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'वीजा रद्द कर दूंगा' - भारतीय मूल के CEO पर ही भारतीय वर्कर के शोषण का आरोप

इस मुकदमे में अमृतेश की मदद करने वाले जय पामर ने इस स्थिति को अमेरिका में भारतीय कर्मचारियों के लिए एक ‘स्क्विड गेम’ करार दिया।

सांकेतिक तस्वीर / Pexels

भारतीय मूल के H-1B वर्कर अमृतेश वल्लभनेनी ने अपने नियोक्ता सिरी सॉफ्टवेयर सॉल्यूशंस और इसके मालिक पवन टाटा के खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर किया है।

अमृतेश ने आरोप लगाया कि उनके साथ शोषण और धोखाधड़ी की गई। उन्हें अपना ही वेतन खुद देने के लिए मजबूर किया गया और यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनका H-1B वीजा रद्द करने की धमकी दी गई। उनकी शिकायत के अनुसार यह मामला जबरन मजदूरी, लेबर ट्रैफिकिंग और वीजा दस्तावेजों को रोककर रखने से जुड़ा है। यह जानकारी ब्राइटबार्ट न्यूज की एक रिपोर्ट में दी गई।

अमृतेश ने आगे कहा कि यह शोषण केवल उनके साथ या एक कंपनी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी और बढ़ती हुई प्रवृत्ति का हिस्सा है।

इस मुकदमे में अमृतेश की मदद करने वाले जय पामर ने इस स्थिति को अमेरिका में भारतीय कर्मचारियों के लिए एक ‘स्क्विड गेम’ करार दिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका में बने रहने की हताशा भारतीय कर्मचारियों को ऐसे शोषण और टॉक्सिक वर्क कल्चर को सहने पर मजबूर करती है। इसे अक्सर भारतीय मूल के कुछ सीईओ ही चलाते हैं।

अमृतेश ने बताया कि उन्होंने भारत में पढ़ाई की और 2015 में F-1 छात्र वीजात के तहत अमेरिका आए जहां उन्होंने कॉलेज की फीस के लिए स्टूडेंट लोन लिया। इसके बाद उन्होंने ऑप्शनल प्रेक्टिकल ट्रेनिंग (OPT) के तहत न्यू जर्सी की एक कंपनी में काम किया। साल 2018 में उन्होंने उस फर्म से जुड़ाव किया जिसके खिलाफ उन्होंने अब मुकदमा दायर किया है। कंपनी ने उन्हें H1B वीजा प्रायोजन (sponsorship) का वादा किया था।

मुकदमे में दावा किया गया है कि कंपनी ने मजदूरी कानूनों का उल्लंघन किया। अमृतेश को छह महीने तक अपनी सैलरी खुद देने के लिए मजबूर किया गया और उन्हें कानूनन तय न्यूनतम वेतन नहीं दिया गया। इसके बावजूद वे नौकरी नहीं छोड़ सके क्योंकि कंपनी ने धमकी दी कि अगर वे विरोध करेंगे तो उनका H1B वीजा रद्द कर दिया जाएगा।

कंपनी ने उन्हें ग्रीन कार्ड देने का वादा भी किया था लेकिन साथ ही उन्हें ऐसी शर्तें मानने के लिए भी दबाव डाला गया जो अन्यायपूर्ण थीं। उनको कहा गया कि अगर उन्होंने इंकार किया तो उन्हें वापस भारत भेज दिया जाएगा।

मुकदमे में कहा गया है कि भले ही डिपार्टमेंट ऑफ लेबर यानी DOL ने उन्हें एक निश्चित वेतन की गारंटी दी थी लेकिन अमृतेश के पास अक्सर किराया और अपने परिवार के खर्चों के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं होते थे। टूटे वादों और अस्थिर वेतन के कारण उनका स्वास्थ्य बीमा भी खत्म हो गया। वे क्रेडिट कार्ड भुगतान नहीं कर पाए और अमृतेश व उनकी पत्नी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रहे। एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें गंभीर पैर की चोट लगी लेकिन पैसे की कमी के कारण वे डॉक्टर के पास नहीं जा सके।

यह मुकदमा ऐसे समय में आया है जब अमेरिकी श्रम विभाग ने प्रोजेक्ट फायरवॉल नाम की एक पहल के तहत वीजा धोखाधड़ी और H1B कर्मचारियों के शोषण पर कार्रवाई तेज कर दी है। यह पहल ट्रम्प प्रशासन के दौरान शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य उन कंपनियों को पकड़ना है जो विदेशी कर्मचारियों को वीजा के नाम पर धोखा और शोषण करती हैं।

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