ADVERTISEMENT

ADVERTISEMENT

लुप्त होती परंपरा

वापस लौटने में वे कुछ भी हो पीछे मु़ड़ कर नहीं देखतीं। कहते हैं कि पीछे मुड़ कर देखने से दरिद्रा फिर साथ वापस घर को आ जाएगी।

parampara / tapasya chaubey

एक पौराणिक कथा है समुंद्र मंथन। इसमें देवताओं और असुरों ने मिलकर क्षीर सागर को मंदराचल पर्वत और वासुकि नाग की सहायता से मथा था। हुआ यूं था कि दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण देवताओं का शक्ति क्षीण हो गई थी। ऐसे में भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन कर अमृत प्राप्त करने को कहा। 

इस मंथन से 14 रत्न निकले जिनमें विष, कामधेनु गाय, ऐरावत हाथी, चंद्रमा, महालक्ष्मी, और अंत में अमृत निकला। कहते हैं कि लक्ष्मी के साथ उनकी बड़ी बहन, अलक्ष्मी/ कुलक्ष्मी या फिर दरिद्रा देवी भी प्रकट हुईं। लक्ष्मी को भगवान विष्णु ने अपना लिया पर कुलक्ष्मी की कुरूपता और स्वभाव की वजह से किसी ने उन्हें नहीं अपनाया। 

ऐसे में भगवान विष्णु ने उन्हें कुछ जगहों पर वास का स्थान दिया। माता लक्ष्मी ने कहा- बहन तुम मेरे साथ हर जगह चलना जहां कुमति, कलह और बुरी चीज़ें होंगी वहां से मैं निकल आऊंगी और तुम वास कर जाना। इस प्रकार लोककथा के अनुसार लक्ष्मी और दरिद्रा एक साथ चलती हैं। 

इसी लोककथा को आधार मान बिहार और उत्तर प्रदेश के भोजपुरी क्षेत्र में दीपावली के अगले दिन घर से दलिद्रा/दरिद्र भगाने की  परंपरा है। होता क्या है इसमें, हर घर की बुजुर्ग महिलाएं अपने घर से भोर से पहले सूप बजाते निकलती हैं।

घर के हर कोने में सूप बजाते हुए कहती हैं- लक्ष्मी पईसे(रहे) दलिदर भागे… फिर अपने घर से निकल कर एक जगह मिलते हुए सब गांव-घर की सीमा तक सूप बजाते और लक्ष्मी पईसे दरिदर भागे कहती जाती हैं। 

गांव की सीमा या मुहल्ले की सीमा से वापस लौट कर घर वापस आ जाती हैं। वापस लौटने में वे कुछ भी हो पीछे मु़ड़ कर नहीं देखतीं। कहते हैं पीछे मुड़ कर देखने से दरिद्रा फिर साथ वापस घर को आ जाएगी। घर के दरवाजे पर एक बर्तन में पानी रखा होता है। पैर धो कर और लक्ष्मी का नाम लेकर घर में घुसते ही दरवाजा बंद कर दिया जाता है। 

एकाकी परिवार और शहरों में होते प्रवास के कारण ऐसी कई परंपराएं अब लुप्त हो रही हैं। 
 

Comments

Related