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पेरिस ओलंपिकः हॉकी में वर्चस्व की जंग आज से, भारत के पास अपना दमखम दिखाने का मौका

अंग्रेजों को आखिरी बार खुश होने का मौका 2008 में मिला था जब उसने ओलंपिक क्वालीफायर में भारत को हराकर 1928 के बाद पहली बार उसे ओलंपिक हॉकी से बाहर कर दिया था। रविवार को फिर से दोनों टीमें आमने-सामने होंगी।

ओलंपिक हॉकी के पहले संस्करण का चैंपियन ग्रेट ब्रिटेन दूसरे क्वार्टर फाइनल में आठ बार के चैंपियन भारत से भिड़ेगा। / X @TheHockeyIndia

पुरुष हॉकी में वर्चस्व की आखिरी जंग रविवार से शुरू होगी। इसमें न सिर्फ गत चैंपियन बेल्जियम बल्कि पिछले संस्करण के उपविजेता ऑस्ट्रेलिया और पूर्व ओलंपिक चैंपियन जर्मनी, भारत, ग्रेट ब्रिटेन और अर्जेंटीना भी शामिल होंगे। संयोग से जर्मनी मौजूदा विश्व चैंपियन भी है।

नॉकआउट राउंड में सर्वश्रेष्ठ टीमें एक-दूसरे से मोर्चा लेती नजर आएंगी और दर्शकों को विंटेज हॉकी की झलक देखने को मिलेगी। ओलंपिक हॉकी प्रतियोगिता के पहले संस्करण का चैंपियन ग्रेट ब्रिटेन दूसरे क्वार्टर फाइनल में आठ बार के चैंपियन भारत से भिड़ेगा। उसके बाद गत चैंपियन बेल्जियम का मुकाबला स्पेन से होगा। 

तीसरा क्वार्टर फाइनल सबसे कठिन होने की उम्मीद है जिसमें मौजूदा एफआईएच प्रो लीग चैंपियन नीदरलैंड की ऑस्ट्रेलिया से भिड़ंत होगी। चौथा और अंतिम मुकाबला विश्व कप चैंपियन जर्मनी और 2016 के ओलंपिक चैंपियन अर्जेंटीना के बीच होगा।



हॉकी अब वैज्ञानिक और तकनीकी दोनों का मेल बन चुकी है। हर टीम का मैनेजमेंट ओलंपिक हॉकी जैसी बड़ी प्रतियोगिताओं के लिए अपने दल को तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ता, वित्तीय जरूरत या तकनीकी। दुनिया की निगाहें फील्ड हॉकी प्रतियोगिताओं पर टिकी है जिसमें खिलाड़ी अपने विरोधियों को हैरान करने या हराने के लिए सभी संभावित तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं।

2020 के टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी में उस गौरव की झलक दिख रही है जो कभी ओलंपिक और विश्व हॉकी में नजर आई थी। आठ बार ओलंपिक का स्वर्ण जीतने वाला भारत इस खेल में अपने उदय, पतन और फिर से उभरने का श्रेय ग्रेट ब्रिटेन को देता है।

19वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश अपने साथ हॉकी, क्रिकेट और गोल्फ जैसे खेल लेकर भारत आए। भारत ने जब एक ब्रिटिश उपनिवेश के रूप में ओलंपिक हॉकी में प्रतिस्पर्धा करने का फैसला किया तो तत्कालीन गत चैंपियन अंग्रेजों ने अपनी टीम वापस ले ली थी क्योंकि वे कभी अपने उपनिवेश से प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहते थे।

ऐतिहासिक रूप से ब्रिटेन 1948 के ओलंपिक हॉकी में लौटा, जब स्वतंत्र भारत ने पहली बार अपनी टीम भेजी। भारत ने ग्रेट ब्रिटेन को 4-0 से हराकर अपना वर्चस्व फिर से साबित किया और दिखाया कि 1928, 1932 और 1936 की जीत कोई तुक्का नहीं थी। वर्ष 1952 में भारत ने ब्रिटेन को 3-1 से हराया। उसके बाद म्यूनिख (1972) में अपने पूर्व शासकों पर 5-0 से जीत दर्ज की। सियोल जहां अंग्रेजों ने आखिरी बार अपना ओलंपिक खिताब जीता था, भारत ने उन्हें 0-3 से हरा दिया।

अंग्रेजों को आखिरी बार खुश होने का मौका 2008 में मिला था जब उसने ओलंपिक क्वालीफायर में भारत को हराकर 1928 के बाद पहली बार उसे ओलंपिक हॉकी से बाहर कर दिया था। रविवार को फिर से दोनों टीमें आमने-सामने होंगी तो उनके पास खुद को साबित करने का एक और मौका होगा। ड्रैग फ्लिक के एक्सपर्ट हरमनप्रीत सिंह की अगुआई वाली भारतीय टीम को टूर्नामेंट की अब तक की सबसे कठिन बाधा का सामना करना होगा।

ब्रिटेन ने हालांकि पहले गेम में स्पेन को 4-0 से हराकर शानदार शुरुआत की है लेकिन वह अपना प्रदर्शन बरकरार नहीं रख सका है। उसे दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपना दूसरा गेम 2-2 से ड्रॉ करना पड़ा। नीदरलैंड के खिलाफ तीसरा गेम 2-2 से ड्रॉ पर खत्म होना ब्रिटिश टीम के लिए कुछ सांत्वना कही जा सकती है।  ग्रेट ब्रिटेन ने अपना चौथा मैच फ्रांस के खिलाफ 2-1 के करीबी अंतर से जीता। हालांकि आखिरी और पांचवां मैच विश्व कप चैंपियन जर्मनी से हार गया।

दूसरी ओर भारत ने न्यूजीलैंड पर 3-2 से जीत के साथ अच्छी शुरुआत की। भारत ने दूसरे मैच में 2016 के ओलंपिक चैंपियन अर्जेंटीना से 1-1 से ड्रॉ खेला। उसने तीसरे मैच में आयरलैंड पर 3-2 की जीत से वापसी की लेकिन चौथे में गत चैंपियन बेल्जियम से 1-2 से हार गई। इसके बाद भारतीय टीम ने अपने पूल के पांचवें मैच में ऑस्ट्रेलिया को 3-2 से हराया। यह जीत 52 साल के अंतराल के बाद मिली। 

सफलता की इस लहर पर सवार भारत आत्मविश्वास के साथ अपना आखिरी वार शुरू करेगा लेकिन सब कुछ इस पर निर्भर करेगा कि वह अंग्रेजों की रक्षा पंक्ति को कैसे तोड़ता है और किस रणनीति से ब्रितानियों से अपना खुद करता है।

भारत और ग्रेट ब्रिटेन के बीच मैच के अलावा नॉकआउट दौर के पहले दिन ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड का मैच भी आकर्षण का केंद्र बिंदु होगा। बेल्जियम के हाथों ऑस्ट्रेलियाई टीम की 2-6 से हार के बाद, पूल ए के शीर्ष पर चल रहे नीदरलैंड को कंगारुओं को रोकना होगा, जो अपनी पिछले हार के साये से निकलने की कोशिश करेगी। जर्मनी और अर्जेंटीना भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। 

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