अरिन शिंदे, भारत यूथ ग्रुप (IYG), इंडिया सोसाइटी ऑफ वॉर्सेस्टर से (विशेष रिपोर्ट)
हजारों मील दूर पले-बढ़े इन युवाओं का भारत से रिश्ता अधिकतर कहानियों, त्योहारों, भाषा की कक्षाओं और रविवार के मंदिर भ्रमण तक सीमित रहा है। लेकिन जैसे ही वे विमान से उतरकर उस धरती पर कदम रखते हैं जो रंग, गंध और पूर्वजों की स्मृतियों से भरी है—कुछ भीतर बदल जाता है।
16 वर्षीय रिया शर्मा के शब्दों में, मुंबई में उतरते ही उन्हें लगा, “यहां सब कुछ अव्यवस्थित था, लेकिन फिर भी दिल को सुकून दे रहा था।” एक ऐसी जगह जहां वह कभी नहीं गई थीं, लेकिन मानो पहले से जानती हों। दिल्ली की भीड़भाड़ भरी गलियों से लेकर वाराणसी के शांत घाटों तक, हर अनुभव एक साथ अपरिचित भी था और आत्मीय भी। रिक्शों की आवाज़, गर्म पत्थरों से उठती भाप और खिड़कियों से आती मसाले की खुशबू—हर अहसास यादों में दर्ज होता चला गया।
13 वर्षीय अर्जुन पटेल को हैरानी हुई जब उन्होंने देखा कि वर्षों बाद भी गुजराती सहजता से उनकी जुबान पर लौट आई। वे वीडियो कॉल पर मिलने वाले रिश्तेदारों से आमने-सामने बात करते हुए पूरी तरह सहज महसूस कर रहे थे।
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10 साल की अन्या देशमुख ने पुणे में अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे उनके चचेरे भाई-बहनों ने उन्हें हाथ से खाना सिखाया और उन्हें ऐसे अपनाया जैसे वे हमेशा साथ रहे हों। किशोरों के लिए यह जुड़ाव और भी गहरा था—जब उन्होंने अपने माता-पिता के पैतृक घर देखे, उनके संघर्षों की कहानियां सुनीं और पीढ़ियों को जोड़ने वाली अदृश्य डोर को महसूस किया।
सिर्फ रिश्ते नहीं, संस्कृति से भी जुड़ाव
भारत में रोजमर्रा के अनुभव—बाज़ार में मोलभाव, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल, या मंदिर की आरती के समय लोगों की श्रद्धा देखना—इन युवाओं के लिए एक नई दुनिया की झलक थे। 14 साल की मीरा अय्यर कहती हैं, “मैं सोचती थी कि घर में जो करते हैं वही भारतीयता है, लेकिन भारत आकर समझ आया कि जानने के लिए बहुत कुछ है।”
भारत की सहज सामाजिकता, अचानक हो जाने वाली मुलाकातें और सामूहिक जीवन—यह सब अमेरिका की स्वतंत्रता-केंद्रित जीवनशैली से बिल्कुल अलग था, फिर भी उन्हें यह अपना सा लगा।
पहचान की पुनर्खोज: कौन हैं हम?
भारत यात्रा का असली असर तब दिखा, जब युवाओं ने वापस लौटने के बाद यह सोचना शुरू किया कि यह अनुभव उन्हें कितना बदल गया। छुट्टी की शुरू हुई यात्रा धीरे-धीरे आत्म-पहचान की खोज बन गई। भाषा, संस्कृति या पारिवारिक परंपराओं के बारे में अधूरी जानकारी को इन युवाओं ने शर्म की तरह नहीं, बल्कि प्रेरणा की तरह लिया।
मीरा बताती हैं, “शुरुआत में मैं हिंदी में जवाब नहीं दे पा रही थी, लेकिन यात्रा के अंत तक मैंने कोशिश की और मेरे रिश्तेदारों ने इसे बहुत सराहा।” भारत यात्रा ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया कि "भारतीय होने" का क्या अर्थ है। यह कोई दोराहा नहीं, बल्कि दो संस्कृतियों का संगम है—जहां वे दोनों से जुड़ सकते हैं।
छोटे बदलाव, गहरी छाप
घर लौटते समय कई युवा अपने साथ भारत की कुछ परंपराएं भी ले आए—त्योहारों पर माता-पिता के पैर छूना, बड़ों को "नमस्ते" कहना, या ताजे गरम रोटियों की तलब। उनके लिए भारत अब सिर्फ नक्शे पर कोई देश नहीं, बल्कि एक आईना बन गया था—जिसमें उन्होंने खुद को, अपनी जड़ों को और अपने भीतर छुपी संस्कृति को देखा।
जैसा कि एक छात्र ने कहा, "मैं समझ रहा था कि मैं एक नई जगह जा रहा हूं, लेकिन असल में मैं खुद का एक भूला हुआ हिस्सा ढूंढ़ने आया था।"
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