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SEVIS टर्मिनेशन से भारतीय छात्रों का भविष्य खतरे में

भारत और अन्य STEM प्रधान क्षेत्रों के स्टूडेंट्स को फेडरल मुकदमे दायर करने में गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

भूमिरेड्डी साई श्रीनिवास रेड्डी / Image Provided

अमेरिकन इमिग्रेशन लॉयर्स एसोसिएशन (AILA) के आंकड़ों के अनुसार, 4 अप्रैल 2025 से अमेरिका में पढ़ रहे सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय छात्रों के SEVIS (स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर इंफॉर्मेशन सिस्टम) रिकॉर्ड्स खत्म कर दिए गए हैं। इस अचानक कार्रवाई ने इन छात्रों के सामने कानूनी चुनौतियां पैदा कर दी हैं। होमलैंड सिक्योरिटी विभाग (DHS) पर संवैधानिक प्रक्रिया का पालन न करने के आरोप लग रहे हैं।  

8 C.F.R. § 214.2(f) नियम कहता है कि एफ-1 वीजा वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों को फुल कोर्स करना जरूरी होता है। अनधिकृत रोजगार न करना और अन्य नियमों का पालन भी करना होता है। ऐसा न करने पर उनका स्टेटस खत्म किया जा सकता है। इसके अलावा 8 C.F.R. § 214.1(d) नियम के तहत, होमलैंड सिक्योरिटी पहले दी गई छूट को रद्द करने, कांग्रेस में प्राइवेट बिल पेश होने या नेशनल सिक्योरिटी जैसी चिंताओं की वजह से भी स्टेटस को टर्मिनेट कर सकता है।  

इन नियमों के बावजूद हाल में अधिकतर स्टेटस खत्म करने की घटनाओं का आधार मामूली मसले जैसे कि ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन, छोटे-मोटे मामलों में गिरफ्तारी या ऐसे आरोप हैं जिनमें औपचारिक रूप से कोई सजा या फैसला नहीं हुआ है। छात्रों का दावा है कि उन्हें पहले से कोई चेतावनी या स्पष्टीकरण भी नहीं मिला था। इससे यह चिंता पैदा हो गई है कि सरकार अमेरिकी संविधान के पांचवें संशोधन के तहत आवश्यक प्रक्रियाओं को दरकिनार कर रही है।

अदालत ने दिलाई राहत
ऐसे प्रमुख मामलों में आइवी लीग इंस्टिट्यूट में कंप्यूटर साइंस के छात्र जिआोतियान लियू का मामला भी है। उनका वीजा अचानक बिना किसी आपराधिक इतिहास या इमिग्रेशन उल्लंघन के रद्द कर दिया गया था। अदालती दस्तावेजों में उनके वकीलों ने दावा दिया कि उन्होंने कोई अपराध या यातायात उल्लंघन तक नहीं किया है... न ही किसी विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया है। इसके बाद 10 अप्रैल 2025 को एक संघीय जज ने प्रक्रियात्मक खामियों का जिक्र करते हुए उनका एफ-1 स्टेटस बहाल करने का आदेश दिया।  

एक अन्य मामला चिन्मय दिओरे एट अल. बनाम क्रिस्टी नोएम द ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट ऑफ मिशिगन कोर्ट में दायर किया गया है। इसमें पीएचडी छात्र चिन्मय ने होमलैंड सिक्योरिटी को SEVIS स्टेट्स खत्म करने से रोकने के लिए अस्थायी निषेधाज्ञा (TRO) की मांग की है। जज ने 15 अप्रैल को दलीलें सुन ली हैं। फैसला जल्द ही आने की उम्मीद है।  

कृष लाल इस्सरदासानी का मामला भी उल्लेखनीय है। 21 वर्षीय कृष लाल का वीजा ग्रेजुएशन पूरी होने से कुछ हफ्ते पहले ही रद्द कर दिया गया था। फेडरल जज ने उनके निर्वासन पर रोक लगाने का आदेश देते हुए कहा है कि विभाग के इस कदम का कोई ठोस कारण नहीं दिख रहा है।  

कानूनी मिसाल और प्रक्रियाएं 
लीगल एक्सपर्ट्स छठे सर्किट कोर्ट के स्कोर्टियानू बनाम INS, 339 F.3d 407 (2003) फैसले का भी उदाहरण देते हैं। इसमें अदालत ने जोर देकर कहा है कि गैर-नागरिकों को लंबित कार्रवाई से अवगत कराने का नोटिस देना और उन्हें अपनी आपत्तियां पेश करने का अवसर प्रदान करना आवश्यक है। 

इमिग्रेशन वकीलों का आरोप है कि SEVIS स्टेटस खत्म करने के कई मामलों में तय मानकों का ख्याल नहीं रखा गया है। छात्रों को अपना बचाव करने का मौका नहीं दिया गया और उल्लंघन के बारे में भी नहीं बताया गया। 

कानूनी उपायों की व्यावहारिक बाधाएं  
कानूनी जागरूकता के बावजूद बहुत से अंतरराष्ट्रीय छात्र खासतौर से भारत और अन्य STEM प्रधान क्षेत्रों के स्टूडेंट्स को फेडरल मुकदमे दायर करने में गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कई छात्र स्टूडेंट लोन और सीमित वर्क ऑथराइजेशन पर निर्भर हैं। ऐसे में उनके कानूनी खर्च एक गंभीर बाधा बन रहे हैं।  

एक स्टूडेंट एडवोकेट ने कहा कि अब यह सिर्फ न्याय का मामला नहीं रह गया है, यह अफॉर्डेबिलिटी का मामला हो गया है। अगर किसी छात्र का स्टेटस गलत तरीके से खत्म कर दिया जाता है तो उन्हें वकील की सेवाएं लेने और संघीय अदालत में मुकदमा दायर करने के लिए हजारों डॉलर खर्च की जरूरत होती है। हर छात्र इसका खर्च नहीं उठा सकता है।  

छात्र पैरोकारी ग्रुप गलत तरीके से सिस्टम से हटाए गए छात्रों को बहाल करने, स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने और इस जटिल व महंगी प्रक्रिया में फंसे लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए तत्काल दखल की मांग कर रहे हैं।  

भारतीय छात्रों के लिए एक चेतावनी 
प्रभावितों में बड़ी संख्या में भारतीय छात्र हैं। राजनयिक स्तर पर भी इस पर गौर किया जा रहा है। अमेरिका में 65 प्रतिशत से अधिक भारतीय छात्र STEM क्षेत्रों में हैं जिन्हें अक्सर अमेरिका की कानूनी प्रक्रियाओं की जानकारी नहीं होती। कानूनी क्लीनिक और छात्र संगठन अब प्रभावित छात्रों को जानकारी देने और मदद के लिए एकजुट हो रहे हैं।  

फिलहाल अभी हजारों लोगों का भविष्य अधर में है। संवैधानिक सुरक्षा के उपाय देश भर की अदालतों में कानून की कसौटी पर परखे जा रहे हैं।

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