अमेरिकी कंपनियां अपनी सप्लाई चेन के लिए चीन को एक जोखिम भरे दांव के रूप में देख रही हैं। इसका फायदा भारत को मिलता हुआ नजर आ रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, अगर दोनों देश समान मैटेरियल्स का निर्माण कर सकते हैं तो अमेरिकी कंपनियां चीन के बजाय भारत को चुनेंगी। इस सर्वे से पता चलता है कि अमेरिका के अधिकतर अधिकारियों ने चीन की बजाय भारत के साथ कारोबार करने पर विचार करने की इच्छा जताई है।
यूके मार्केट रिसर्च फर्म वनपोल की तरफ से किए गए सर्वे के मुताबिक, 500 एग्जीक्यूटिव लेवल अमेरिकी मैनेजर्स में से 61% ने अपनी सप्लाई चेन आवश्यकताओं के लिए चीन की तुलना में भारत को तरजीह देना पसंद किया है। 56% ने अगले पांच वर्षों में सप्लाई चेन की जरूरतों को पूरा करने के लिए चीन की जगह भारत को तवज्जो दी है।
सर्वेक्षण में चीन के साथ व्यापार करते समय इन अधिकारियों द्वारा बड़ी चिंताओं का भी पता चला है। इनमें राजनीतिक जोखिम (53 प्रतिशत), बौद्धिक संपदा (इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी) चोरी (54 प्रतिशत) और क्वॉलिटी रिस्क (45 प्रतिशत) शामिल हैं। इसके अलावा 26 प्रतिशत अधिकारियों ने चीन के साथ व्यापार को 'बहुत जोखिम भरा' माना है। केवल 12 प्रतिशत ही ऐसे उत्तरदाता सामने आए जिन्होंने भारत के साथ व्यापार को लेकर समान स्तर की चिंता व्यक्त की।
इंडिया इंडेक्स के संस्थापक और सीईओ समीर कपाड़िया ने कहा कि चीन से भारत में संस्थागत धन का स्थानांतरण केवल एक मसला नहीं है, जिसमें हम बदलाव देखने जा रहे हैं। जैसा कि सर्वेक्षण के आंकड़ों से साफ पता चलता है। इन सर्वेक्षणों से हम यह भी देख रहे हैं कि डिमांड सप्लाई चेन वैश्विक स्तर पर कैसे बदलती है।
समीर का कहना है कि वर्षों से हम जानते थे कि अमेरिका और भारत चीन की तरह एक दीर्घकालिक व्यापार संबंध विकसित करेंगे, लेकिन अभी इसमें और भी तेजी आनी है। सर्वेक्षण के आंकड़े यही बता रहे हैं। जनगणना ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, 24 के पहले पांच महीनों के दौरान पिछले वर्ष की तुलना में चीन से अमेरिकी आयात में 2023 प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी देखी गई।
यह गिरावट एचपी, स्टेनली ब्लैक एंड डेकर, ऐपल और लेगो सहित विभिन्न कंपनियों के बीच देखी गई प्रवृत्ति के साथ मेल खाती है, जिन्होंने चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने के उपायों की शुरुआत की है, जो चीनी बाजार से संभावित बदलाव या डिकपलिंग का संकेत देते हैं।
कपाड़िया ने कहा कि चीन के साथ अमेरिकी व्यापार अभी भी जारी रहेगा, लेकिन अब हमारे पास डेटा है जो पुष्टि करता है कि कई अमेरिकी अधिकारी आने वाले वर्ष में धीरे-धीरे चीन से अलग होना शुरू कर देंगे और भारत जैसे अन्य व्यापारिक भागीदारों के साथ काम करने पर विचार करेंगे। कपाड़िया के मुताबिक विदेशी कंपनियां शॉर्ट टर्म के बजाय लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी के रूप में भारत को देख रही हैं।
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