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नीतिगत राहत

प्रतीक्षा करो और देखो की नीति अपनाकर प्रवासी भारतीयों ने स्पष्टता के लिए जगह बनाई।

सांकेतिक तस्वीर / (Photo: iStock)

1,00,000 डॉलर के H-1B वीजा शुल्क पर अमेरिका की ओर से आया नवीनतम स्पष्टीकरण उन भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए एक बड़ी राहत है जिन्होंने अमेरिका में अपना जीवन और करियर बनाया है। एक महीने से भी ज्यादा समय से नियोक्ताओं और वीजा धारकों के बीच भ्रम और चिंता का माहौल बना हुआ था, क्योंकि वे इस शुल्क के दायरे को समझने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे। बढ़ा हुआ वीजा शुल्क अचानक और दंडात्मक दोनों लग रहा था। ट्रम्प प्रशासन की घोषणा को वीजा कार्यक्रम के दुरुपयोग को रोकने के उपाय के रूप में तैयार किया गया था। इसने हजारों प्रतिभाशाली व्यक्तियों और उन पर निर्भर कंपनियों के लिए अनिश्चितता पैदा कर दी थी।

इस बीच, भारतीय-अमेरिकी समुदाय ने उल्लेखनीय संयम के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की। जब भारत में राजनीतिक आवाजों ने सवाल उठाया कि प्रवासी समुदाय ने इस बढ़ोतरी का विरोध क्यों नहीं किया तो समुदाय ने इस बात पर जोर दिया कि उनका काम कानूनी, विचारशील और रणनीतिक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे भारतीय मूल के अमेरिकी हैं लिहाजा दोनों देशों के हितों के लिए प्रतिबद्ध हैं और उनका दृष्टिकोण सार्वजनिक विरोध के बजाय शांत कूटनीति से परिभाषित होता है।

बहरहाल, अब उस धैर्य का फल मिला है। प्रतीक्षा करो और देखो की नीति अपनाकर प्रवासी भारतीयों ने स्पष्टता के लिए जगह बनाई। जैसी कि उम्मीद थी, ट्रम्प प्रशासन और USCIS ने अंततः H-1B शुल्क पर दिशानिर्देश जारी किए। इनमें स्पष्ट किया गया कि यह कहां लागू होता है और कहां नहीं। F-1 वीजा पर H-1B स्थिति में जाने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों के साथ-साथ अमेरिका के भीतर विस्तार या संशोधन चाहने वाले मौजूदा H-1B धारकों को भी इससे छूट दी गई है। यह शुल्क केवल देश के बाहर से दायर की गई  नई याचिकाओं या कांसुलर प्रक्रिया की आवश्यकता वाले मामलों पर लागू होता है।

जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने के बजाय आधिकारिक मार्गदर्शन की प्रतीक्षा करके प्रवासी भारतीयों ने अनिश्चितता का सामना धैर्यपूर्वक किया और अमेरिकी प्रशासन ने अंततः स्थिति स्पष्ट कर दी। प्रवासी भारतीयों का दर्शन (संवाद, विश्वसनीयता और रचनात्मक कार्रवाई पर केंद्रित) बिना सुर्खियों के भी परिणामों को प्रभावित कर सकता है। दूसरा, अमेरिकी स्पष्टीकरण न केवल व्यक्तियों पर, बल्कि व्यापक भारतीय-अमेरिकी पारिस्थितिकी तंत्र पर भी बोझ कम करता है, जिससे उन्हें दोनों देशों में योगदान जारी रखने की अनुमति मिलती है।

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