संयुक्त राज्य अमेरिका में कई भारतीयों और H-1B या ग्रीन कार्ड प्रक्रिया लंबित रहने वाले लोगों के लिए दो घटनाक्रम चिंता का सबब हैं। पहला, सीनेटर चक ग्रासली और डिक डर्बिन द्वारा H-1B और L-1 वीजा सुधार अधिनियम को पुनः प्रस्तुत करना। इस द्विदलीय विधेयक का उद्देश्य H-1B और L-1 कार्यक्रमों के कथित दुरुपयोग को दूर करना है। इस विधेयक में उन कंपनियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है जो अमेरिकी श्रमिकों की जगह विदेशी मजदूरों को अपने यहां काम पर रखती हैं और श्रम विभाग द्वारा निगरानी बढ़ाने पर जोर दिया गया है। हालांकि घोषित लक्ष्य इन कार्यक्रमों को उनके मूल उद्देश्य पर बहाल करना है। यानी घरेलू स्तर पर उपलब्ध न होने की स्थिति में प्रतिभाओं को लाना। वीजा धारक और संभावित आवेदक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि सख्त प्रवर्तन मौजूदा और भविष्य के आवेदनों को कैसे प्रभावित कर सकता है। जिन कंपनियों ने इन कार्यक्रमों पर बहुत अधिक भरोसा किया है, उन्हें सीमाओं का सामना करना पड़ सकता है, जिससे कुशल विदेशी श्रमिकों की भर्ती प्रक्रिया धीमी हो सकती है।
दूसरी चिंता अमेरिकी सरकार के चल रहे शटडाउन यानी 'बंद' से उत्पन्न होती है। H-1B आवेदनों सहित वीजा प्रक्रिया, श्रम स्थिति आवेदनों और PERM प्रमाणपत्रों के लिए श्रम विभाग पर आंशिक रूप से निर्भर करती है। धनराशि रुकने से, नए आवेदनों में देरी हो सकती है। आव्रजन वकीलों का कहना है कि स्थानांतरण, नए H-1B और स्थिति परिवर्तन, परिचालन फिर से शुरू होने तक स्थगित रह सकते हैं। हालांकि, भारत स्थित अमेरिकी दूतावास ने कहा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और विदेशी दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों में निर्धारित पासपोर्ट और वीजा सेवाएं 'स्थिति अनुकूल होने पर विनियोजन में चूक के दौरान जारी रहेंगी।' भले वीजा शुल्क से वित्त पोषित USCIS और वाणिज्य दूतावास सेवाएं जारी रहती हैं, लेकिन DOL में कोई भी रुकावट उन लोगों के लिए अनिश्चितता पैदा करती है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में रोजगार शुरू करना चाहते हैं। करियर और आव्रजन योजनाओं में भी अनिश्चितता है। पहले से ही प्रक्रियाधीन व्यक्तियों को सेवाएं मिलती रह सकती हैं लेकिन नए आवेदकों को व्यवधानों का सामना करना पड़ सकता है। नीतिगत सुधारों और परिचालन में देरी का एक-दूसरे पर पड़ने वाला प्रभाव इस समय अमेरिकी वीजा प्रणाली से जुड़े लोगों के लिए चुनौतियों को उजागर कर रहा है।
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