भारत में विदेशी निवेशकों और सरकार के बीच लंबे समय से चल रहे टैक्स विवादों को खत्म करने के लिए नीति आयोग ने बड़ा कदम उठाया है। आयोग की पहली Tax Policy Working Paper में वैकल्पिक अनुमानित कराधान (Presumptive Tax Regime) की सिफारिश की गई है।
क्यों जरूरी है यह बदलाव?
विदेशी कंपनियों के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द भारत में टैक्स की अनिश्चितता रही है। Permanent Establishment (PE) यानी स्थायी व्यवसाय उपस्थिति और Profit Attribution यानी भारत में कितना मुनाफा टैक्स के दायरे में आएगा। इन दोनों मुद्दों पर दशकों से विवाद चला आ रहा है। वोडाफोन रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स विवाद से लेकर हाल ही में हयात इंटरनेशनल केस (2025) तक, कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सालों तक कोर्ट-कचहरी में उलझना पड़ा।
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विशेषज्ञों का कहना है कि टैक्स विवादों में सिर्फ पैसे की नहीं बल्कि समय की लागत (Cost of Time) भी बहुत भारी पड़ती है—प्रोजेक्ट अटक जाते हैं, मैनेजमेंट का ध्यान बंटता है और बैलेंस शीट पर अस्थिरता बनी रहती है।
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