अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित पारस्परिक टैरिफ (Reciprocal Tariff) का असर भारतीय रुपये और बॉन्ड बाजार पर दिख सकता है। निवेशक इस टैरिफ के वैश्विक व्यापार और आर्थिक विकास पर प्रभाव को आंकने में जुटे हैं, वहीं सरकारी बॉन्ड यील्ड में गिरावट की संभावना जताई जा रही है।
रुपये की मजबूती पर मंडराते खतरे
पिछले हफ्ते भारतीय रुपया 85.47 प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ था। मार्च में रुपये ने 2.3% की बढ़त दर्ज की, जो छह साल में सबसे बड़ा मासिक उछाल था। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) और कॉर्पोरेट गतिविधियों से डॉलर प्रवाह बढ़ने के कारण रुपये को यह मजबूती मिली। हालांकि, इस हफ्ते अमेरिकी टैरिफ नीति रुपये के लिए नए जोखिम खड़े कर सकती है। ट्रम्प प्रशासन 2 अप्रैल को पारस्परिक शुल्कों की घोषणा करेगा, जिसके तहत अमेरिका उन देशों पर समान शुल्क लगाएगा, जो अमेरिकी निर्यात पर शुल्क लगाते हैं।
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के मुताबिक, "भारत के बाहरी क्षेत्र में असंतुलन की प्रमुख वजह अमेरिका की व्यापार नीतियों को लेकर जारी अनिश्चितता बनी रहेगी।" उनकी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वित्त वर्ष 2026 में डॉलर-रुपया विनिमय दर 85-89 के दायरे में रह सकती है।
RBI की प्रतिक्रिया पर रहेगी नजर
रुपये के उतार-चढ़ाव पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण होगी। एक प्रमुख मुंबई स्थित बैंक के ट्रेडर के अनुसार, "अगर अमेरिकी टैरिफ नीति से कोई नकारात्मक सरप्राइज मिलता है, तो RBI रुपये में गिरावट को रोकने के बजाय उसे स्वाभाविक रूप से गिरने दे सकता है।" इसके अलावा, अमेरिका के आर्थिक आंकड़े और फेडरल रिजर्व के अधिकारियों के बयानों पर भी निवेशकों की नजर बनी रहेगी, क्योंकि इससे डॉलर की चाल प्रभावित हो सकती है।
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बॉन्ड यील्ड में गिरावट जारी
भारतीय बॉन्ड बाजार में 10-वर्षीय बेंचमार्क बॉन्ड यील्ड इस हफ्ते 6.52%-6.60% के दायरे में रहने की संभावना है। शुक्रवार को यह 6.5823% पर बंद हुई, जो पूरे हफ्ते में 4 बेसिस पॉइंट (bps) की गिरावट दर्शाता है। मार्च में बॉन्ड यील्ड 15 बेसिस पॉइंट गिरी, जो 10 महीनों में सबसे बड़ी मासिक गिरावट रही। वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान अब तक 47 बेसिस पॉइंट की गिरावट देखी गई, जो पिछले पांच वर्षों में सबसे बड़ी गिरावट है। बॉन्ड यील्ड में इस गिरावट के पीछे विदेशी पूंजी प्रवाह और वैश्विक केंद्रीय बैंकों की नरम नीतियों का योगदान रहा। बाजार के जानकारों को उम्मीद है कि नए वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भी यह रुझान बना रहेगा।
RBI से दर कटौती की उम्मीद
RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की अगली बैठक 9 अप्रैल को होगी, जिसमें लगातार दूसरी बार ब्याज दरों में कटौती का अनुमान लगाया जा रहा है। रॉयटर्स के एक सर्वे के अनुसार, अगस्त 2025 में एक और दर कटौती हो सकती है, जिससे यह अब तक का सबसे छोटा नीतिगत नरमी चक्र बन जाएगा। फरवरी में घरेलू खुदरा महंगाई दर 3.61% पर आ गई थी, जो जुलाई 2024 के बाद का सबसे निचला स्तर है। जनवरी में यह 4.26% थी। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि मार्च में भी महंगाई दर इसी दायरे में रहेगी, जिससे RBI को नीतिगत दरों में कटौती करने का अवसर मिलेगा। BofA ग्लोबल रिसर्च के इंडिया एवं ASEAN इकनॉमिक रिसर्च प्रमुख राहुल बजोरिया का कहना है, "RBI की फरवरी की बैठक में दर कटौती चक्र की शुरुआत हुई थी। हमें उम्मीद है कि अप्रैल में यह सिलसिला जारी रहेगा और केंद्रीय बैंक आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन देने के लिए कुछ नीतिगत संकेत भी देगा।"
सरकार की ऋण नीलामी (debt auction) प्रक्रिया इस हफ्ते फिर शुरू होगी। अप्रैल-सितंबर की अवधि में नई दिल्ली द्वारा अपेक्षाकृत कम बॉन्ड आपूर्ति किए जाने के फैसले से यील्ड कर्व में और गिरावट देखी जा सकती है।
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