भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MCP) की अगली बैठक आठ से 10 अगस्त 2023 को होनी है। इससे पहले 8 जून, 2025 को हुई मौद्रिक समीक्षा बैठक में रिजर्व बैंक ने रेपो में लगातार दूसरी बार कोई बदलाव नहीं किया। हालांकि इससे पहले केंद्रीय बैंक ने जून में एक तटस्थ रुख अपनाते हुए कहा था कि ब्याज दरों में कटौती एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के आने वाले आंकड़ों पर निर्भर करेगी। हालांकि, केंद्रीय बैंक ने यह भी कहा कि वो चाहता है कि मुद्रास्फीति और नीचे आए, ताकि बदलाव किए जा सकें।
मंद मुद्रास्फीति ने नीति निर्माताओं को ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश दी है, लेकिन इस साल के पहले तीन महीनों में अर्थव्यवस्था 7.4 प्रतिशत की तेज दर से बढ़ रही है। ऐसे में भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक बहुप्रतीक्षित व्यापार समझौते पर बातचीत अभी भी चल रही है, जबकि अप्रैल की शुरुआत में भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया था। वाशिंगटन ने पहले 9 जुलाई और फिर 1 अगस्त की समयसीमा तय की थी।
इस बीच रॉयटर्स ने एक रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स के हवाले से कहा भारतीय रिजर्व बैंक अगले महीने अपनी प्रमुख रेपो दर फिलहाल 5.50 प्रतिशत पर स्थिर रखेगा, लेकिन साल के अंत तक इसे फिर से कम किया जा सकता है। पिछले कुछ महीनों की बात करें तो मंद मुद्रास्फीति में कमी के बीच ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश थी। लेकिन मौजूदा वर्ष की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था की रफ्तार 7.4 प्रतिशत रही। ऐसे में आरबीआई अपने अगले निर्णय के लिए मुद्रास्फीति को अनुमानों के पूरा होने की प्रतीक्षा कर सकता है।
सर्वेक्षण में शामिल लगभग 75 प्रतिशत अर्थशास्त्रियों, यानी 57 में से 44, का मानना है कि आरबीआई 6 अगस्त की नीतिगत बैठक में रेपो दर को 5.50 प्रतिशत पर बनाए रखेगा। 18-24 जुलाई के रॉयटर्स सर्वेक्षण में बाकी अर्थशास्त्रियों ने 25 आधार अंकों की कटौती का अनुमान लगाया था।
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अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आरबीआई साल के अंत तक ब्याज दरों में 25 आधार अंकों की कटौती करेगा, जो जून की तुलना में एक बदलाव है, जब अधिकांश अर्थशास्त्रियों ने कम से कम वित्तीय वर्ष के अंत तक दरों में कोई बदलाव नहीं होने की उम्मीद जताई थी।
मौजूदा वित्तीय वर्ष में विकास दर औसतन 6.4 प्रतिशत और अगले वित्तीय वर्ष में 6.7 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। जबकि मुद्रास्फीति औसतन 3.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो कि आरबीआई के पूर्वानुमान 3.7 प्रतिशत से कम ही है।
रेपो दरों को लेकर यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की मुख्य आर्थिक सलाहकार कनिका पसरीचा ने कहा, "एमपीसी के लिए इस नीति बैठक पर नजर रखना और इंतजार करना समझदारी भरा कदम है... अगस्त के अंत तक हमें विकास के आंकड़े मिल जाएंगे, जिससे यह और अधिक स्पष्ट हो पाएगा कि क्या विकास वास्तव में धीमा हो रहा है।"
बढ़ती वैश्विक अनिश्चितता के बीच सीमित नीतिगत दर संतुलन को बनाए रखना जरूरी है। दो महीने के सर्वेक्षण में यह सामने आया कि आधे लोगों, यानी 32 में से 15, ने वर्ष के अंत के लिए अपने ब्याज दर पूर्वानुमान कम होने की उम्मीद व्यक्त की, जबकि बाकी ने बदलाव की बात कही।
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