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ट्रम्प की नीतियों के बीच भारत का झुकाव BRICS की ओर तेज: रिपोर्ट

रिपोर्ट का केंद्रीय निष्कर्ष यह है कि अगर यह टकराव जारी रहा, तो भारत अपने वैश्विक साझेदारी नेटवर्क को और विविध करेगा और BRICS जैसे मंचों को अधिक महत्व देगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर / Courtesy Photo

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल की नीतियों ने भारत-अमेरिका संबंधों में दो दशकों से बने भरोसे को झटका दिया है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, वॉशिंगटन की अनिश्चित और आक्रामक आर्थिक नीतियों के चलते भारत अब रूस के साथ अपने रिश्ते और मज़बूत कर सकता है और BRICS मंच का और अधिक प्रभावी तरीके से इस्तेमाल कर सकता है।

वन वर्ल्ड आउटलुक की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और अमेरिका के संबंध पूरी तरह टूटेंगे नहीं, लेकिन भारत अब अधिक “हैजिंग” यानी संतुलन की रणनीति अपनाएगा। इसका असर मिस्ड डिफेंस डील्स, धीमी टेक साझेदारी और उन मामलों में सावधानी के रूप में दिख सकता है, जहाँ भारत को अमेरिका के लिए जोखिम उठाना पड़ता है।

वॉशिंगटन में तेज बहस
अमेरिकी डेमोक्रेटिक सांसद सिडनी कैमलेगर-डव ने चेतावनी दी है कि ट्रम्प का टैरिफ रेजीम अमेरिका के सबसे महत्वपूर्ण गठबंधनों में से एक भारत को “लंबे समय का नुकसान” पहुंचा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि बाइडन प्रशासन ने क्वाड, डिफेंस टेक इनिशिएटिव और सप्लाई-चेन साझेदारी के ज़रिए जो प्रगति की थी, ट्रम्प ने उसे “टॉयलेट में फ्लश कर दिया”।

यह भी पढ़ें- अमेरिका ने सख्त किए आव्रजन नियम, भारतीयों पर क्या पड़ेगा प्रभाव?

कई थिंक-टैंक विश्लेषकों ने कहा कि वर्षों की धीरे-धीरे हुई प्रगति अब फिर से शिकायतों और दबाव वाली राजनीति के फेर में फंस गई है।

भारत का रुख: विविधीकरण और BRICS पर फोकस
रिपोर्ट के अनुसार भारत अब अपनी रणनीति को तेजी से विविध कर रहा है—वह BRICS और ग्लोबल साउथ मंचों को मज़बूत करने पर जोर दे रहा है, वैकल्पिक भुगतान प्रणालियों में दिलचस्पी दिखा रहा है और यूरोपीय, जापानी व मध्य-पूर्वी निवेशकों के सामने खुद को एक उभरते हुए बड़े मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में आक्रामक तरीके से पेश कर रहा है।
रिपोर्ट का कहना है कि अगर अमेरिका आर्थिक जुड़ाव को “गाजर” की बजाय “डंडे” की तरह इस्तेमाल करता रहा, तो भारत अमेरिका को सिर्फ कई साझेदारों में से एक मानेगा—ना कि कोई विशेष प्राथमिकता वाला साझेदार।

रूस के साथ संबंधों पर भी दबाव
रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि भारत के रूस के साथ रक्षा और ऊर्जा संबंधों को लेकर अमेरिका भविष्य में “सेकेंडरी सैंक्शन” भी लगा सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, “दिल्ली की नजर से ये सभी खतरे मिलकर भारतीय सामरिक स्वायत्तता पर अमेरिकी अविश्वास को दर्शाते हैं, जबकि वॉशिंगटन चाहता है कि भारत इंडो-पैसिफिक में अग्रिम पंक्ति का साझेदार बने।”

25% अतिरिक्त टैरिफ से बढ़ा तनाव
अमेरिका द्वारा भारतीय आयात पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाने से यह तनाव और बढ़ गया है। कुछ उत्पादों पर कुल शुल्क 50% तक हो गया है, जिसका खास असर टेक्सटाइल, फुटवियर और ज्वेलरी जैसे श्रम-प्रधान सेक्टर्स पर पड़ा है।

रिपोर्ट का केंद्रीय निष्कर्ष यह है कि अगर यह टकराव जारी रहा, तो भारत अपने वैश्विक साझेदारी नेटवर्क को और विविध करेगा और BRICS जैसे मंचों को अधिक महत्व देगा, जो वॉशिंगटन-नई दिल्ली संबंधों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

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