानी मुक्ति का पार्ट। यह कई जगह और इत्मीनान मांगता है। फिल्म ऑलरेडी बड़ी है तो सेकेंड हाफ हड़बड़ा के पूरा कर दिया गया। रांझणा में जो दर्द नायक ने सहा वह तेरे इश्क में नायिका के हिस्से दिया गया है। फिल्म उन्माद, प्रेम, क्रोध और हिंसा के बीच से गुजरती हुई प्रैक्टिकल लाइफ, सेल्फ रियलाइजेशन और थोड़ी स्पिरिचुआलिटी से होती हुई मुक्ति को ढूंढती भटकती रहती है।

देखने में कृति का पार्ट कमजोर लगता है पर ध्यान देने पर नजर आता है, वह एक आत्मविश्वासी, समझदार, भावुक और संपन्न महिला है। जिस परिवेश से वह आती है उसमें हिंसा शारीरिक नहीं मानसिक तौर पर की जाती है। वह समझती है शंकर के साथ वह खुद नहीं ए़डजस्ट कर पाएगी। कई बार प्रेम ही सब नहीं होता और कई बार प्रेम ही सब है। यह कृति यानी मुक्ति के पार्ट से समझा जा सकता है।

फिल्म में बहुत कुछ न होके और सेकेंड हाफ थोड़ा आराम से बनता तो यह फिल्म रांझणा से कहीं कमजोर न होती।

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