भारत आतंकवाद के खिलाफ अपनी जंग के तीसरे चरण में है। पहला चरण वह था जिसमें पहलगाम हमले के साजिशकर्ताओं को सबक सिखाने के लिए 7 मई को पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भारत ने आतंकी ठिकानों पर प्रहार किया था। दूसरे चरण में भारत-पाकिस्तान के बीच अधिकतर सीमाई क्षेत्रों में सशस्त्र संघर्ष हुआ और तीन-चार दिन की हिंसक कार्रवाई में दोनों ओर से 100 से अधिक जानें जाने के बाद 10 मई को युद्ध विराम लागू हो गया। युद्ध विराम के बाद से अब तक जो हो रहा है और आने वाले दिनों में होने वाला है, खास तौर से भारत की ओर से, उसे आतंकवाद के खिलाफ जंग का तीसरा चरण माना जा सकता है। इस चरण को हम सीधे-सीधे राजनयिक घेराबंदी भी कह सकते हैं।
गौरतलब है कि तीसरे चरण की डोर भारत ने शुरुआत से ही थाम कर रखी है। इसीलिए 7 मई के प्रहार के तत्काल बाद ही भारत ने अमेरिका समेत दुनिया के अधिकांश (ज्यादातर मित्र) राष्ट्रों को ऑपरेशन सिंदूर के बारे में खुद ही बताया। अलबत्ता, जिस दूसरे चरण का अंत भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम से हुआ उसके अंतिम अध्याय को लेकर दावे-प्रतिदावे और संशय की स्थिति है। इसलिए क्योंकि भारत का कहना है कि युद्ध विराम की पेशकश पाकिस्तान की ओर से की गई थी और जो फैसला हुआ वह दोनों देशों के बीच का मसला रहा। वहीं, पाकिस्तान का रुख इस मसले पर खुलकर सामने नहीं आया। लेकिन अमेरिका ने दावा कर दिया कि युद्ध विराम उसकी कोशिशों का नतीजा है। हालांकि भारत ने अमेरिका के इस दावे का खंडन किया है।
बहरहाल, तो बात चल रही थी आतंकवाद के खिलाफ भारत की जंग के तीसरे चरण की। राजनयिक समर्थन हासिल करने, तमाम देशों को अपनी स्थिति स्पष्ट करने, पड़ोसी पाकिस्तान को बेनकाब करने और भविष्य के अपने स्टैंड को साफ करने के लिए भारत से सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल दुनिया के तमाम देशों की यात्रा कर निकल रहे हैं। प्रतिनिधिमंडल के सदस्य जिन-जिन देशों में जाएंगे वहां सियासी स्तर पर तो अपना काम करेंगे ही यूएन जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारत की बात स्पष्टता से रखी जाएगी। अब आतंकवाद से जंग की राह में पाकिस्तान को सरहदों के पार घेरने की भारत की यह कवायद क्या रंग लाती है यह तो समय आने पर ही पता चलेगा लेकिन इतना तो लग ही रहा है कि इसके (राजनय) जरिये भारत पूरी दुनिया को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में शामिल करना चाह रहा है। राजनय के माध्यम से भारत दुनिया के तमाम देशों को यह भी समझाना चाहता है कि आतंकवाद के खिलाफ यह लड़ाई उसकी अकेले की नहीं है। यह जंग उन तमाम देशों की तो है ही जो इसका दंश झेल चुके हैं, उनकी भी है जो सीधे-सीधे भले ही किसी हमले का शिकार न हुए हों लेकिन परोक्ष रूप से उससे प्रभावित हैं या हो सकते हैं। शायद इस राजनयिक मुहिम की जरूरत भारत को इसलिए भी पड़ी कि पाकिस्तान के खिलाफ हालिया टकराव में जिस 'खुले समर्थन' की वह दुनिया से आस लगाए बैठा था, वैसा मिला नहीं। उस पर विडंबना यह कि पाकिस्तान को तुर्किये और अजरबैजान का खुला समर्थन मिला और चीन भी उसके पीछे खड़ा दिखा।
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