अमेरिका और भारत के बीच रिश्तों पर टैरिफ़ और बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों का दबाव बढ़ता जा रहा है। इसी पृष्ठभूमि में वॉशिंगटन डीसी में विशेषज्ञों, रणनीतिकारों और पूर्व राजनयिकों ने बैठक कर यह चर्चा की कि क्या दुनिया की दो सबसे बड़ी लोकतांत्रिक ताकतें इस साझेदारी को मज़बूती से थाम पाएंगी या फिर यह रिश्ते दरारों में फँस जाएंगे।
यह राउंडटेबल फ़ाउंडेशन फ़ॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज (FIIDS) की ओर से आयोजित की गई थी। बैठक का फोकस राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से लगाए गए टैरिफ़, रूस से भारत के तेल व्यापार और बदलती वैश्विक रणनीति पर था।
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अमेरिकी विशेषज्ञों की चेतावनी
अमेरिकन एंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ शोधकर्ता और पूर्व पेंटागन अधिकारी माइकल रुबिन ने कहा कि वॉशिंगटन की चुप्पी इस समय भारत के साथ रिश्तों पर भारी पड़ सकती है। उन्होंने सवाल उठाया—अगर आज आप ट्रम्प के आगे खड़े होने से डरते हैं, तो पाकिस्तान और चीन के खिलाफ भरोसा कैसे किया जा सकता है?
‘रिश्ते मज़बूत, मुश्किलें अस्थायी’
FIIDS के संयोजक खंदराव कांड ने कहा कि मौजूदा चुनौतियों से रिश्ते टूटने वाले नहीं हैं। अमेरिका–भारत संबंध हमेशा द्विदलीय सहमति पर टिके रहे हैं। टैरिफ़ और प्रतिबंध बड़ी रुकावटें हैं, लेकिन इनसे निकला जा सकता है। भारत न सिर्फ सबसे बड़ा लोकतंत्र है बल्कि तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। अमेरिका के लिए भारत भविष्य की भू-राजनीति का स्तंभ है।
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