शिक्षण संस्थानों पर ट्रम्प प्रशासन का क्रैकडाउन इन दिनों दुनियाभर में चर्चा का सबब है। हार्वर्ड जैसे जगत-विख्यात शिक्षण संस्थान प्रशासन के आदेशों से जूझ रहे हैं और अपने अस्तित्व तथा पहचान के लिए संघर्षरत हैं। हार्वर्ड ने तो ट्रम्प प्रशासन के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा भी खटखटाया है। कई अन्य संस्थानों ने ट्रम्प प्रशासन के फैसले की निंदा तो की है लेकिन उससे लड़ने की ताकत वे अभी नहीं जुटा पाए हैं। आखिर कोई एक संस्थान या कई संस्थान मिलकर भी क्या सरकार से लड़ सकते हैं। ऐसी सरकार से जो नए मुखिया की दूसरी पारी के महज साढ़े चार महीने में सैकड़ों आदेश पारित कर चुकी है। यह जुदा है कि ट्रम्प के कई फैसलों को अदालतों में चुनौती दी गई है और कई फैसलों पर कोर्ट रोक लगा चुका है। अब उन मामलों में क्या होगा जिन पर अदालत ने रोक लगा दी है। लेकिन एक चीज जो होगी वह तय है कि तलवार लटकी रहेगी। शिक्षण संस्थानों पर क्रैकडाउन का एक और नतीजा भी तय है कि इससे अंतरराष्ट्रीय छात्रों और उनके माता-पिता अथवा अभिभावकों के मन-मस्तिष्क में जो कशमकश चल रही है वह पढ़ाई के लिए किसी नए ठिकाने की तलाश का विकल्प चुनने के लिए बाध्य होगी। लंबे समय की दुविधा अमेरिकी शिक्षण संस्थानों से मोहभंग का सबब बन सकती है। इन मानसिक हालात से दुनिया के तमाम लोग और विदेश में पढ़ने के आकांक्षी छात्र गुजर रहे होंगे। भारत भी अपवाद नहीं है। बल्कि भारत में इस असमंजस का शिकार लोगों और छात्रों की संख्या सबसे अधिक हो सकती है। इसलिए कि पढ़ने के लिए भारत से अमेरिका आने वाले छात्रों की संख्या 3 लाख के आसपास बताई जाती है।
विश्वविद्यालय परिसरों में छात्रों का विरोध और अशांति एक अमेरिका में अपेक्षाकृत नई घटना है। अंतरराष्ट्रीय शैक्षिक आदान-प्रदान पर ओपन डोर्स 2024 रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी कॉलेज और विश्वविद्यालयों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की कुल संख्या 11 लाख से अधिक के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई है। जहां तक भारत की बात है तो स्थिति शिक्षण से आगे तक जाती है। भारत सबसे अधिक संख्या में अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अमेरिका भेजता है और अमेरिकी अर्थव्यवस्था और प्रतिभा पूल में महत्वपूर्ण योगदान देता है। अनुमान के मुताबिक 300,000 से अधिक मजबूत भारतीय छात्र समुदाय अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सालाना 8 अरब डॉलर से अधिक का योगदान देता है और कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियों के सृजन में मदद करता है। तमाम क्षेत्रों में भारतीय प्रतिभा का बढ़ना और ढेर से शीर्ष पदों पर होना भारतीय छात्रों और उनके माता-पिता के मन में यह बात स्थापित करता है कि सपनों की धरती पर अपनी मेहनत से शीर्ष मुकाम हासिल किया जा सकता है। इसीलिए जब विदेश में पठन-पाठन और उच्च शिक्षा की बात आती है तो भारतीयों के मन और प्राथमिकताओं में अमेरिका सबसे ऊपर रहता है। भारतीयों के मन में यह स्थापना एक दिन या एक वर्ष में नहीं हुई है। इसमें बरसों लगे हैं और इससे जुड़े अन्य कारक भी हैं।
वर्तमान हालात भारतीयों को भी गहराई से असहज करने वाले हैं। आगामी सत्र के लिए वीजा साक्षात्कार पर तत्काल प्रभाव से रोक ने सबके सामने न केवल 'अंधेरा' कर दिया है बल्कि तुरंत ही नए विकल्प का यक्षप्रश्न भी खड़ा कर दिया है। यक्षप्रश्न इसलिए क्योंकि कोई भी पसोपेश में नहीं रहना चाहता। इंतजार कोई कब तक कर सकता है। और यदि किसी सकारात्मकता का आश्वासन हो तो इंतजार की तुक भी बनती है। ऐसे में कौन होगा जो अपना साल और समय बर्बाद करने के लिए ठहरेगा।
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