प्रतीकात्मक तस्वीर / Unsplash
अमेरिका में उच्च शिक्षा के लिए आने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में इस वर्ष तेज़ गिरावट दर्ज की गई है। अमेरिकी वाणिज्य विभाग की Trade.gov वेबसाइट पर जारी प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, अगस्त 2025 में भारत से आने वाले छात्रों की संख्या पिछले साल की तुलना में 44 प्रतिशत घट गई।
यह गिरावट न केवल भारतीय छात्रों तक सीमित है, बल्कि कुल अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में भी 19 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जो कोविड-19 महामारी के बाद सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है।
वीज़ा देरी और ट्रम्प प्रशासन की नई नीतियां मुख्य कारण
रिपोर्ट के मुताबिक, यह गिरावट कई कारणों से हुई है, जिनमें वीज़ा प्रोसेस में देरी, 19 देशों पर नई यात्रा पाबंदियां, और छात्र वीज़ा आवेदनों की कड़ी जांच शामिल हैं। ट्रम्प प्रशासन के तहत शुरू की गई नई नीति के अनुसार अब छात्रों को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल सार्वजनिक करने की शर्त भी पूरी करनी पड़ रही है, जिससे प्रक्रिया और लंबी हो गई है।
भारतीय छात्र अब भी सबसे बड़ा समूह
अमेरिका में पढ़ने वाले हर तीन अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से एक भारत से होता है, लेकिन लगातार दूसरे साल इस गिरावट ने भारतीय छात्रों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अगस्त में एशियाई छात्रों (जो कुल अंतरराष्ट्रीय छात्रों का 70% हिस्सा हैं) की संख्या में 24%, जबकि अफ्रीकी छात्रों में 32% की गिरावट देखी गई। घाना और नाइजीरिया से लगभग आधे छात्र वीज़ा देरी के कारण यात्रा नहीं कर पाए। वहीं चीन से आने वाले छात्रों की संख्या में भी 12% कमी दर्ज की गई।
विश्वविद्यालयों पर असर और आर्थिक झटका
अंतरराष्ट्रीय शिक्षा संस्था NAFSA के अनुमान के अनुसार, नए विदेशी छात्रों के नामांकन में 30–40% की गिरावट आई है, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लगभग 7 अरब डॉलर (₹58,000 करोड़) का नुकसान हो सकता है।
कई विश्वविद्यालयों ने भारी गिरावट की पुष्टि की है कि ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में नए अंतरराष्ट्रीय छात्रों में 38% की कमी, इंडियाना यूनिवर्सिटी में 30% की गिरावट, जबकि डिपॉल यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल मिसौरी में 50–60% तक कमी देखी गई।
STEM कार्यक्रमों पर सबसे अधिक प्रभाव
अमेरिकी विश्वविद्यालयों के STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) कार्यक्रमों में विदेशी छात्रों की भागीदारी 80% से अधिक है। इन पर असर पड़ने से शोध कार्य और वैज्ञानिक प्रगति में भी रुकावट आ सकती है। अमेरिका में 40% से अधिक डॉक्टरेट-स्तरीय वैज्ञानिक और इंजीनियर विदेशी मूल के हैं, और लगभग 75% विदेशी पीएचडी छात्र वहीं रहकर काम करते हैं।
विशेषज्ञों की चेतावनी
विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट दीर्घकालिक असर डाल सकती है, क्योंकि इससे न केवल विश्वविद्यालयों के शोध कार्य धीमे होंगे, बल्कि अमेरिका की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता पर भी प्रभाव पड़ेगा।
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