SCO Summit 2025: शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन का उद्देश्य वैश्विक दक्षिण संबंधों को मजबूती देने के साथ दुनिया में शांति और स्थिरता का संदेश देना है। यह समिट चीन के उत्तरी बंदरगाह शहर तियानजिन में आयोजित होगा, जहां 20 से ज्यादा देशों के दिग्गज नेता एकत्र हो रहे हैं। 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चलने वाले SCO समिट में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अलावा, मध्य एशिया, मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के नेताओं को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया गया है।
समिट में शामिल हो रहे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले सात वर्षों के भीतर यह पहली चीन यात्रा होगी। बता दें कि भारत के पीएम मोदी ने पिछले साल रूस के कज़ान में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शी और पुतिन के साथ एक ही मंच साझा किया था, जबकि पश्चिमी नेताओं ने यूक्रेन में युद्ध के बीच रूसी नेता से मुंह मोड़ लिया था। पिछले हफ्ते नई दिल्ली में रूसी दूतावास के अधिकारियों ने कहा कि मास्को को उम्मीद है कि चीन और भारत के साथ त्रिपक्षीय वार्ता जल्द ही होगी। वहीं दूसरी ओर दावा किया जा रहा है कि यह समिट यूएस के व्यापारिक प्रतिबंधों (टैरिफ दरों में वृद्धि) से जूझ रहे रूस, भारत के लिए कूटनीतिक स्तर पर अहम साबित होगा
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शोध एजेंसी, द चाइना-ग्लोबल साउथ प्रोजेक्ट के प्रधान संपादक एरिक ओलैंडर ने कहा, "शी इस शिखर सम्मेलन का उपयोग एक दिखावे के अवसर के रूप में करेंगे, ताकि अमेरिका के वैश्विक नेतृत्व को चुनौती दी जा सके। चीन, ईरान, रूस के बाद भारत पर जनवरी से लगातार व्हाइट हाउस के दबाव बनाने के प्रयास का असर अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा।"
वहीं चीनी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने SCO Summit को लेकर कहा कि पिछले हफ्ते कहा कि इस साल का शिखर सम्मेलन 2001 में एससीओ की स्थापना के बाद से सबसे बड़ा होगा, और इस समूह को "नए प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के निर्माण में एक महत्वपूर्ण शक्ति" कहा।
भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी तन्मय लाल ने बताया कि एससीओ में भारत की प्राथमिकताओं में व्यापार, संपर्क, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान शामिल है। शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी के द्विपक्षीय बैठकें करने की भी संभावना है।
वहीं विश्लेषकों का कहना है कि इसमें शामिल होने वाले कई देशों के लिए विस्तार एजेंडे में सबसे ऊपर है, लेकिन वे इस बात से सहमत हैं कि इस समूह ने पिछले कुछ वर्षों में सहयोग के कोई ठोस परिणाम नहीं दिए हैं। भारत और चीन दोनों देश अपनी सीमा से सैनिकों की वापसी, व्यापार और वीजा प्रतिबंधों में ढील, जलवायु सहित नए क्षेत्रों में सहयोग, और व्यापक सरकारी और जन-जन संपर्क जैसे मुद्दों पर अहम घोषणा कर सकते हैं।
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