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फिल्म समीक्षा: तपन सिन्हा की 'आदमी और औरत' इंसानियत और उम्मीद का आईना

कहानी में एक ऐसा आदमी है जिसकी आंखों में सिर्फ़ वासना है, जो औरत को सिर्फ़ अपनी लस्ट का शिकार बनाना चाहता है।

एक फिल्म जो महज़ पर्दे पर चलने वाली कहानी नहीं, बल्कि जीवन के गहरे अनुभवों को दर्शाती है। इसमें हर दृश्य जीवन की कठोरता, दयालुता, विश्वास और उम्मीद का संदेश देता है।

कहानी में एक ऐसा आदमी है जिसकी आंखों में सिर्फ़ वासना है। उसका चरित्र देखने में लीच (जोंक) जैसा लगता है, जो औरत को सिर्फ़ अपनी लस्ट का शिकार बनाना चाहता है। इसी बीच चार भले इंसान, वीरान जंगल में उस औरत को उसके हाल पर छोड़, अपनी यात्रा पर आगे बढ़ जाते हैं। पीछे रह जाता है वही कामुक आदमी और औरत की असली परीक्षा शुरू होती है।

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फिल्म यह सिखाती है कि शारीरिक कामना से परे, मन का महत्व कहीं बड़ा है। इंसानियत, विश्वास और हिम्मत ही इंसान को विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकालते हैं।

कहानी में एक और किरदार है – फॉरेस्टर। वह मदद के लिए आता तो है, लेकिन एक हद तक इंसानियत निभाने के बाद नौकरी का हवाला देकर लौट जाता है। यही फिल्म का कटाक्ष है – जब सिस्टम और इंसानियत आमने-सामने आते हैं, तो अक्सर जीत सिस्टम की होती है।

तपन सिन्हा ने बहुत ही मार्मिक ढंग से यह दिखाया कि दुख और निराशा के समय बातचीत और संवाद ज़रूरी हैं। यह मन को भटकाते हैं और दर्द को सहने की शक्ति देते हैं।

फिल्म का अधिकांश हिस्सा वीरान जंगल, ऊबड़-खाबड़ रास्तों और तूफ़ानी नदी के किनारे फिल्माया गया है। दृश्य इतने वास्तविक लगते हैं कि दर्शक सोचने पर मजबूर हो जाता है – काश विकास के नाम पर यहां सड़क होती, काश नदी पर पुल होता और काश चार अच्छे लोग सच में दिल से भी अच्छे होते।

यह फिल्म केवल एक कहानी नहीं, बल्कि इंसानियत, हिम्मत और उम्मीद का सबक है। तपन सिन्हा ने दिखा दिया कि सिनेमा मनोरंजन से कहीं ज़्यादा, समाज और जीवन का आईना भी हो सकता है।

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