ष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ सदस्य डॉ. रतन शारदा का मानना है कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय पहले से कहीं अधिक आत्मविश्वासी, सामाजिक रूप से सक्रिय और राजनीतिक रूप से जागरूक हो गया है। एक विशेष इंटरव्यू में डॉ. शारदा ने अमेरिका में बसे भारतीय प्रवासियों के बदलते स्वरूप पर विचार साझा किए। रतन बचपन से ही संघ से जुड़े रहे हैं और भारत में आपातकाल के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) में सक्रिय भी रहे।
नई पीढ़ी: आत्मविश्वास और राजनीतिक सक्रियता में आगे
उन्होंने कहा, "पहली पीढ़ी के भारतीय प्रवासी अपनी ज़िंदगी को स्थापित करने और अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य बनाने में लगे थे। लेकिन नई पीढ़ी ज्यादा आत्मविश्वासी, मिलनसार और राजनीतिक-सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय है।" उन्होंने इस धारणा को भी ग़लत बताया कि भारतीय अमेरिकी एक विशेषाधिकार प्राप्त समुदाय हैं। उन्होंने कहा, "मैंने उनकी संघर्षगाथा देखी है। वे मेहनत और संघर्ष से यहां तक पहुंचे हैं।"
डॉ. शारदा ने यह भी उल्लेख किया कि आज की युवा पीढ़ी अमेरिकी समाज और राजनीति में भारतीय पहचान को लेकर अधिक मुखर है। उन्होंने कहा, "उनका दृष्टिकोण बदल चुका है। वे अपने भारतीय मूल को गर्व से अपनाते हैं और इसे दुनिया के सामने मजबूती से रखते हैं।"
भारतीय अमेरिकी और ट्रम्प प्रशासन
भारतीय अमेरिकी समुदाय की राजनीतिक प्राथमिकताओं में बदलाव का ज़िक्र करते हुए डॉ. शारदा ने कहा, "पहले भारतीयों का झुकाव डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर था, लेकिन अब रिपब्लिकन पार्टी को समर्थन देने वाले भारतीयों की संख्या बढ़ रही है।" हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जो लोग डेमोक्रेट्स का समर्थन करते थे, वे अब भी उसी विचारधारा के साथ मजबूती से खड़े हैं।
भारत-अमेरिका संबंधों पर विचार
डॉ. शारदा ने अमेरिका की 'स्वार्थ-प्रधान नीति' पर प्रकाश डालते हुए कहा, "भारत में लोग अब समझ चुके हैं कि अमेरिका सबसे पहले अपने स्वार्थ को देखता है। अगर ज़रूरत पड़ी, तो वह कभी भी प्रतिबंध लगा सकता है या आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति रोक सकता है।" उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कोविड-19 के दौरान जब भारत पर अमेरिकी वैक्सीन खरीदने का दबाव डाला गया, या जब सैन्य उपकरणों की आपूर्ति में देरी हुई, तब भारत में अमेरिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठे। हालांकि, व्यक्तिगत स्तर पर भारतीय अमेरिकी समुदाय अमेरिका के लोकतांत्रिक मूल्यों और अवसरों की भूमि के रूप में इसकी छवि की सराहना करता है।
भारत-अमेरिका संबंधों में विश्वास की कमी
डॉ. शारदा ने कहा कि अमेरिका की विदेश नीति में दोहरापन भारतीयों के मन में अविश्वास पैदा करता है। उन्होंने कहा, "1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया, जबकि वह स्पष्ट रूप से मानवाधिकार उल्लंघन कर रहा था। आज भी, बांग्लादेश में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका इस पर चुप्पी साधे बैठा है। यह दोहरी नीति लोगों में संदेह पैदा करती है।"
भारत और अमेरिका: एक साझी लोकतांत्रिक दृष्टि
डॉ. शारदा का मानना है कि भारत और अमेरिका प्राकृतिक सहयोगी हैं। उन्होंने कहा, "हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और हमारे मूल्य समान हैं—स्वतंत्र मीडिया, बहुलतावाद और धार्मिक स्वतंत्रता।" उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय समुदाय में डोनाल्ड ट्रंप के प्रति सकारात्मक रुझान बढ़ा है। इतिहास गवाह है कि डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति हमेशा भारत विरोधी नीतियां अपनाते रहे हैं। ट्रंप को लेकर भारतीयों में पिछले चुनाव से भी अधिक सकारात्मकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप दोनों ही वैश्विक शांति को लेकर गंभीर हैं। "मोदी जी ने स्पष्ट किया है कि यह युद्ध का युग नहीं है, और ट्रंप भी संघर्षों को रोकने का प्रयास कर रहे हैं। भारत और अमेरिका को मिलकर वैश्विक स्थिरता के लिए काम करना चाहिए।"
RSS का आर्थिक और विदेश नीति पर प्रभाव
डॉ. शारदा ने स्पष्ट किया कि RSS सरकार की नीतियां निर्धारित नहीं करता, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक नीति संघ की विचारधारा से मेल खाती है। उन्होंने कहा, "मोदी जी की आर्थिक नीति वास्तव में दीनदयाल उपाध्याय के 'अंत्योदय' और 'एकात्म मानववाद' के सिद्धांत पर आधारित है—अंतिम व्यक्ति तक सुविधाएं पहुंचाना।"
उन्होंने सरकार की विभिन्न योजनाओं जैसे जन धन योजना, मुद्रा योजना और गरीब कल्याण योजनाओं को संघ की सोच के अनुरूप बताया। "पूंजीवाद में संपत्ति ऊपर से नीचे टपकती है, लेकिन अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाती। संघ की विचारधारा कहती है कि उसे सीधे अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाया जाए।"
भारतीय प्रवासी: भारत के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति
विदेश नीति के संदर्भ में, उन्होंने कहा कि RSS लंबे समय से भारतीय प्रवासी समुदाय को सशक्त करने की वकालत करता रहा है। उन्होंने कहा, "अटल बिहारी वाजपेयी जी ने प्रवासी भारतीय दिवस और प्रवासी भारतीय सम्मान की शुरुआत की थी, क्योंकि प्रवासी भारतीय भारत की अमूल्य संपत्ति हैं। वे जहां भी रहते हैं, उस देश के विकास में योगदान देते हैं, लेकिन उनकी प्रेरणा का स्रोत हमेशा भारत ही रहता है।"
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