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सियासी चौसर पर कारोबार और कूटनीति

ट्रेड वार का प्रतिकूल असर कारोबार के साथ ही सियासत और संबंधों के बीच झूल रहा है। इस बीच कूटनीति के रंग भी दिखाई देने लगते हैं।

सांकेतिक तस्वीर / AI Generated

राष्ट्रपति ट्रम्प के टैरिफ की दुनिया में हलचल है। लेकिन टैरिफ की मार केवल कारोबार तक सीमित नहीं है। टैरिफ की आंच में द्विपक्षीय और सामूहिक रिश्ते तपने और तड़पने लगे हैं। इसलिए क्योंकि भारत समेत जिन देशों पर भी दंडात्मक शुल्क लगाए गए हैं उन मुल्कों के साथ अमेरिका के रिश्तों में लगातार खटास बढ़ रही है। जहां तक भारत का सवाल है तो 50 फीसदी टैरिफ की मार से तमाम कारोबार तो प्रभावित होना शुरू हो ही गए हैं, एक बड़ा खौफ उस समुदाय के सामने है जिसने बीते दो-ढाई या तीन दशक में अमेरिका में तानाबाना संजोया था। कहा जा रहा है कि ट्रेड वार ने भारत-अमेरिका के बीच अब तक के सबसे खराब रिश्तों का दौर शुरू कर दिया है जो अनिश्चितता के चलते लगातार भयावह होता जा रहा है। ट्रम्प की दूसरी पारी की नीतियां यकीनन दुनिया के देशों पर तो असर डाल ही रही हैं अमेरिका में बसे भारतीय मूल के बड़े समुदाय को भी गहरे में प्रभावित कर रही हैं। अस्थाई तौर पर या कुछ मियाद के लिए अमेरिका में रहकर गुजर-बसर करने वालों को चिंता यह है कि अब उनका ठौर लंबा नहीं होगा। स्थायी ठिकाने और नागरिकता की चाहत रखने वाले लोग पहले से ही चिंता में हैं। जो लोग स्थायी नागरिकता के लिए आवेदन कर चुके हैं और कतार में हैं उनका डर इस बात को लेकर है कि इंतजार न जाने कितना लंबा हो। कुल मिलकर सब कुछ अस्थिर है और रिश्तों में लगातार घुलती कड़वाहट बेचैनी को बढ़ाने वाली है।

अब स्थिति यह है कि ट्रेड वार का प्रतिकूल असर कारोबार के साथ ही सियासत और संबंधों के बीच झूल रहा है। इस बीच कूटनीति के रंग भी दिखाई देने लगते हैं। टैरिफ के प्रहार से खुद को संभालने के जवाब में भारत ने भी सियासी तौर पर कुछ ऐसे कदम उठाए हैं जो स्वयं ट्रम्प और उनसे भी ज्यादा उनके सलाहकारों को नागवार गुजर रहे हैं। भारत की चीन से 'निकटता' और खास तौर से मोदी की चीन-रूस से नजदीकियां राष्ट्रपति ट्रम्प को एक तरह से 'छेड़' रही हैं और उनके सेनापतियों को अपने हिसाब से निष्कर्ष निकालने के लिए अनुकूल हालात पैदा कर रही हैं। ट्रम्प के सलाहकार नवारो भारत पर लगातार तीखे हमले कर रहे हैं। नवारो ने व्यापार को एक जाति विशेष के लाभ से भी जोड़ दिया है। उनका 'गणित' हैरानी पैदा करने वाला है। भारत को 'दुश्मनों' की ओर जाता देख ट्रम्प ने स्वयं एक कूटनीतिक बाण चलाया है। राष्ट्रपति ने टैरिफ को लेकर अपना कड़ा रुख बरकरार रखते हुए कहा कि तमाम व्यापारिक कटुताओं के बावजूद अमेरिका और भारत के संबंधों में मजबूती बरकरार है। हालांकि ट्रम्प के इस कथन को भारतीय मीडिया जगत में उनकी नरमी के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन ऐसा है नहीं। नरमी के निष्कर्ष निकालने वाले आकलन में जल्दबाजी कर रहे हैं। इसलिए क्योंकि भारत के रुख (रूस से और चीन से निकटता) को देखते हुए राष्ट्रपति ट्रम्प ने उसके खिलाफ 'दूसरे' और 'तीसरे' चरण के टैरिफ की बात कही है। लिहाजा ऐसे में किसी एक कथन को अपने हिसाब से देखकर और उसकी अपनी व्याख्या करना ठीक नहीं है। लेकिन इस सियासी खींचतान में 'दुनिया उजड़ने' की चिंता किसको है, या हो सकती है। 

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