कल्पना कीजिए भारत के उस क्षेत्र की, जिसे यूनानी और रोमन नाविक कभी उपजाऊ भूमि और लंबे-चौड़े लोगों के लिए जाना करते थे। यही वह धरती है जहां एक ऐसा नेता पैदा हुआ, जिसने ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने और भारत को स्वतंत्र कराने के आंदोलन का नेतृत्व किया। एक ऐसा मंदिर जो सात बार तोड़ा गया और हर बार फिर से खड़ा हुआ, मानो अपने अस्तित्व की घोषणा करता हो। यही नहीं, एशियाई शेरों का अंतिम प्राकृतिक निवास और अफ्रीकी मूल के लोगों का एक गांव भी यहीं स्थित है। यह क्षेत्र है – गुजरात का सौराष्ट्र, जिसे काठियावाड़ भी कहते हैं।
राजकोट में बचपन बिताने के बाद मैं (लेखक-राम केलकर) हाल ही में जब फिर से सौराष्ट्र पहुंचा, तो यह यात्रा मेरे लिए यादों को फिर से जीने जैसी थी। मैंने अपने पुराने घर और स्कूल का दौरा किया – वही अल्फ्रेड हाई स्कूल, जहां कभी मोहनदास करमचंद गांधी भी पढ़ा करते थे। आज यह विद्यालय ‘गांधी स्मृति संग्रहालय’ में बदल चुका है। इस भवन का निर्माण जूनागढ़ के नवाब ने कराया था और इसका उद्घाटन बॉम्बे प्रेसिडेंसी के गवर्नर सर फिलिप वुड़हाउस ने किया था, जो प्रसिद्ध लेखक पीजी वुड़हाउस के रिश्तेदार थे।
यह संग्रहालय गांधी जी के जीवन की यात्रा को दर्शाता है – दक्षिण अफ्रीका में उनके शुरुआती संघर्ष से लेकर भारत की स्वतंत्रता में उनकी भूमिका और 1948 में हुई उनकी दुखद हत्या तक।
राजकोट के पास स्थित जूनागढ़ शहर इतिहास की अनमोल परतें समेटे हुए है। यहां मौर्य काल में बना एक किला है, जिसमें अद्भुत ‘आदि कड़ी वाव’ नामक सीढ़ीदार बावड़ी स्थित है। मराठा महासंघ का हिस्सा रह चुका जूनागढ़ बाद में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का संरक्षित राज्य बना। यहीं के दीवान रहे शाहनवाज़ भुट्टो (पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता) ने 1947 में जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने का निर्णय लिया था, जिसे सरदार वल्लभभाई पटेल ने उलट दिया।
गिर और जाम्बूर: जहां शेर और अफ्रीकी विरासत जिंदा है
सौराष्ट्र के ही गिर राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाते हैं विश्व में बचे हुए अंतिम एशियाई शेर। यहां लगभग 600 से अधिक शेर प्राकृतिक रूप से विचरण करते हैं। गिर के पास ही जाम्बूर नामक एक गांव है, जहां के लोग अफ्रीकी वंश के हैं। हालांकि वे गुजराती बोलते हैं और पूरी तरह भारतीय जीवन जीते हैं, लेकिन माना जाता है कि उनके पूर्वजों को अरब व्यापारी या पुर्तगाली उपनिवेशवादी भारत लाए थे।
सोमनाथ मंदिर: आस्था की अमर गाथा
अरब सागर के किनारे स्थित सोमनाथ मंदिर का इतिहास भारत के अदम्य साहस और श्रद्धा की मिसाल है। इस मंदिर को 1026 में महमूद गजनवी, 1299 में उलुग खान, 1395 में मुजफ्फर शाह और 1706 में औरंगज़ेब ने ध्वस्त किया। फिर भी यह हर बार बना – कभी चालुक्य राजा कुमारपाल ने, तो कभी मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसे पुनर्जीवित किया।
भारत के स्वतंत्र होने के बाद सरदार पटेल ने इसके पुनर्निर्माण की योजना को स्वीकृति दी। जूनागढ़ के भारत में विलय के बाद उन्होंने खंडहर में तब्दील हो चुके सोमनाथ मंदिर को देखकर इसका पुनर्निर्माण करवाया। उन्होंने बाइबिल का हवाला देते हुए कहा, “मैं नष्ट करने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूं”।
गिरनार और अशोक के शिलालेख
जूनागढ़ के निकट गिरनार पर्वत के तल में सम्राट अशोक द्वारा स्थापित शिलालेख आज भी संरक्षित हैं। इनमें से एक में लिखा है – “अपने धर्म को ऊंचा दिखाने के लिए दूसरों के धर्म को नीचा दिखाना, अपने धर्म को सबसे बड़ा नुकसान पहुँचाना है।” यह संदेश 2300 साल पुराना होते हुए भी आज की धार्मिक सहिष्णुता का सबसे बड़ा प्रमाण है।
सौराष्ट्र केवल एक भूगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि भारत के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मूल्यों की जीवंत झलक है। यहां की यात्रा अतीत से जुड़ने, अपनी जड़ों को पहचानने और भारत को नए सिरे से देखने का अवसर देती है – यह वास्तव में “भारत की पुनर्खोज” है।
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