दुनियावी शतरंज की बिसात पर अमेरिका की चाल बीते सात-आठ महीने से नित नए गुल खिला रही है। ट्रम्प की दूसरी पारी युद्ध और शांति से लेकर दोस्ती और दुश्मनी की नई परिभाषाएं गढ़ रही है। पारंपरिक 'दुश्मन' धीरे-धीरे किंतु योजनाबद्ध तरीके से पास लाए जा रहे हैं और लंबे समय के मित्र एक झटके में दूर किए जा रहे हैं। पर्दे उठ रहे हैं, मगर सियासत की मोटी दीवारें के पीछे कुछ और ही खेल चल रहा है। इसे शुरुआत माना जाए कि मध्य, किंतु यह अंत नहीं है। आकार लेती चीजें न जाने आखिर में किस रूप में सामने आएंगी इसका अंदाजा अभी से लगाना इसलिए बेकार है क्योंकि घटनाक्रम तेज है और उसमें बदलाव की गति उससे भी अधिक। इसी घटनाक्रम के बीच भारत के संदर्भ में व्हाइट हाउस का एक बयान आया है जो कुछ हैरान करता है क्योंकि इस तरह से खुले रूप में प्रत्याशित नहीं था। व्हाइट हाउस की ओर से कहा गया है कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने रूस पर दबाव बनाने के लिए भारत पर टैरिफ बढ़ाया है। बकौल व्हाइट हाउस प्रवक्ता कैरोलिन लेविट राष्ट्रपति ने भारत पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाकर कुल टैरिफ 50% कर दिया है। इसका मकसद रूस पर परोक्ष दबाव डालना है, ताकि वह युद्ध रोकने पर मजबूर हो। यह भारत में प्रचलित एक पुरानी कहावत, करे कोई... भरे कोई, जैसा है। इसलिए क्योंकि युद्ध रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा है और उसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ रहा है।
भारत भले इस गुमान में रहा हो कि 'दोस्ती के कसीदे' उसके टैरिफ भार को कम कर देंगे मगर ट्रम्प ने एक नया पाठ पढ़ाया है। इसके मुताबिक जिस तरह इश्क और जंग में सब जायज है उसी तरह व्यापार में भी सब जायज है। भारत-अमेरिका संबंधों के हालिया घटनाक्रम से खुद को ठगा महसूस कर रहा दक्षिण एशियाई मुल्क व्हाइट हाउस के नए बयान से किस मनोस्थिति में होगा यह समझा जा सकता है। अब शायद उसे लग रहा होगा कि वह तो बेकार ही परस्पर संबंधों की बयार में बहा जा रहा था, रिश्तों का निर्धारण तो किन्ही दूसरी वजहों से हो रहा है। लेकिन रूस से कच्चा तेल खरीदने के चक्कर में भारत पर ही कोड़ा क्यों चला, चीन पर क्यों नहीं जबकि वह तो पहले नंबर का ग्राहक है, जब यह सवाल राष्ट्रपति महोदय के सामने उछाला गया तो उसका कोई भी संतोषजनक अथवा तार्किक उत्तर किसी को नहीं मिला। क्योंकि दिया ही नहीं गया। इस सवाल का उत्तर व्हाइट हाउस के इस कथन में खोजा जा सकता है कि अमेरिका ने भारत पर टैरिफ क्यों बढ़ाया। भारत की ब्रिक्स की सदस्यता से भी राष्ट्रपति महोदय नाराज हैं जिसका इजहार वे दंडात्मक लहजे में खुले तौर पर कर चुके हैं।
ऐसे में भारत के समक्ष कुछ ही रास्ते बचते हैं। एक तो अपने लिए नई जमीन तलाशना और दूसरा जहां-तहां जो अपनी जमीन है उसे मजबूत करना। भारत कर भी वही रहा है। लेकिन इससे तो महाबली के और नाराज होने का जोखिम है। किंतु अब बिना जोखिम भारत की राहें आसान भी नहीं हैं। अब तो केवल चुनौती है। चुनौती है झटके से उबरना, खड़े होना, कदम बढ़ाना और नई जमीन पर जमाना। अपने दम पर नायक बनने का सही समय यही है। बकौल भारत के प्रधानमंत्री मोदी- यही समय है सही समय है। कविता के बहाने यह बात मोदी ने कुछ वर्ष पहले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से कही थी। अब उस पर चलने का यही समय है... सही समय है।
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