ADVERTISEMENTs

ट्रम्प 2.0: भारत-अमेरिका संबंधों का नया अध्याय, भारतीय-अमेरिकियों की अहम भूमिका

ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल से भारत-अमेरिका के संबंधों में नए आयाम जुड़ने की उम्मीद है। ये बढ़ता हुआ संबंध, जिसकी नींव साझे लोकतांत्रिक मूल्यों, आर्थिक तालमेल और सामरिक हितों पर है, दोनों देशों के लिए बहुत अच्छे परिणाम लेकर आएगा।

अरुण अग्रवाल डलास स्थित समूह नेक्स्ट के सीईओ, टेक्सास आर्थिक विकास निगम के अध्यक्ष हैं। / NIA

सोमवार, 20 जनवरी को पूरी दुनिया की निगाहें वॉशिंगटन डीसी में नेशनल मॉल के पूरब छोर पर होंगी। वो 232 साल पुरानी उस इमारत को काफी ध्यान से देखेंगे जो नियोक्लासिकल स्टाइल में बनी है और उसके उत्तर में कॉन्स्टिट्यूशन एवेन्यू और दक्षिण में इंडिपेंडेंस एवेन्यू है। 'पीपुल्स हाउस', जिसे आम तौर पर यूएस कैपिटल बिल्डिंग के नाम से जाना जाता है, इस साल के इनॉगरेशन की मेजबानी करेगा, जैसे उसने 1945 से हर राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में की है।

जब राष्ट्रपति ट्रम्प अपना बायां हाथ बाइबल पर रखेंगे, हो सकता है कि वो अब्राहम लिंकन वाली बाइबल हो जैसा उन्होंने 2017 में किया था, और '...संविधान का समर्थन और बचाव करने की शपथ लेंगे...', तो ये कई चीजों के साथ-साथ, भारत के साथ एक बेहतर सामाजिक-आर्थिक साझेदारी की ओर एक महत्वपूर्ण (आपसी फायदेमंद) कदम भी होगा। 

जैसे ही नई राष्ट्रपति सरकार सत्ता में आएगी, अमेरिका-भारत के रिश्तों में काफी तरक्की होने की उम्मीद है। ये बढ़ता हुआ संबंध, जिसकी नींव साझे लोकतांत्रिक मूल्यों, आर्थिक तालमेल और सामरिक हितों पर है, दोनों देशों के लिए बहुत अच्छे परिणाम लेकर आएगा। इससे द्विपक्षीय संबंध मजबूत होंगे और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि बढ़ेगी।

अमेरिका-भारत के रिश्तों का एक मुख्य आधार हमेशा से लोकतंत्र के प्रति उनकी साझा प्रतिबद्धता रही है। दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के रूप में, अमेरिका और भारत लंबे समय से स्वतंत्रता, बहुलवाद और कानून के शासन का समर्थन करते आए हैं। नई सरकार का दुनिया भर के लोकतंत्रों के साथ गठबंधन और साझेदारी को मजबूत करने पर जोर भारत की नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की आकांक्षाओं से पूरी तरह मेल खाता है।

ट्रम्प प्रशासन लोकतांत्रिक मंचों, जैसे लोकतंत्र शिखर सम्मेलन में भाग लेने और उनकी मेजबानी करने के लिए प्रतिबद्ध रहा है। ये फोरम अमेरिका और भारत को अत्याचार, भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के हनन जैसी वैश्विक चुनौतियों पर मिलकर काम करने का मौका देंगे। अपनी कूटनीतिक कोशिशों को एक साथ मिलाकर, ये दोनों बड़े देश वैश्विक लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत कर सकते हैं और अन्य देशों के लिए एक मिसाल भी कायम कर सकते हैं।

आर्थिक पहलू महत्वपूर्ण

जाहिर है इस रिश्ते में आर्थिक पहलू भी बहुत महत्वपूर्ण है। नई सरकार का निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा देने, ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा और सप्लाई चेन को पुनर्जीवित करने पर ध्यान, भारत के साथ गहरे आर्थिक जुड़ाव के लिए अनुकूल माहौल बनाता है। भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, जो दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत तकनीक और इनोवेशन का केंद्र होने के कारण अमेरिकी कारोबारों के लिए अपार अवसर उपलब्ध कराती है।

अमेरिकी निवेश रिन्यूअल एनर्जी और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में भारत के सतत विकास के लक्ष्य को गति दे सकता है। ट्रम्प की नीतियां, जो ग्लोबल सप्लाई चेन में विविधता को बढ़ावा देती हैं, भारत के ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग सेंटर बनने के लक्ष्य के साथ भी मेल खाती हैं। इससे किसी एक देश पर निर्भरता कम होगी और विस्तार के नए रास्ते खुलेंगे। इसके अलावा, व्यापक व्यापार समझौतों पर नए सिरे से जोर देने से बाजार तक पहुंच, बौद्धिक संपदा अधिकार और टैरिफ जैसे लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों का समाधान हो सकता है। इससे अधिक मजबूत आर्थिक साझेदारी का रास्ता साफ होगा। 

चुनौतियां भी हैं

हिंद-प्रशांत क्षेत्र अमेरिका-भारत के सामरिक तालमेल का केंद्रबिंदु बन गया है और बनना चाहिए भी। बढ़ती चुनौतियों, जैसे समुद्री सुरक्षा खतरों और आर्थिक दबाव के बीच, दोनों देशों की चिंता एक मुक्त, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बनाए रखने की है। ट्रम्प की क्वाड (एक सामाजिक-आर्थिक साझेदारी) को मजबूत करने की रणनीतिक प्रतिबद्धता इस बात को दर्शाती है कि प्रशासन इस क्षेत्र में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देता है।

संयुक्त सैन्य अभ्यास, खुफिया जानकारी साझा करना और बुनियादी ढांचे का विकास जैसे सहयोगात्मक प्रयास क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाएंगे और समय के साथ उभरने वाले किसी भी अस्थिर करने वाले प्रभाव का मुकाबला करेंगे। इसके अलावा, साइबर खतरों का मुकाबला करने और महत्वपूर्ण तकनीकों की सुरक्षा पर प्रशासन का ध्यान, जिसमें चीन के स्वामित्व वाले लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने का कानूनी प्रयास भी शामिल है, भारत की अपनी साइबर सुरक्षा प्राथमिकताओं के साथ मेल खाता है। रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल (DTTI) के माध्यम से रक्षा सहयोग साझेदारी को और मजबूत करेगा।

जैसे-जैसे दुनिया एक छोटे और अधिक वैश्विक समुदाय की ओर बढ़ रही है, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में जटिल चुनौतियां तेजी से बढ़ रही हैं। इनके लिए बहुपक्षीय समाधानों की आवश्यकता है। नई सरकार का अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर जोर भारत के वैश्विक शासन के दृष्टिकोण के साथ मेल खाता है। हालांकि कोविड का दौर इतिहास में उन दौरों में शामिल नहीं होगा जिन्हें लोग प्यार से याद रखेंगे, लेकिन इसने निश्चित रूप से टीके के उत्पादन और वितरण में सहयोग के महत्व को रेखांकित किया है। 'फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड' के रूप में भारत की भूमिका और अमेरिका के तकनीकी और वित्तीय संसाधन उन्हें वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा को मजबूत करने में स्वाभाविक साझेदार बनाते हैं। 

भारतीय प्रवासी अहम

अमेरिका-भारत के रिश्ते का सबसे स्थायी पहलू लोगों के बीच का गहरा जुड़ाव है। अमेरिका में भारतीय प्रवासी, जिनकी संख्या अब 40 लाख से ज्यादा है। यह समुदाय सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय-अमेरिकियों ने तकनीक और चिकित्सा से लेकर सार्वजनिक सेवा तक विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। इससे दोनों देशों की बेहतरीन प्रतिभा का परिचय मिलता है। शैक्षिक आदान-प्रदान, कार्य के अवसरों और सामुदायिक साझेदारियों को बढ़ावा देकर, अमेरिका और भारत द्विपक्षीय संबंधों के प्रति समर्पित नेताओं की एक नई पीढ़ी का विकास कर सकते हैं। ट्रम्प ने अपने चुनाव प्रचार में इन बातों पर जोर दिया है।

अंत में, और शायद ऐतिहासिक रूप से, नव निर्वाचित उपराष्ट्रपति जेडी वैन्स के शपथ लेने के बाद, उनकी पत्नी ऊषा वैन्स, अमेरिकी इतिहास में पहली भारतीय मूल की सेकेंड लेडी बन जाएंगी। उपराष्ट्रपति वैन्स के साथ मेरे पहले के अनुभवों के आधार पर कहूं तो वे एक समर्पित पारिवारिक व्यक्ति, एक सहज संवादकर्ता और अपनी पत्नी द्वारा व्हाइट हाउस में लाई जा रही सांस्कृतिक महत्ता पर अविश्वसनीय रूप से गर्व करने वाले व्यक्ति हैं।

इसलिए, जैसे ही हम अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति का स्वागत करते हैं, आइए हम भारत के साथ अपने संबंधों को अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक ले जाने के अवसर का भी स्वागत करें। यह साझेदारी भविष्य के प्रशासनिक परिवर्तनों के लिए आशा की किरण के रूप में काम कर सकती है। यह दर्शाती है कि कैसे साझा मूल्यों और पूरक शक्तियों वाले देश 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। आगे का रास्ता अवसरों से भरा हुआ है, और उन्हें प्राप्त करने का समय अभी है।

(लेखक अरुण अग्रवाल डलास स्थित समूह नेक्स्ट के सीईओ, टेक्सास आर्थिक विकास निगम के अध्यक्ष, भारतीय-अमेरिकी सीईओ परिषद के सह-अध्यक्ष, डलास पार्क और मनोरंजन बोर्ड के अध्यक्ष और ट्रम्प 47 के लिए भारतीय-अमेरिकी नेतृत्व परिषद के अध्यक्ष हैं। इस लेख में दिए गए विचार और राय लेखक के अपने हैं और जरूरी नहीं कि ये 'न्यू इंडिया अब्रॉड' की आधिकारिक नीति को दर्शाते हों।)

Comments

Related