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आखिर कहां ले जाएगी ये बेरुखी!

भारतीय समुदाय के लोग आज अगर अमेरिका के हर क्षेत्र में आगे हैं तो अपनी काबिलियत के दम पर। उस काबिलियत पर मुहर तो अमेरिका की ही है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प। / X image

कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी AI में अमेरिका निर्विवाद रूप से वैश्विक नायक के रूप में स्थापित हो और लगातार बना भी रहे इसके लिए कुछ दिन पहले राष्ट्रपति ट्रम्प ने तीन कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किये हैं। हालांकि तीसरे आदेश पर कुछ आपत्तियां और सियासी वाद-संवाद है लेकिन अपने देश को फिर से 'महान' बनाने की ऐलानिया जंग में सब चलेगा। लेकिन इन कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर करते समय राष्ट्रपति ट्रम्प ने चीन में कारखाने लगाने और भारत के लोगों को काम पर रखने के लिए अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों को जो लताड़ लगाई है वह उचित प्रतीत नहीं होती। भारतीयों के प्रति यह बेरुखी ट्रम्प ने AI शिखर सम्मेलन के दौरान दिखाई। ट्रम्प ने इसे अमेरिकी आजादी का गलत फायदा उठाने और स्थानीय लोगों को उनके अधिकारों से महरूम करने जैसा माना। इस तरह ट्रम्प ने देशभक्ति और राष्ट्रीय निष्ठा की अपनी व्याख्या अवाम, कारोबार जगत और हुकूमत से जुड़े लोगों के सामने पेश की है। ट्रम्प ने दो टूक कहा कि अब ऐसा नहीं चलेगा। हमे ऐसी प्रौद्योगिकी कंपनियों की जरूरत है जो अमेरिका के लिए पूरी तरह से समर्पित हों। वे अमेरिका को प्राथमिकता दें और उन्हे ऐसा करना ही होगा। यानी कारोबार हो या नौकरी अथवा कोई और मामला पहले अमेरिका और अमेरिकावासी।

बहरहाल, अमेरिका को फिर से 'महान' बनाने, उसे वैश्विक नायक के रूप में स्थापित करने, उसका दबदबा फिर से कायम करने और महाबली के रूप में देखे जाने के लिए किसी भी देश के मुखिया को सैद्धांतिक और नैतिक तौर पर तो यही सोचना चाहिए। लेकिन यह सब हासिल करने के लिए जो राह ट्रम्प ने चुनी है उसकी दुनियाभर में निंदा हो रही है। उनकी 'दोस्ती' और 'दुश्मनी' के पैमाने न तो स्थाई हैं और अधिकांश समझ में न आने वाले। अगर बात भारत और उसके पड़ोसी की ही करें तो बहुत कुछ 'उलटा-पुलटा' नजर आता है। किसके साथ दोस्ती की जा रही है और किसके साथ निभाई जा रही है इस पर गफलत है। फिर आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका कहां है, यह भी पहेली ही है। मौखिक रूप से कुछ कहना और व्यवहार में कुछ और करना आखिर किस तरह से 'महानता' दिलाने वाला है यह तो ट्रम्प ही जानते होंगे।

जहां तक भारत का सवाल है तो उसके लिहाज से भी बहुत कुछ ठीक नहीं चल रहा। कम से कम वैसा तो नहीं जिसके बारे में ट्रम्प की सत्ता की दूसरी पारी शुरू होने से पहले उम्मीद लगाई गई थी। हालांकि जो आशंकाएं तब उठी थीं उनमें से अधिकांश सही निकली हैं। खास तौर पर वीजा, शिक्षा और काम को लेकर। अपने देश के लोगों को प्राथमिकता देना सही है लेकिन प्रतिभाओं का प्रतिकार करना तो अमेरिका के मूल तंत्र और इसकी आत्मा के ही खिलाफ है। हर किसी ने, और खासकर भारतीयों ने, अमेरिका आने का सपना इसीलिए देखा क्योंकि यह अवसरों, प्रतिभाओं की कद्र करने वाली धरती है। यहां जिसमें बौद्धिक शक्ति है उसके सपने साकार होते हैं। यहां प्रतिभा देखी जाती है, शक्ल या नस्ल नहीं। लेकिन ट्रम्प की बेरुखी प्रतिभाओं के प्रतिकार का रास्ता तैयार करती है। क्या खुद से प्यार करने के लिए किसी और से नफरत करना जरूरी है। क्या अपनी तरक्की के लिए किसी और को नीचे गिराना सही है। भारतीय समुदाय के लोग आज अगर अमेरिका के हर क्षेत्र में आगे हैं तो अपनी काबिलियत के दम पर। उस काबिलियत पर मुहर तो अमेरिका की ही है। और इसी मुहर ने भारतीयों के मन में एक अमेरिकी सपना बुना है, जो बार-बार साकार हुआ है। पर अब उस सपने पर 'ग्रहण' की आशंकाएं हैं। 

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