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आतंकवाद, इनकार और न्याय में देरी: कनिष्क बम हादसा, 40 साल बाद

बातचीत के केंद्र में एक भयावह अनुस्मारक था कि कनिष्क बम विस्फोट केवल चरमपंथ का एक अलग-थलग कार्य नहीं था बल्कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी और खालिस्तानी आतंकवादियों द्वारा संचालित एक समन्वित अभियान का हिस्सा था।

दुखद स्मृतियों के बीच वैश्विक चुनौती को लेकर चेतावनी। / Courtesy Photo

एयर इंडिया की फ्लाइट 182 में 40  साल पहले एक बम विस्फोट हुआ था जिसमें सभी 329 यात्री और चालक दल के सदस्य मारे गए थे। यह 9/11 से पहले उत्तरी अमेरिकी इतिहास में विमानन आतंकवाद का सबसे घातक कृत्य था। 

मंगलवार को इस हादसे में बचे लोग, विद्वान और पत्रकार वॉशिंगटन, डी.सी. स्थित नेशनल प्रेस क्लब में 'कनिष्क बम विस्फोट के 40 साल बाद: 9/11 से पहले उत्तरी अमेरिका में सबसे बड़े आतंकवादी हमले से सबक' नामक एक स्मारक कार्यक्रम में एकत्र हुए। न केवल पीड़ितों को याद करने के लिए बल्कि एक गंभीर चेतावनी जारी करने के लिए कि उस हमले के पीछे की ताकतें अतीत के अवशेष नहीं हैं, वे दुस्साहसी, सक्रिय और वैश्विक हैं। 

बातचीत के केंद्र में एक भयावह अनुस्मारक था कि कनिष्क बम विस्फोट केवल चरमपंथ का एक अलग-थलग कार्य नहीं था बल्कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी और खालिस्तानी आतंकवादियों द्वारा संचालित एक समन्वित अभियान का हिस्सा था। इस सभा में अमेरिका, कनाडा और भारत की सरकारों से आह्वान किया गया कि वे इस अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी गठजोड़ से उत्पन्न लगातार खतरे की अनदेखी करना बंद करें।

एक बेटे का दुख, एक राष्ट्र की चुप्पी
संजय लजर ने दुर्भाग्यपूर्ण उड़ान में अपने पूरे परिवार को खो दिया था। संजय ने एक भावनात्मक गवाही दी। 17 साल की उम्र में अनाथ हो चुके लजर ने बताया कि उन्हें एक कॉल आया जिसने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। उन्होंने कहा कि मुझे अकेले ही कॉर्क जाना पड़ा और अस्पताल में शवों की पहचान करनी पड़ी। वह आघात हर दिन मेरे साथ रहता है।

उनका परिवार छुट्टी मनाने के लिए उड़ान में था। लजर अपने परीक्षा परिणामों की अपील करने के लिए पीछे रह गये और अपने माता-पिता और छोटी बहन की मौत से बाल-बाल बच गये। उन्होंने कनाडाई सरकार की ऐतिहासिक उदासीनता की निंदा की और कहा कि ओटावा को बमबारी को कनाडाई त्रासदी के रूप में स्वीकार करने में 20 साल लग गए, जबकि अधिकांश पीड़ित भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे। अगर वह विमान गोरे कनाडाई लोगों से भरा होता तो न्याय दूसरे साल में मिल जाता। लेकिन हम भूरे थे।

पत्रकारिता पर सवाल: आईएसआई-खालिस्तान लिंक का पर्दाफाश
खालिस्तान: ए प्रोजेक्ट ऑफ पाकिस्तान के लेखक और पुरस्कार विजेता कनाडाई पत्रकार टेरी माइलवस्की ने खालिस्तान आंदोलन को पाकिस्तान की आईएसआई से जोड़ने वाले अकाट्य सबूतों के साथ खुलासे के रूप में रखा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के सुरक्षित ठिकानों, प्रशिक्षण शिविरों और फंडिंग के बिना खालिस्तानी सशस्त्र विद्रोह कभी शुरू नहीं हो पाता।

सबूतों का खुलासा और असफल न्याय
स्कॉलर पुनीत साहनी ने पहले कभी न देखे गए दस्तावेजों का खुलासा किया, जिसमें बम लगाने के लिए इस्तेमाल किए गए हवाई टिकट भी शामिल थे। उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे कनाडा की कानूनी प्रणाली ने डर, तकनीकी और अत्यधिक सतर्क न्यायपालिका के कारण प्रमुख गवाहों को खारिज करके पीड़ितों को विफल कर दिया।

साहनी ने कहा कि ये आतंकवादी बम विस्फोट के बाद भी आगे के हमलों की योजना बनाते हुए (रिकॉर्ड) पकड़े गए थे। लेकिन क्योंकि एफबीआई के मुखबिरों की पहचान छिपाई गई थी, इसलिए कनाडाई अदालतों ने मामलों को खारिज कर दिया। यह न्याय का पूरी तरह से मजाक था।

वैश्विक खतरा... सिर्फ़ भारत का नहीं
वक्ताओं ने जोर देकर कहा कि खालिस्तान आंदोलन, जिसे कभी भारत में एक सीमांत मुद्दा माना जाता था, अब दुनिया भर के देशों की सुरक्षा के लिए ख़तरा बन गया है। उन्होंने अमेरिकी शहरों में खालिस्तानी हिंसा, नेपाल सीमा पर चीनी नागरिकों के साथ मिला दुष्प्रचार और इस्लामी समूहों से समर्थन सहित परेशान करने वाली घटनाओं का हवाला दिया। लजर ने कहा कि यह सिर्फ़ भारत की समस्या नहीं है। खालिस्तान = पाकिस्तान = इस्लामी आतंकवाद। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, पश्चिम को जाग जाना चाहिए।

आशा, कार्रवाई और सत्य का आह्वान
लजर ने ऑन एंजल्स विंग्स नामक संस्मरण लिखा है और उनकी दूसरी पुस्तक, द ब्लड ऑफ एंजल्स, इस पतझड़ में आने वाली है। उन्होंने ने कहा कि त्रासदी अभी खत्म नहीं हुई है। हमें नाम बताने और शर्मसार करने की जरूरत है। हमें वास्तविक जवाबदेही की जरूरत है। न्याय में देरी न्याय से वंचित करने के समान है, लेकिन चुप्पी मिलीभगत है।

पत्रकार पूनम शर्मा द्वारा संचालित और हिंदूएक्शन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम ने न केवल त्रासदी की ओर ध्यान आकर्षित किया बल्कि राज्य द्वारा समर्थित दंड से मुक्ति, विदेशी हस्तक्षेप और बढ़ते उग्रवाद के पैटर्न की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। 

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