बोस्टन स्थित थिएटर समूह SETU की प्रस्तुति / Image: Provided
बोस्टन स्थित थिएटर समूह Stage Ensemble Theater Unit (SETU) ने अपनी नई नाटकीय प्रस्तुति 'When Gandhi and Mohammed Meet' के माध्यम से विभाजन और असमानताओं पर सवाल उठाए हैं। 2003 में स्थापित यह समूह हाशिए पर रहने वाले समुदायों की आवाज़ को मंच पर लाने और सांस्कृतिक संघर्षों को उजागर करने के लिए काम कर रहा है।
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नाटक के केंद्र में दो पात्र हैं — नील गांधी, लंदन के टेक्नोलॉजिस्ट और मोहम्मद असलम जो दिल्ली के वैज्ञानिक हैं। बेंगलुरु में एक एआई सम्मेलन के दौरान दोनों की दोस्ती गहरी होती है, लेकिन उन्हें पारिवारिक और सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे पारंपरिक धार्मिक सीमाओं के बाहर संबंध बनाने की हिम्मत करते हैं। यह नाटक प्रेम और संबंधों की व्यक्तिगत चुनौतियों के माध्यम से धर्म, वर्ग और पूंजी द्वारा बनाई गई मानवीय सीमाओं पर प्रश्न उठाता है।
SETU / नाटक की प्रस्तुतिSETU की प्रस्तुति में दोहरी भूमिकाओं और परतदार कथानक का प्रयोग किया गया है — Belief और Faith, जो विभाजन और एकता की समानांतर कहानियों को दर्शाते हैं। कलाकारों और क्रू में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, दलित, उच्च जाति और विभिन्न भारतीय भाषायी समुदायों के प्रतिनिधि शामिल हैं। यह विविधता केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि वास्तविक सांस्कृतिक और सामाजिक एकजुटता को मंच पर लाने का प्रयास है।
नाटक तकनीकी और सामाजिक वास्तविकताओं के बीच के अंतर को भी उजागर करता है। एआई जैसे क्षेत्र में निष्पक्षता की झूठी धारणा और वास्तविक जीवन में मौजूद पूर्वाग्रहों के बीच अंतर नाटक का मुख्य संदेश है। कलाकारों ने अपने किरदारों में व्यक्तिगत अनुभव और शोध आधारित व्यवहार का समावेश किया, जिससे प्रदर्शन न केवल मनोरंजक बल्कि समाज के लिए चिंतनशील और प्रेरक बन गया।
SETU / थिएटर की प्रस्तुति
SETU का यह प्रयास केवल मंच तक सीमित नहीं है। यह सामुदायिक थिएटर का प्रतीक है, जो प्रवासियों और हाशिए पर रहने वाले लोगों को अपनी पहचान और अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने का अवसर देता है। को-फाउंडर सुभ्रत दास के अनुसार, सामाजिक बदलाव लंबे समय में आता है, लेकिन इसकी शुरुआत जागरूकता और सामान्य धारणाओं को चुनौती देने से होती है।
नाटक When Gandhi and Mohammed Meet 20-23 नवंबर को मैनहट्टन के Gural Theater में ऑफ-ब्रॉडवे मंच पर प्रस्तुत किया जाएगा। यह नाटक केवल दर्शकों को सहमति बनाने के लिए नहीं कहता, बल्कि उन्हें विचार-विमर्श और संवाद के लिए प्रेरित करता है- आज के राजनीतिक और सांस्कृतिक माहौल में यह खुद में एक क्रांतिकारी कदम है।
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