राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प द्वारा आखिरी समय में टैरिफ वापस नहीं लिए तो इस सप्ताह अमेरिका को भारतीय निर्यात पर दुनिया के कुछ सबसे ऊंचे शुल्क लग सकते हैं। ट्रम्प की डेडलाइन 27 अगस्त है। यानी बस आज का दिन शेष है।
ट्रम्प ने युद्ध और शांति के मुद्दों को व्यापार से जोड़ दिया है और रूसी तेल की लगातार खरीद के बदले में नई दिल्ली पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी है। इसके बारे में वाशिंगटन का तर्क है कि यह यूक्रेन में मास्को के युद्ध के वित्तपोषण में मदद करता है।
टैरिफ की इस आक्रामक कार्रवाई ने अमेरिका-भारत संबंधों को हिलाकर रख दिया है। इससे नई दिल्ली को बीजिंग के साथ संबंधों को सुधारने का एक नया प्रोत्साहन मिला है और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। ट्रंप ने 6 अगस्त को तीन हफ्ते की समय सीमा जारी की थी, जिसके भारत में बुधवार सुबह से लागू होने की उम्मीद है।
यह कितना बुरा होगा?
वर्ष 2024 में भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य अमेरिका था, जहां 87.3 अरब डॉलर का निर्यात हुआ। नोमुरा के विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि 50 प्रतिशत शुल्क 'व्यापार प्रतिबंध के समान' होगा, जिससे कम मूल्य संवर्धन और कम मार्जिन वाली छोटी फर्मों को भारी नुकसान होगा। एलारा सिक्योरिटीज की गरिमा कपूर ने कहा कि इतने भारी आयात करों के तहत कोई भी भारतीय उत्पाद किसी भी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त का सामना नहीं कर सकता।
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि शुल्क इस वित्तीय वर्ष में भारत की जीडीपी वृद्धि दर में 70 से 100 आधार अंकों की कमी ला सकते हैं, जिससे विकास दर छह प्रतिशत से नीचे आ जाएगी, जो महामारी के बाद से सबसे कम गति है।
कपड़ा, समुद्री भोजन और आभूषण निर्यातक पहले ही अमेरिका से रद्द हुए ऑर्डर और बांग्लादेश तथा वियतनाम जैसे प्रतिद्वंद्वियों से हुए नुकसान की रिपोर्ट कर रहे हैं, जिससे नौकरियों में भारी कटौती की आशंका बढ़ गई है।
एक छोटी सी राहत: भारत में असेंबल किए गए iPhone सहित फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स को फिलहाल छूट दी गई है।
एसएंडपी का अनुमान है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 1.2 प्रतिशत के बराबर निर्यात प्रभावित होगा, लेकिन यह एक 'एकमुश्त' झटका होगा, जो देश की दीर्घकालिक विकास संभावनाओं को 'बेपटरी नहीं करेगा।'
क्या दोनों में से कोई भी झुकेगा?
अभी तक कोई संकेत नहीं है। दरअसल, अलास्का में अमेरिका और रूस के राष्ट्रपतियों की मुलाकात के बाद से वाशिंगटन ने भारत की आलोचना तेज कर दी है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि ट्रम्प के अल्टीमेटम तक रूस से तेल खरीदना बंद करने के लिए कोई बातचीत नहीं हुई थी।
केप्लर के व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि भारत का रुख सितंबर में ही स्पष्ट होगा, क्योंकि अगस्त में ज्यादातर शिपमेंट ट्रम्प की धमकियों से पहले ही तय हो गए थे। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि भारत एक मुश्किल स्थिति में है।
नई दिल्ली स्थित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के नंदन उन्नीकृष्णन ने कहा कि भारत को ऐसी स्थिति से बाहर निकलने के लिए काफी चतुराई और लचीलेपन की जरूरत है। उन्नीकृष्णन ने तर्क दिया कि वाशिंगटन भारत से कह रहा है: हमें लगता है कि आप रूस-यूक्रेन भू-राजनीतिक श्रृंखला की सबसे कमजोर कड़ी हैं।
भारत क्या कर सकता है?
नई दिल्ली ने ब्रिक्स साझेदारों और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों, दोनों के साथ संबंधों को गहरा करते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की कोशिश की है। जयशंकर ने सहयोगी मास्को की यात्रा की और द्विपक्षीय व्यापार में बाधाओं को कम करने के वादे किए जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से ठंडे पड़े संबंधों को सुधारने के लिए सात वर्षों में अपनी पहली चीन यात्रा की तैयारी कर रहे हैं।
घरेलू स्तर पर, भारतीय मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार निर्यातकों के लिए 2.8 बिलियन डॉलर के पैकेज पर काम कर रही है, जो छह साल का कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य नकदी की चिंताओं को कम करना है। मोदी ने खर्च बढ़ाने और अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए रोजमर्रा की वस्तुओं पर कर में कटौती का भी प्रस्ताव रखा है।
व्यापार समझौते में क्या रुकावट आ रही है?
कृषि और डेयरी क्षेत्र पर बातचीत लड़खड़ा गई है। ट्रम्प अमेरिका की पहुंच बढ़ाना चाहते हैं, जबकि मोदी भारत के किसानों, जो एक बड़ा मतदाता समूह है, की रक्षा के लिए दृढ़ हैं। भारतीय मीडिया की रिपोर्टों से पता चलता है कि अमेरिकी वार्ताकारों ने अगस्त के अंत में होने वाली भारत यात्रा रद्द कर दी है। इससे अटकलें लगाई जाने लगीं कि बातचीत टूट गई
है।
हालांकि, जयशंकर कहते हैं कि बातचीत जारी है। वे रूखेपन से कहते हैं- बातचीत अभी भी जारी है, इस मायने में कि किसी ने नहीं कहा कि बातचीत बंद हो गई है। उन्होंने आगे कहा- और लोग, लोग एक-दूसरे से बात करते हैं।
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