अमेरिका और भारत के बीच रिश्तों में तनातनी के बीच अब भारतीय छात्रों के लिए अमेरिका में दाखिला लेना और भी मुश्किल हो गया है। इस साल की शुरुआत में अमेरिकी विदेश विभाग ने एक नई नीति लागू की, जिसके तहत सभी F (शैक्षणिक), M (व्यावसायिक) और J (एक्सचेंज) वीजा के आवेदकों को पिछले पांच साल के अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट्स की जानकारी देना अनिवार्य कर दी गई।
इस नीति का मकसद छात्रों के डिजिटल व्यवहार का आकलन करना और किसी तरह की राजनीतिक सक्रियता, विचारधारा संबंधी जोखिम या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संकेतों की जांच करना है। सोशल मीडिया जांच में Facebook, X (पूर्व Twitter), LinkedIn, Instagram और TikTok जैसे प्लेटफॉर्म शामिल हैं।
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नई नीति के बाद कई छात्र अपने ऑनलाइन व्यवहार को लेकर सतर्क हो गए हैं। कुछ ने अपने अकाउंट्स डिलीट कर दिए या प्राइवेट कर लिए। अब वीजा आवेदन फॉर्म DS-160 में सभी सोशल मीडिया यूजरनेम देने होंगे और अकाउंट्स को पब्लिक सेट करना होगा, वरना वीजा आवेदन खारिज हो सकता है। भारत के छात्रों की संख्या अधिक होने की वजह से वे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। कई छात्रों ने बताया कि अकादमिक और वित्तीय योग्यता होने के बावजूद उनका वीजा रिजेक्ट कर दिया गया।
इस मामले पर भारत के विदेश मंत्रालय ने चिंता व्यक्त की है और ट्रंप प्रशासन से अनुरोध किया है कि वीजा आवेदनों का निष्पक्ष और बिना पक्षपात के मूल्यांकन किया जाए। आलोचकों का कहना है कि यह नीति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करती है और उन देशों के छात्रों पर अधिक प्रभाव डालती है जिनकी राजनीतिक परिस्थितियाँ अमेरिका के नजरिए से भिन्न हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बैकग्राउंड चेक जरूरी है, लेकिन सोशल मीडिया की हर पोस्ट को जोखिम मानना और लाखों छात्रों को प्रभावित करना न्यायसंगत नहीं है। पाँच साल की गतिविधियों का खुलासा करना और अकाउंट्स को पब्लिक करना छात्रों की प्राइवेसी का उल्लंघन है। साथ ही, अलग राजनीतिक विचार रखने वाले छात्रों को उनकी अभिव्यक्ति की वजह से नुकसान हो सकता है।
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