भारत और अमेरिका के बीच जो चल रहा है और ट्रम्प व मोदी के बीच जो हो रहा है वह एक ऐसा घटनाक्रम है जिस पर दोनों देशों के हर वर्ग के लोगों के अलावा दुनिया की निगाहें हैं। पूरी दुनिया की निगाहें अमेरिका पर हैं और अमेरिका की नजरें भारत पर। बीते कुछ सप्ताह या महीनों से दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच मुखर और मूक तरीके से जो कुछ हो रहा है उससे उपजी तल्खी और खटास अब कम होने के आसार दिख रहे हैं। बेशक, अगर ट्रम्प मुखर और आक्रामक थे तो रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने की पहल भी उनकी ओर से ही हुई। दंडात्मक टैरिफ से पैदा हुआ व्यापारिक मामले शांत हो जाने तक भारत और विशेष तौर से मोदी से बात न करने का ऐलान करने वाले ट्रम्प अब नर्म हो गये हैं। इसका प्रमाण पहले उनकी मोदी से बातचीत की उत्कंठा और फिर जन्मदिन के मौके पर किया गया फोन संवाद है। यही नहीं 17 सितंबर को ट्रम्प ने मोदी को जो फोन किया उसमें राष्ट्रपति ने रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के प्रयासों में प्रधानमंत्री को भी शामिल किया। कुल मिलाकर ट्रम्प का यह एक ऐसा यू-टर्न था जिसकी दुआ हिंदुस्तान के अलावा अमेरिका में बसे अधिकांश जन मांग रहे थे। कारोबारी जगत तो मानो यही चाहता था। रिश्तों की खटास कम होने के हालात बने तो उम्मीदों में हलचल होने लगी। आशंका का माहौल अब आशा के मार्ग पर फिर से कदमताल को बेताब है।
लेकिन इस पूरे माहौल के बीच एक चीज जो फिजाओं में है वह है सतर्कता। चूंकि रुकी हुई व्यापार वार्ता फिर शुरू होने की खबर है और भारत की ओर से नवंबर में समझौते की आशा व्यक्त की गई है इसलिए कड़वाहट से निकलकर मिठास पाने के लिए दोनों पक्षों की ओर से सतर्कता बरती जा रही है। दोनों तरफ से कोशिश यही है कि साझा लाभ के अतिरिक्त व्यक्तिगत नफा अधिक हो। टैरिफ के मामले में आगे क्या होगा, यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन यह भी तय है कि इतने अधिक शुल्क के साथ दोनों पक्षों में संवाद तो हो सकता है लेकिन रिश्तों में मिठास नहीं आ सकती। 50 फीसदी टैरिफ से हिंदुस्तान के साथ ही अमेरिका में भी आम लोगों के लिए स्थितियां असहज होना शुरू हो गई हैं। इसलिए जब तक भारत सर्वाधिक टैरिफ वाले देशों में रहता है हालात का सामान्य होना कठिन है। दूसरे, ट्रम्प की दूसरी पारी में उम्मीदों से शुरू हुआ सफर जिस तरह से आशंकाओं के बीच से होता हुआ फिर आशाओं की राह पर है उसमें कब किस तरह का टर्न या यू-टर्न आ जाए इसका खटका बना हुआ है। 50 फीसदी टैरिफ होते ही कुछ अमेरिकी नेता भले ही उग्र हो गये हों लेकिन भारत की ओर से किसी व्यग्रता का प्रदर्शन नहीं हुआ। हालांकि भारतीय मीडिया में इस तरह की खबरें भी आईं कि उग्र होकर शांत हो जाना ट्रम्प की फितरत है, लिहाजा भारत को सोच-समझकर और फूंक-फूंक कर कदम उठाना चाहिए।
बहरहाल, जैसा घटनाक्रम रहा है उसमें इस तरह की नसीहत पाठशालाओं का खुलना स्वाभाविक है। लेकिन यह भी तय है कि ट्रम्प का व्यवहार भले ही गर्म-नर्म रहा हो, वे अपने एजेंडा से पीछे नहीं हटने वाले। उनके कई फैसलों पर अदालतें भले खिलाफ हों लेकिन ट्रम्प अपने हिसाब से बढ़ते रहेंगे। बेशक, ट्रम्प की घरेलू चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। नस्लीय हिंसा और व्यवहार की घटनाएं अवश्य चिंताजनक हैं लेकिन अमेरिका में भारत को लेकर आमतौर पर राय बुरी नहीं है। दोनों देशों का एक-दूसरे के पास आना दोनों ओर से घरेलू मोर्चों पर भी राहत देने वाला ही साबित होगा। यह बात सलाहकारों को भी समझनी और समझानी होगी।
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