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डॉलर की पकड़ ढीली, सोना बना भरोसे की नई करेंसी

सोना अब भरोसे का साझा प्रतीक है। ब्रिक्स किसी नई करेंसी से डॉलर को बदलना नहीं चाहता, बल्कि ऐसा सिस्टम बना रहा है जहां कोई एक देश मूल्य तय न करे।

gold / pexles

सोना अब सिर्फ चमक नहीं रहा, बोल भी रहा है और जो कह रहा है, वह अमेरिकी डॉलर के लिए अच्छा संकेत नहीं है। 2025 में सोने की रिकॉर्ड तोड़ बढ़त के पीछे सिर्फ 'सेफ इन्वेस्टमेंट' की मानसिकता नहीं, बल्कि दुनिया की आर्थिक व्यवस्था में एक शांत लेकिन गहरी हलचल छिपी है। एक ऐसा दौर, जिसमें राष्ट्र एकल-मुद्रा आधारित सिस्टम से निकलकर बहु-मुद्रा आधारित वित्तीय व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं।

डेटा में छिपा ट्रेंड

विश्व स्वर्ण परिषद (WGC) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, तीसरी तिमाही में वैश्विक गोल्ड डिमांड 1,313 टन पर पहुंच गई, अब तक की सबसे ऊंची। मूल्य के लिहाज से यह करीब 146 अरब डॉलर की खरीदारी है, जो पिछले साल की तुलना में 44% ज़्यादा है। केंद्रीय बैंकों ने इस अवधि में 220 टन सोना खरीदा, यानी 28% की वृद्धि। एक यूरोपीय निवेश विशेषज्ञ के शब्दों में, 'अब ये डाइवर्सिफिकेशन नहीं, बल्कि रीपोज़िशनिंग है। सेंट्रल बैंक अब महंगाई से नहीं, बल्कि वॉशिंगटन से बचाव के लिए सोना खरीद रहे हैं।'

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इतिहास खुद को दोहरा रहा है

कभी वेनिस का डुकैट, फिर स्पेन का रियल, उसके बाद डच गिल्डर और ब्रिटिश पाउंड हर युग की अपनी वैश्विक करेंसी रही है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1944 में ब्रेटन वुड्स सिस्टम के ज़रिए अमेरिकी डॉलर ने वैश्विक वर्चस्व कायम किया, पर अब आठ दशक बाद वही डॉलर विश्वसनीयता की परीक्षा से गुजर रहा है। एक सिंगापुर स्थित अर्थशास्त्री कहते हैं, 'हर प्रभुत्वशाली करेंसी की उम्र सीमित होती है। डॉलर अब उस मोड़ पर है, जहाँ विश्वास नीति में बदल रहा है।'
 

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