अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 30 जुलाई को भारत से आने वाले सामान पर 25 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने की घोषणा की है। यह कदम दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही बातचीत के विफल होने के बाद उठाया गया है, यह मुख्य रूप से भारत के कृषि बाजार तक अमेरिकी पहुंच को लेकर था। भारत ने साफ किया है कि वह अपने श्रम-प्रधान कृषि क्षेत्र की सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा।
भारत का किन उत्पादों को लेकर विरोध
अमेरिका भारत से मक्का, सोयाबीन, गेहूं, चावल, दूध, पोल्ट्री, फल, ड्राई फ्रूट्स, नट्स और एथनॉल जैसे उत्पादों के लिए बाजार खोलने की मांग कर रहा है। भारत ने ड्राई फ्रूट्स और सेब जैसे कुछ उत्पादों को लेकर कुछ हद तक सहमति जताई है, लेकिन जेनेटिक फसलें जैसे मक्का, सोयाबीन, गेहूं और डेयरी उत्पादों को लेकर सख्त रुख अपनाया है।
भारत में ज्यादातर लोग जेनेटिक फसलों को स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक मानते हैं। यही वजह है कि भारत सरकार ने अब तक देश में खुद विकसित की गई जीएम सरसों को भी कानूनी मंज़ूरी नहीं दी है। इसी तरह, डेयरी सेक्टर लाखों छोटे और भूमिहीन किसानों की आजीविका का आधार है। भारत में शाकाहारी आबादी के कारण, अमेरिकी पशुपालक जिन मवेशियों को मांस-आधारित आहार देते हैं, उनके उत्पाद भारत में स्वीकार्य नहीं हैं।
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कृषि आयात इतना संवेदनशील मुद्दा क्यों
भारत अधिकतर कृषि उत्पादों में आत्मनिर्भर है, सिवाय वनस्पति तेल के। तेल के मामले में बाजार खोलने के बाद देश को अपनी जरूरत का दो-तिहाई हिस्सा आयात करना पड़ता है। सरकार नहीं चाहती कि बाकी खाद्य पदार्थों के साथ भी ऐसा हो, जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में आधे से अधिक हिस्सेदारी रखते हैं।
हालांकि कृषि का जीडीपी में योगदान केवल 16% है, लेकिन यह देश की आधी से अधिक आबादी को रोज़गार देता है। कुछ साल पहले कृषि कानूनों को लेकर देशभर में हुए विरोध ने सरकार को कानून वापस लेने पर मजबूर कर दिया था। अब अमेरिकी कृषि उत्पादों से भारतीय बाजार भरने पर किसानों का विरोध फिर सिर उठा सकता है।
भारत और अमेरिका की खेती में फर्क
भारत में औसत खेत का आकार मात्र 1.08 हेक्टेयर (2.67 एकड़) है, जबकि अमेरिका में यह 187 हेक्टेयर तक होता है। डेयरी फार्मिंग में यह अंतर और भी बड़ा है—भारत में 2-3 पशु, जबकि अमेरिका में सैकड़ों। भारत के किसान पारंपरिक तकनीकों पर निर्भर हैं, जबकि अमेरिकी खेती अत्याधुनिक और मशीनीकृत है।
एथनॉल के आयात को लेकर हिचकिचाहट क्यों
भारत की एथनॉल मिश्रण योजना का उद्देश्य ऊर्जा आयात घटाना और देसी किसानों को समर्थन देना है। गन्ना और मक्का से बनने वाले एथनॉल से न सिर्फ किसानों को फायदा हुआ है, बल्कि देश ने पेट्रोल में 20% एथनॉल मिलाने का लक्ष्य भी समय से पहले पूरा कर लिया है।
देशभर में एथनॉल बनाने वाले कई नए कारखाने खुले हैं और मक्का की खेती भी बढ़ी है। ऐसे में अगर अमेरिका से सस्ता एथनॉल आने लगा, तो स्थानीय कीमतें गिरेंगी। खासकर बिहार जैसे मक्का उत्पादक राज्य, जहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां किसानों में नाराजगी बढ़ सकती है और यह भाजपा के खिलाफ माहौल बना सकता है।
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