2025 के हेनले पासपोर्ट इंडेक्स के मुताबिक भारत का पासपोर्ट 85वें स्थान पर है, जो 57 देशों में वीजा-मुक्त पहुंच प्रदान करता है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका अपने 20 साल के इतिहास में पहली बार शीर्ष 10 से बाहर हो गया है और अब 180 गंतव्यों तक पहुंच के साथ 12वें स्थान पर है। ये बदलाव न केवल यात्रा की सुविधा को दर्शाते हैं, बल्कि खुलेपन और विश्वास की वैश्विक धारणा को भी दर्शाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के लिहाज से इस गिरावट का सबब कई बदलाव हैं। ब्राजील ने पारस्परिक मसलों के कारण अमेरिकियों के लिए वीजा-मुक्त पहुंच वापस ले ली, चीन ने अमेरिका को शामिल किए बिना अपनी छूट का विस्तार किया और पापुआ न्यू गिनी तथा म्यांमार ने अपनी प्रवेश नीतियों में ऐसे बदलाव किए जिससे अमेरिकी पासपोर्ट की स्थिति कमजोर हुई। हाल ही में, सोमालिया की नई ई-वीजा प्रणाली और वियतनाम द्वारा अपनी वीजा-मुक्त सुविधाओं से अमेरिका को बाहर रखने से यह और नीचे चला गया। भारत की गिरावट धीरे-धीरे हुई है, जो क्षेत्रीय चुनौतियों और उसके राजनयिक जुड़ाव की गति से जुड़ी है, जहां कम देश वीजा-मुक्त या आगमन पर वीजा की सुविधा प्रदान करते हैं।
बकौल हेनले एंड पार्टनर्स अध्यक्ष क्रिश्चियन कैलिन जो देश खुलापन और सहयोग अपनाते हैं वे आगे बढ़ रहे हैं, जबकि जो देश अतीत के विशेषाधिकारों पर टिके हुए हैं, वे पीछे छूट रहे हैं। ये आंकड़े याद दिलाते हैं कि घरेलू फैसले और वैश्विक धारणा का आपस में गहरा संबंध है। नागरिकों की यात्रा में आसानी विश्वास और सहयोग का संकेत देती है। जब वीजा मिलना मुश्किल हो जाता है या नियम अचानक बदल जाते हैं तो इसका असर दूसरे देशों के उस देश के प्रति नजरिए पर पड़ सकता है। भारत और अमेरिका को अपनी रैंकिंग सुधारने के लिए ऐसी नीतियों की जरूरत है जो यात्रा और अंतरराष्ट्रीय संपर्क को अधिक सहज और विश्वसनीय बनाएं। किसी देश की प्रतिष्ठा सिर्फ उसकी अर्थव्यवस्था या सैन्य ताकत से नहीं बल्कि इस बात से भी तय होती है कि वह दूसरों के लिए कितना खुला और विश्वसनीय लगता है। घरेलू नीतियों को वैश्विक अपेक्षाओं के साथ जोड़कर वे अपनी प्रतिष्ठा बनाए रख सकते हैं और उसे मजबूत कर सकते हैं। यह साबित करते हुए कि एक ऐसी दुनिया में जहां धारणाएं मायने रखती हैं, नेतृत्व जितना शक्ति के बारे में है, उतना ही खुलेपन के बारे में भी है।
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