डेलॉयट इंडिया के निदेशक प्रतीक कंवल ने विदेश में पढ़ाई कर रहे छात्रों को बड़ा संदेश दिया है। उन्होंने कहा है कि भारत इस समय बदलाव के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में विदेशी छात्रों के लिए भारत वापस आने और देश की तरक्की का हिस्सा बनने का यही सबसे अच्छा मौका है।
हार्वर्ड से ग्रैजुएशन करने वाले प्रतीक ने न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ विशेष इंटरव्यू में भारत में कॉरपोरेट सेक्टर की बदलती तस्वीर, आंत्रप्रेन्योरशिप, इन्वेस्टमेंट के अलावा रोजगार की संभावनाओं पर विस्तृत बातचीत की।
आपने हार्वर्ड कैनेडी स्कूल से पढ़ाई की है, अब यहां गेस्ट स्पीकर के रूप में वापस आने पर कैसा महसूस करते हैं?
यह वाकई आश्चर्यजनक है। मैंने 2018 में यहां कॉन्फ्रेंस की सह-अध्यक्षता की थी। अब छह साल बाद गेस्ट स्पीकर के रूप में वापस आने से बहुत सी यादें ताजा हो गई हैं। यहां के लोग वाकई शानदार काम कर रहे हैं और विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
आपके पास पब्लिक पॉलिसी का बड़ा अनुभव है। कॉर्पोरेट सेक्टर में आपकी भूमिका में यह अनुभव किस तरह काम आता है?
हम बहुत सी सरकारों के साथ काम कर रहे हैं। मुझे लगता है कि भारत में सरकारें पेशेवर हो रही हैं। वे अब अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक सेवाओं का लाभ पहुंचाने पर ध्यान दे रही हैं। यहीं पर हमारी जरूरत होती है। हम तकनीक, डाटा, कंसल्टेंसी आदि के मामले में सरकार का सहयोग कर रहे हैं। उनकी योजनाओं को आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं। हम अधिकारियों, राजनेताओं के सहायक की भूमिका निभा रहे हैं और उन्हें योजनाओं के अमल के दौरान चुनौतियों से निपटने में उनकी मदद कर रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास की क्षमता बढ़ रही है। विदेशी कंपनियां इसे कैसे देखती हैं और वे इस नए विकास को कैसे अपना रही हैं?
बहुत सी कंपनियां अब भारत में अपने जीसीसीएस यानी ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर स्थापित करना चाहती हैं। उन्हें कोई दिक्कत न हो, वे तकनीक के मामले में आगे बनी रहें, इस पर काफी ध्यान दिया गया है। तकनीक पहले भी थी, लेकिन उस पर अमल करने में समय लगता था। लेकिन कोरोना महामारी ने हमें काफी कुछ सबक दिए हैं। कंपनियों को तकनीक से जोड़ने की प्रक्रिया काफी तेज हुई है। जाहिर है डेलॉयट इसमें कंपनियों की मदद करने में सबसे आगे है।
भारत में घरेलू स्तर पर आंत्रप्रेन्योरशिप और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए काफी कुछ किया जा रहा है, ऐसे में वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियां कंसल्टिंग के क्षेत्र में कैसी रणनीति अपना रही हैं?
ये सच है कि उद्यमिता बढ़ रही है और उसके साथ संभावनाएं भी बढ़ रही हैं। नई नई कंपनियों को कंसल्टेंसी की जरूरत है, रणनीतिक सपोर्ट की जरूरत है। उनकी वैश्विक पूंजी तक पहुंच है। वे विदेश से पैसा जुटा रहे हैं। यहीं पर हम उनकी मदद कर सकते हैं। हम अपनी तकनीकी विशेषज्ञता से उनके संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल करके उनकी क्षमताओं को विस्तार दे सकते हैं। मुझे लगता है कि जैसे जैसे आंत्रप्रेन्योरशिप बढ़ेगी, ज्यादा से ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत आएंगी। भारत में चीजों के निर्माण पर उतना ही ध्यान बढ़ेगा।
आपने विदेश में पढ़ाई की, उसके बाद भारत लौटकर करियर बनाया। आप नए युवा पेशेवरों को क्या सलाह देना चाहेंगे?
मुझे लगता है कि यह भारत वापस लौटने का सबसे अच्छा समय है। आप अमेरिका जैसे किसी देश में डिग्री ले सकते हैं और उसके बाद अपनी पहली नौकरी भारत में लौटकर करने के बारे में सोच सकते हैं। इसके लिए इससे ज्यादा बेहतर समय पहले कभी नहीं रहा। मुझे लगता है कि अब भारत आपको वह अवसर प्रदान करता है। हम अब चीन पर निर्भर नहीं हैं। हमारे पास चीजों को करने का अपना तरीका है। हमारी अपनी संस्कृति है। हमें इस पर गर्व है। हमारे पास नौकरियां हैं जो आपको भारत में वैश्विक स्तर पर काम करने का मौका देते हैं। मुझे लगता है कि यह सबसे रोमांचक है। हर किसी को इस पर गौर करना चाहिए और घर वापसी के बारे में सोचना चाहिए।
मुझे लगता है कि भारत जल्द ही एक वैश्विक नेता बनने जा रहा है और यही कारण है कि उसे प्रतिभाओं की जरूरत है। मैं अपनी डिग्री पूरी होते ही वापस भारत चला गया। वहां हार्वर्ड केनेडी स्कूल की तर्ज पर एक पब्लिक पॉलिसी स्कूल की स्थापना की। मुझे इस पर गर्व है क्योंकि अब मेरे देश में भी ए क्लास, ए स्तर का पब्लिक पॉलिसी स्कूल है। हमें पश्चिम से अच्छी चीजें सीखने और अपनी संस्कृति में, अपनी जड़ों में वापस लौटकर उन चीजों को स्थापित करने की जरूरत है।
भारत में नए नए अवसर पैदा होने के कारण कई युवा पेशेवर विदेश से भारत लौटना चाह रहे हैं। उन्हें क्या सुझाव देना चाहेंगे?
मेरे ख्याल से उन्हें सपोर्ट ग्रुप्स का हिस्सा बनना चाहिए। नेटवर्किंग मजबूत करनी चाहिए। हर कॉलेज का अपना एक क्लब होता है। हार्वर्ड में एक क्लब है, प्रिंसटन का एक क्लब है। येल में एक क्लब है। ये पूर्व छात्र आपको समझते हैं क्योंकि आप उनके साथ ही पढ़े लिखे हैं। ऐसे में इन क्लबों का हिस्सा बनना जरूरी है। अपनी जड़ों को समझें। संस्कृति को समझें। एक बार जब आप संस्कृति और जड़ों से खुद को आत्मसात कर लेंगे तो आपको वापस लौटकर एडजस्ट करने में दिक्कत नहीं होगी।
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