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पंजाब: दशहरा... रावण दहन और सामुदायिक सद्भाव की एक प्रेरक दास्तान

यह पुतला प्रौद्योगिकी और कला का मिश्रण है लेकिन असल बात मुस्लिम और हिंदुओं के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने में निहित है।

तैयार हो रहा है रावण का पुतला... / courtesy

पंजाब के चहल-पहल भरे शहर लुधियाना में दशहरे का आगमन न केवल आतिशबाजी और रावण के पुतलों के दहन बल्कि साझी परंपराओं की एक शांत कहानी से भी जुड़ा है। एक सदी से भी ज्यादा समय से आगरा का एक मुस्लिम परिवार इन उत्सवों का केंद्र रहा है, जो हर साल आग में जलने वाली विशाल आकृतियां बनाता है।

पांचवीं पीढ़ी के कारीगर सोहेल खान, आधा साल पंजाब में बांस, कागज और आतिशबाजी से रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद को आकार देते हुए बिताते हैं। इस सीजन में हिंदुओं सहित, लगभग दो दर्जन कारीगरों की उनकी टीम, लुधियाना के दरेसी मैदान में दहन के लिए 121 फुट ऊंचा रावण का पुतला बना रही है, जो कथित तौर पर पंजाब का सबसे ऊंचा पुतला है।

खान कहते हैं कि हम छह महीने पहले से ही काम शुरू कर देते हैं। यह काम हमें बहुत खुशी देता है क्योंकि हम एक हिंदू त्योहार साथ मिलकर मना रहे हैं। यह सिर्फ पुतले की बात नहीं है। यह सद्भाव की बात है।

काम का पैमाना बहुत बड़ा है। लगभग 500 बांस के डंडों से इसका ढांचा बना है। एक क्विंटल से ज्यादा कागज इसके ढांचे पर लगा है। इसके अंदर विस्फोटक भरे हुए हैं और इस साल पुतले में लखनऊ से मंगवाए गए विशेष पटाखे भी लगाए जाएंगे।

इस विशाल ढांचे को इसकी आधुनिक इंजीनियरिंग ने अलग बनाया है। खान ने बताया कि पुतले में दो रिमोट हैं। पहले रिमोट से रावण के मुंह का निचला हिस्सा आग पकड़ेगा और दूसरे रिमोट से ऊपरी हिस्सा जलेगा।

इस परियोजना की लागत लगभग 500,000 रुपये (लगभग 5,600 डॉलर) है, लेकिन निवेश केवल वित्तीय निवेश से कहीं अधिक है। कारीगरों के लिए, उनकी सफलता का पैमाना आग की लपटें हैं। कारीगर अकील खान कहते हैं कि रावण जितनी जल्दी जलता है, हम उतना ही सफल महसूस करते हैं। अगर इसमें ज्यादा समय लगता है, तो ऐसा लगता है जैसे हमारी सारी मेहनत बेकार चली गई।

पिछले कुछ वर्षों में, उन्होंने अपने शिल्प में भी बदलाव किए हैं। आयातित जलरोधी कागज ने प्लास्टिक की चादरों की जगह ले ली है, जिससे जहरीले धुएं में कमी आई है और पुतले मौसम के प्रभाव से मजबूत हो गए हैं।

आकार और तमाशे जितनी ही महत्वपूर्ण टीम भी है। कार्यशाला में हिंदू और मुसलमान दोस्ती और विश्वास से बंधे हुए कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं। कारीगर नरेश शर्मा कहते हैं कि मैं एक हिंदू हूं और कई सालों से एक मुस्लिम परिवार को रावण के पुतले बनाने में मदद कर रहा हूं। हम सब भाईचारे की मिसाल कायम करने के लिए साथ आते हैं।

सोहेल खान के लिए पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाना सिर्फ रोजी-रोटी से कहीं बढ़कर है। वे कहते हैं कि हमें इस बात पर गर्व है कि हम इस त्योहार में योगदान दे सकते हैं और दिखा सकते हैं कि यह सबका है।"

जब लुधियाना में दशहरे की रात 121 फुट का रावण आग की लपटों में धराशायी होगा तो यह बुराई पर अच्छाई की जीत की जानी-पहचानी कहानी से कहीं बढ़कर होगा। यह हमें याद दिलाएगा कि त्योहारों का गहरा अर्थ तब होता है जब हम सब मिलकर मनाते हैं।

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