भारत के महाराष्ट्र राज्य के बीड़ जिले में बाल विवाह के खिलाफ एक चुपचाप लेकिन प्रभावशाली मुहिम जारी है। हर शादी के मौसम में यहां बाल अधिकार कार्यकर्ताओं और प्रशासन के पास ऐसी सैकड़ों कॉल्स आती हैं, जिनमें किसी नाबालिग लड़की की शादी रोकने की गुहार होती है। बाल अधिकार कार्यकर्ता तत्वशील कांबले पिछले एक दशक से इस अभियान में जुटे हैं। वे कहते हैं, “गांव के बड़े-बुज़ुर्ग सोचते हैं — हम कौन होते हैं उनकी बेटी की शादी रोकने वाले। लेकिन हम जानते हैं कि ये सिर्फ शादी नहीं, बचपन की मौत होती है।”
कांबले अब तक हज़ारों बाल विवाह रुकवा चुके हैं। उनका नेटवर्क गुप्त सूचनाओं, फोटो और कॉल्स के ज़रिए लगातार सक्रिय रहता है।
गरीबी बनी मजबूरी
बीड़ ज़िले में गन्ना खेतों में काम करने वाले मज़दूरों के लिए लड़कियों की पढ़ाई एक सपना है। मनीषा बारडे, जो खुद एक बाल वधू थीं, ने अपनी किशोरी बेटी की शादी तय कर दी थी। लेकिन समय रहते अधिकारियों ने रुकवा दी। “हम चाहते हैं कि वह डॉक्टर बने, लेकिन गरीबी में पहले शादी ही एकमात्र रास्ता लगता है।”
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प्रशासन की सतर्कता
चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के प्रमुख अशोक टांगड़े ने बताया कि जनवरी से मई 2025 के बीच उन्हें 321 कॉल्स मिलीं, जिनमें बाल विवाह की जानकारी दी गई। “शादी के सीज़न — अक्टूबर से मार्च तक — रोज़ाना 10 से 15 कॉल्स आती हैं। हमारी टीमें तुरंत मौके पर पहुंचती हैं और कई बार शादियाँ रोक ली जाती हैं।”
विरोध और हिंसा भी
टांगड़े कहते हैं कि कई बार जब वे शादियाँ रोकने पहुँचते हैं, तो उन्हें विरोध का सामना करना पड़ता है। “लोग मारपीट पर उतर आते हैं, लेकिन जब एक लड़की बचती है, तो सब ठीक लगता है।”
एक ज़िंदगी की कहानी
ज्योति थोरात की शादी 16 साल की उम्र में हुई थी। पुलिस में जाने का सपना था, लेकिन गन्ने के खेत उसकी किस्मत बन गए। “मेरे भाई की पढ़ाई हुई, हमारी शादी कर दी गई। आज मेरे दोनों बेटे स्कूल जाते हैं, लेकिन मेरे लिए स्कूल सिर्फ सपना रह गया।”
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