चीन ने भारत के साथ अपने व्यापारिक तनाव में एक नया मोर्चा खोल दिया है। उसने भारत की प्रमुख औद्योगिक प्रोत्साहन योजनाओं बैटरी, ऑटो पार्ट्स और इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर विश्व व्यापार संगठन (WTO) में औपचारिक विवाद शुरू कर दिया है। यह कदम भारत की महत्वाकांक्षी मेक इन इंडिया पहल और ग्रीन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में चीन से स्वतंत्र एक घरेलू औद्योगिक आधार बनाने के प्रयास पर सीधा प्रहार माना जा रहा है।
20 अक्टूबर को WTO सदस्यों को जारी एक औपचारिक परामर्श अनुरोध में बीजिंग ने आरोप लगाया कि भारत ने तीन प्रमुख प्रोत्साहन योजनाओं के तहत कई वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन किया है। इनमें है
चीन की शिकायत के अनुसार इन कार्यक्रमों से भारत में घरेलू सामग्री के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है जिससे विदेशी विशेष रूप से चीनी आपूर्तिकर्ताओं को नुकसान होता है। यह WTO के के नियमों का उल्लंघन है।
बीजिंग का आरोप कि यह स्क्रीम ही भेदभावपूर्ण हैं। 20 अक्टूबर को WTO सदस्यों को सौंपी गई 15 पन्नों की चीनी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की ये तीनों योजनाएं डोमेस्टिक वेल्यू एडिशन की शर्तों से जुड़ी हैं। ये योजनाएं कुल 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की हैं। इससे घरेलू वस्तुओं के उपयोग पर निर्भरता बढ़ेगी जोकि WTO के नियमों का सीधा उल्लंघन करती हैं।
साल 2021 से 2024 के बीच शुरू की गई ये योजनाएं भारत की उस रणनीति के केंद्र में हैं जिसके तहत वह चीन पर निर्भरता घटाकर घरेलू ईवी कंपोनेंट्स, लिथियम-आयन सेल और ऑटो इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण को बढ़ावा देना चाहता है। ये वो क्षेत्र हैं जहां चीन फिलहाल वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में प्रमुख है।
चीन का तर्क है कि ऐसी शर्तें विदेशी खासतौर पर चीनी आपूर्तिकर्ताओं को नुकसान पहुंचाती हैं। इसके अलावा चीन ने यह भी आरोप लगाया कि 2024 की पैसेंजर कार योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों पर 15% की रियायती सीमा शुल्क दर केवल उन्हीं निर्माताओं को दी जाती है जो भारत में निवेश का वादा करते हैं। यह भी WTO के नियमों का उल्लंघन है।
आपको बता दें कि भारत सरकार की PLI योजनाओं का उद्देश्य वैश्विक पूंजी आकर्षित करते हुए घरेलू विनिर्माण को मजबूत करना है।
यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब दुनिया भर में औद्योगिक नीतियों को लेकर खींचतान बढ़ रही है।
देश अब सेमीकंडक्टर, बैटरियों और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों को सुरक्षित करने के लिए राज्य-नेतृत्व वाली सब्सिडी नीतियों को बढ़ा रहे हैं जिससे WTO की भूमिका चुनौती में पड़ गई है।
इसलिए बीजिंग का यह कदम रणनीतिक और प्रतीकात्मक दोनों है। यह भारत की आत्मनिर्भरता की कोशिशों को चुनौती देता है और यह भी जांचता है कि क्या WTO अभी भी ग्रीन इंडस्ट्रियल नेशनलिज्म पर अंकुश लगा सकता है या नहीं।
भारत के लिए यह मामला राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील है क्योंकि PLI योजनाएं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत दृष्टि की आधारशिला हैं जिन्हें घरेलू स्तर पर औद्योगिक पुनरुत्थान के इंजन के रूप में पेश किया गया है। यदि WTO में भारत हारता है तो यह विपक्ष और आलोचकों को हथियार देगा और चीन को कूटनीतिक बढ़त प्रदान करेगा।
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