अमेरिका-भारत संबंधों पर एक नई रिपोर्ट में रणनीतिक विशेषज्ञ दिनेश एस. शास्त्री ने सुझाव दिया है कि वॉशिंगटन को अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति का आधार भारत को बनाना चाहिए। उनका मानना है कि भारत को ग्राहक (client state) नहीं, बल्कि एक सार्वभौम और उभरते साझेदार के रूप में देखा जाना चाहिए, क्योंकि भारत का उदय सीधे तौर पर अमेरिका के हितों को साधता है और चीन की चुनौती को संतुलित करता है।
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नरसिम्हा राव की 'Agree to Disagree' नीति
शास्त्री ने पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव से हुई बातचीत को याद करते हुए कहा कि चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर राव का मूल मंत्र था – 'Agree to Disagree'। राव का मानना था कि दोनों देश अपने-अपने दावे रखते हुए भी विकास को प्राथमिकता दें। उन्होंने चीन को 'एशिया का बूमिंग टाइगर' और भारत को 'उभरती हुई अर्थव्यवस्था' करार दिया। यह यथार्थवाद इस बात पर टिका था कि सीमा विवाद से अधिक अहम आर्थिक विकास है।
पाकिस्तान से बातचीत: मिसाइल नहीं, रोटी की कीमत
रिपोर्ट में बताया गया कि पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ भारतीय नेताओं की बातचीत अक्सर परमाणु नीति पर नहीं, बल्कि गेहूं और रोटी की कीमत पर होती थी। शरीफ का कहना था कि उनकी राजनीतिक वैधता का आधार आम जनता के लिए 'ब्रेड की कीमत' है और भारत की आर्थिक प्रगति के साथ बराबरी का दबाव भी। लेकिन आईएसआई ने हमेशा इस सोच को बाधित कर युद्ध की ओर झुकाव पैदा किया।
भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग की नींव
दिनेश शास्त्री ने बताया कि उन्होंने भारत-अमेरिका के पहले रक्षा सौदे—थेल्स रेथियॉन फायर फाइंडर राडार—को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। यह राडार कश्मीर सीमा पर लगाया गया, ताकि दुश्मन की तोपों और रॉकेट फायर का पता लगाया जा सके। इसे सिर्फ हार्डवेयर डील नहीं, बल्कि भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों की शुरुआत माना गया।
पांच स्तंभों पर आधारित रणनीति की जरूरत
शास्त्री का कहना है कि अमेरिका को भारत के साथ दीर्घकालिक यथार्थवादी ढांचे पर काम करना चाहिए, जो पांच स्तंभों पर आधारित हो—पहला, रक्षा सहयोग को गहराना, जिसमें संयुक्त उत्पादन और तकनीकी साझेदारी को बढ़ावा दिया जाए; दूसरा, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, जिसके तहत सेमीकंडक्टर, एआई, क्वांटम और साइबर डिफेंस में साझेदारी हो; तीसरा, आर्थिक समानता, यानी भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा और डिजिटल अर्थव्यवस्था में अमेरिकी निवेश को प्रोत्साहन; चौथा, संस्थागत संवाद, जिसके जरिए रक्षा, तकनीक और व्यापार पर स्थायी उच्च स्तरीय परिषद स्थापित हो; और पांचवां, दीर्घकालिक दृष्टिकोण, जिसमें ट्रंप जैसे राजनीतिक अपवादों से परे जाकर भारत में स्थायी रणनीतिक निवेश सुनिश्चित किया जाए।
शास्त्री का तर्क है कि नरसिम्हा राव, वाजपेयी और यहां तक कि शरीफ के अनुभव बताते हैं कि 'ब्रेड अक्सर बॉर्डर से ज्यादा मायने रखती है, लेकिन ब्रेड की रक्षा भी जरूरी है।' अमेरिका के लिए यही राष्ट्रीय हित है- भारत को ग्राहक राज्य बनाने के बजाय उसे एक लोकतांत्रिक, स्वतंत्र और चीन के खिलाफ संतुलन बनाने वाली शक्ति के रूप में सक्षम करना। उनका कहना है, 'अगर अमेरिका ने अभी कदम नहीं बढ़ाए, तो यह मौका हमेशा के लिए निकल जाएगा।'
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