येल विश्वविद्यालय के भारतीय मूल के वैज्ञानिक दमनवीर सिंह ग्रेवाल के नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि पृथ्वी और अन्य ग्रह अप्राकृतिक या मूलभूत पदार्थ से नहीं, बल्कि पहले से टूटे और फिर बने खगोलीय अवशेषों से बने। ग्रेवाल ने इसे “अच्छी तरह इस्तेमाल किए गए LEGO ब्लॉक्स का बिन” बताते हुए सौरमंडल की शुरुआती अवस्था को समझाया।
यह शोध ‘Science Advances’ में प्रकाशित हुआ है और ग्रेवाल, जो येल विश्वविद्यालय में अर्थ और प्लैनेटरी साइंसेज के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, ने इसे नेतृत्व दिया। अध्ययन ने ग्रह निर्माण के बारे में लंबे समय से चले आ रहे धारणाओं को चुनौती दी।
ग्रह निर्माण के शुरुआती समय में छोटे खगोलीय पिंड (प्लैनेटिसिमल्स) के बीच हुई भारी टकराहटों ने उनके धातुयुक्त केंद्रों को बार-बार तोड़ दिया। इन मलबे से नए पिंड बने और धीरे-धीरे ग्रहों का निर्माण हुआ। इसका मतलब यह है कि पृथ्वी सहित अन्य ग्रह रीसायकल किए गए अवशेषों से बने, न कि नए, शुद्ध पदार्थ से।
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ग्रेवाल ने कहा, ग्रह मूलभूत सामग्री से नहीं, बल्कि टूटे और फिर बनाए गए पिंडों के रीसायकल अवशेषों से बने। इस प्रक्रिया ने यह तय किया कि युवा ग्रहों में कौन-कौन से तत्व और खनिज अगले निर्माण चरण में मौजूद होंगे।
सौरमंडल का हिंसक इतिहास
अध्ययन के अनुसार, ग्रहों का विकास धीरे-धीरे और व्यवस्थित नहीं, बल्कि ‘तोड़ो-और-पुनर्निर्माण’ की अव्यवस्थित प्रक्रिया के तहत हुआ। इन उच्च-ऊर्जा टकराहटों ने ग्रहों के वायुमंडल, चुंबकीय क्षेत्र और जीवन के लिए परिस्थितियों को प्रभावित किया। यह शोध वैज्ञानिकों को सौरमंडल की उत्पत्ति और प्रारंभिक विकास की हिंसक प्रकृति को बेहतर समझने में मदद करता है।
इस अध्ययन में साथ काम करने वाले वैज्ञानिक हैं – वरुण मणिलाल (येल), झोंगटियान झांग (प्रिंसटन), थॉमस क्रूजर (लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लैब), विलियम बॉटके (साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट) और सारा स्टीवर्ट (एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी)।
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